यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, June 28, 2012

लाचारी का घर

      जब पटना में था तब मेरे एक वरिष्ठ सर ये पंक्तियां बार-बार सुनाते थे- ‘एक अकेला इस शहर में...। आज मैं इनके यहां... कल उनके वहां रहता हूं। जिंदगी भर किराए के मकान में रहता हूं।’ मेरे जीवन से भी इन पंक्तियों का गहरा संबंध रहा है। मणिपुर का रहने वाला हूं। हिंदी भाषा और कुछ हद तक एक आम भारतीय की समस्या, यानी रोजगार मुझे उत्तर भारत खींच कर ले आई। कभी इनके यहां कभी उनके वहां! इस बीच दो अनुभवों ने मुझे बहुत मायूस किया। किसी अजनबी शहर में कमरा खोजने जाएं तो मकान मालिक पहले दिन बहुत प्यार से बात करता है। लेकिन थोड़े समय के बाद मनमाने तरीके से बिजली-पानी का बिल, साफ-सफाई और कूड़ा उठवाने के पैसे धीरे-धीरे बढ़ाने लगता है। कारण पूछें तो बताया जाएगा कि बजट के हिसाब से किराया बढ़ाया है, महंगाई इतनी बढ़ गई है, आदि। मानो महंगाई हमारे लिए नहीं बढ़ी हो। हालत यह है कि अगर निर्धारित तारीख से एक-दो दिन बाद किराया देने की मजबूरी आ गई तो दिन में तीन बार पूछने चले आएंगे कि किराया कब दे रहे हो! उसे इससे कोई मतलब नहीं कि आपको तनख्वाह मिली या नहीं।
      इस शहर में अधिकतर लोग किराए पर ही रहते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि अपने मकान मालिक से खुश रहने वालों की संख्या बहुत कम होगी। कभी किराया तो कभी रात में दरवाजा बंद करने के समय को लेकर हमेशा कोई झंझट होता रहता है। सन 2007 में मैं पंजाब के लुधियाना में एक अखबार में काम करता था। शहर में नया-नया था। दफ्तर के साथियों के अलावा, किसी से अच्छी तरह परिचित नहीं था। खाने या रहने का कोई ठिकाना नहीं। बहुत कोशिश के बाद किराए का एक कमरा मिला। मकान मालिक शिक्षक थे। शुरू-शुरू में मुझे बहुत अच्छे लगे। घर साफ-सुथरा था। उनके घर में अमरूद के कई पेड़ थे। अपने परिवार के सदस्यों के साथ ही वे मुझे भी अमरूद खाने को देते थे। बदले में मैं उन्हें अखबारी दुनिया की बातों से वाकिफ कराता रहता था।
      बहरहाल, दफ्तर में हम लोगों को बताया गया था कि इस बार की तनख्वाह एक हफ्ते देर से मिलेगी। सुन कर मैं घबराया हुआ था, क्योंकि पैसों की कमी थी। सबसे ज्यादा घबराहट मकान मालिक से थी कि उसे क्या कहूंगा। मैंने अगले दिन मकान मालिक को बताया कि अंकल, इस बार घर का किराया सात दिन देर से दूंगा। उन्होंने कहा कि ठीक है, मगर जरूर दे देना। उसके बाद वे हर रोज पूछते रहे। सातवें दिन जब तनख्वाह मिली तो उस दिन काम खत्म कर कमरे पर पहुंचने में रात के ढाई बज गए। मैंने जैसे ही दरवाजा खोला, मकान मालिक तुरंत उठ गए। वे आंगन में ही पलंग लगा कर सोए थे। मुझे देखते ही उन्होंने पैसे मांगे। सुन कर मुझे बहुत दुख हुआ। उनकी बातों से ऐसा लग रहा था कि मैं उसी रात भागने वाला हूं, उन्हें बिना बताए। कमरे में जाने से पहले उन्हें पैसा दिया। रात भर अपने किराएदार होने की लाचारी पर सोचता रहा।
     फिलहाल मैं दिल्ली के पांडव नगर इलाके में रहता हूं और एक साप्ताहिक में नौकरी करता हूं। शुरू में जब यहां एक मकान मिला, उसमें रहने के लिए जाने से पहले मकान मालिक ने हमें बुलाया। उन्होंने बहुत सारी सैद्धांतिक बातें कीं। फिर कहा कि तुम्हारी वजह से किसी को तकलीफ नहीं होनी चाहिए और किसी की वजह से तुम्हें तकलीफ हो तो भी बताना। किराएदारों का सम्मान हमारा सम्मान है। सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। बात पक्की होने के बाद मैं वहां रहने लगा। इस बीच मेरी शादी हुई और मैं पत्नी को भी यहीं ले आया। मुझे हैरानी हुई कि पत्नी के आते ही मकान मालिक ने कमरा छोड़ देने का फरमान सुना दिया। हालांकि वे अपने मकान में ही दो कमरे लेने को कह रहे थे, लेकिन पसंद नहीं होने की वजह से हमने मना कर दिया। उसी के बाद वे यह कमरा भी खाली कराने पर अड़ गए थे।
   मैंने किराएदारों की वजह से परेशान एक-दो मकान मालिक भी देखे हैं। लेकिन मैंने कोशिश की है कि ऐसी परेशानी की वजह नहीं बनूं। मुझे दुख होता है जब बिना किसी कारण के मकान मालिक अचानक कमरा खाली करने को कह देते हैं। क्या किराए के घर में रहने के साथ-साथ इस बात को याद रखना होगा कि आप अपने घर में नहीं हैं? मेरे पास चूंकि अपना घर नहीं है, इसलिए यह मेरी लाचारी है। मुझे इस शहर में रहना है तो अब दूसरा घर खोजना होगा।

Monday, June 11, 2012

प्रधानमंत्री की म्यांमार यात्रा : पूर्वोत्तर के लिए बेहद अहम


करीब 25 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने म्यांमार की यात्रा की. इस यात्रा से उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लोगों को काफी अपेक्षाएं थीं, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से इसे जो फायदा इस यात्रा से होने की उम्मीद थी, वह नहीं हुआ. बावजूद इसके यह यात्रा इस क्षेत्र के लिए, दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों और बेहतर भविष्य का रास्ता खोलती ज़रूर नज़र आई. म्यांमार की मिलिट्री जुंटा द्वारा लोकतंत्र वापस लाने के आश्वासन के चलते और आंग सान सू की के संसदीय चुनाव में सफल होने से दुनिया के कई देशों द्वारा म्यांमार के ऊपर लगाए गए प्रतिबंध अब धीरे-धीरे वापस लिए जा रहे हैं. ऐसे समय में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यह यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण रही. इस बहु प्रचारित यात्रा में मज़बूत व्यापार एवं निवेश संबंधों, सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास, दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी में सुधार, क्षमता निर्माण और मानव संसाधन पर विशेष ध्यान दिया गया.

प्रधानमंत्री की इस यात्रा के पहले 18 मई को उनके सलाहकार टीकेए नायर के नेतृत्व में एक टीम इंफाल गई थी, जहां प्रधानमंत्री की म्यांमार यात्रा और कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की गई थी. खासकर, म्यांमार और भारत के बीच क्या-क्या महत्वपूर्ण व्यापारिक कदम उठाए जा सकते हैं? यह सारी बातचीत म्यांमार के तमु स्थित बॉर्डर ट्रेड के कार्यालय में हुई थी. बहरहाल, प्रधानमंत्री की इस यात्रा से इंफाल-मंडले बस सेवा को भी हरी झंडी दिखा दी गई, लेकिन म्यांमार में सुविधाजनक सड़कों के अभाव के चलते यह बस सेवा शुरू होने में विलंब हो सकता है. इसके जरिए सड़क मार्ग द्वारा दोनों देशों के लोग कम खर्च में आ-जा सकते हैं. इंफाल-मंडले बस सेवा शुरू होने से पूर्वोत्तर के राज्यों में विकास की रोशनी फैलेगी. यह बस सेवा नई दिल्ली-लाहौर और कोलकाता-ढाका बस सेवा की तर्ज पर भारत और म्यांमार के बीच संबंध सुधारने का काम करेगी. एक प्रमुख समझौता सीमा पर सड़क मार्ग के विकास को लेकर हुआ. प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि भारत तामू-कलेवा मार्ग पर 71 पुलों की मरम्मत कराएगा. दोनों देश एक प्रमुख मार्ग को राजमार्ग में तब्दील करने का काम करेंगे. भारत के मोरे से लेकर थाईलैंड के माई सोट तक राजमार्ग बनाया जाएगा. इसके जरिए म्यांमार होते हुए भारत से थाईलैंड का सफर सड़क मार्ग से किया जा सकेगा. इससे पहले बीते 21 जनवरी को इंडो-म्यांमार बॉर्डर ट्रेड एग्रीमेंट 1994 लागू किया गया, जिसके तहत 22 एग्रीकल्चर/प्राइमरी प्रोडक्ट्‌स की खरीद-बिक्री पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ होती रही है.

जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, उनमें अरुणाचल प्रदेश में पांगसू दर्रे पर एक सरहदी हाट खोलना भी है. यह बांग्लादेश की सीमा पर स्थित हाट की तरह काम करेगी. इससे पूर्वोत्तर के लिए व्यापार की संभावनाएं बढ़ेंगी, खासकर मणिपुर में म्यांमार की सस्ती वस्तुएं, जैसे मोमबत्ती, साबुन, सर्फ, कंबल एवं खाद्य सामग्री आदि, जिनका लोग पहले से भी ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. सरहदी हाट खोलने से इस तरह की वस्तुएं आसानी से पूर्वोत्तर के गांवों में उपलब्ध हो सकेंगी. इसके अलावा अकादमिक सहयोग के लिए भी समझौता हुआ, जिसके तहत म्यांमार के दागोन विश्वविद्यालय और कोलकाता विश्वविद्यालय आपस में सहयोग करेंगे. प्रधानमंत्री की यह यात्रा पूर्वोत्तर के लिए एक और मामले में अहम रही. इन दिनों यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रमुख परेश बरुआ म्यांमार में हैं. जबसे बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने उल्फा सहित पूर्वोत्तर के विभिन्न आतंकी संगठनों के ़िखला़फ अपना अभियान तेज कर दिया है, तबसे इन संगठनों के लोगों ने म्यांमार को अपनी शरणस्थली बना लिया है. यदि म्यांमार सरकार भी बांग्लादेश की तर्ज पर अपना अभियान तेज कर दे तो उक्त आतंकी संगठन अपने-अपने राज्यों में वापस आने और देश की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए विवश हो जाएंगे. म्यांमार ने कहा भी है कि वह आतंकवादियों को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा. सेना ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के चरमपंथियों से कहा है कि वे अविलंब म्यांमार छोड़ दें.


म्यांमार के राष्ट्रपति द्वारा दिए गए भोज में मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत और म्यांमार स्वाभाविक सहयोगी हैं और इन समझौतों से दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों में तेजी आएगी. भारत के एक्सिस बैंक और म्यांमार के विदेश व्यापार बैंक के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत म्यांमार को पांच अरब डॉलर का रियायती कर्ज दिया जाएगा. इससे दोनों देशों के आपसी कारोबार को बढ़ावा मिलेगा. भारतीय बैंक म्यांमार में प्रतिनिधि शाखाएं खोलने की इजाजत देंगे. भारतीय रिजर्व बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ म्यांमार ने करेंसी प्रबंधन के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए. यात्रा के अंतिम दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने म्यांमार में जनतंत्र के लिए संघर्ष की प्रतीक रहीं आंग सान सू की से मुलाकात की और उन्हें यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी का पत्र सौंपते हुए दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू स्मारक व्याख्यान माला के लिए आमंत्रित किया. सू की ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वह इस आमंत्रण को निभा सकेंगी. नोबेल से सम्मानित सू की के अविस्मरणीय योगदान की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके जीवन, संघर्ष और दृढ़ता ने दुनिया के लाखों लोगों को प्रेरित किया. उन्होंने भरोसा जताया कि राष्ट्रपति थीन सीन द्वारा राष्ट्रीय सहमति के लिए जारी प्रयासों में सू की अहम किरदार अदा करेंगी. प्रधानमंत्री की यह यात्रा अक्टूबर 2011 में थीन सीन की भारत यात्रा के समय तय हो गई थी. वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा दिसंबर 1987 में म्यांमार यात्रा के बाद इस देश का दौरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं.