पिछले हफ्ते दिल्ली के लाजपत नगर में अरुणाचल प्रदेश के युवक नीडो तानिया की हत्या केवल कानून व्यवस्था की विफलता का मामला नहीं है. इस घटना ने दिल्ली पुलिस की काहिली के साथ-साथ सामाजिक संवेदनहीनता पर भी सवाल उठाए हैं. अपने रंगे हुए बालों पर एक दुकानदार की टिप्पणी का विरोध करने पर तानिया को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया गया. बाद में उसकी मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने भी इस बात की पुष्टि की है कि अंदरूनी चोटों की वजह से उसकी मृत्यु हुई. इस मामले में अगर पुलिस ने पर्याप्त सतर्कता और तत्परता दिखाई होती, तो शायद इस घटना के इतना त्रासद मोड़ लेने से बचा जा सकता था. मगर मौके पर मौजूद लोगों ने भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया. वे चुपचाप तमाशबीन बने रहे. सवाल है हम कैसे समाज में जी रहे हैं. सामाजिक संवेदनहीनता के ढेर सारे उदाहरण दिए जा सकते हैं. हाल में उत्तर प्रदेश में अवैध रूप से लकड़ी की कटाई की शिकायत करने पर एक आदमी को दिनदहाड़े पीट-पीट कर मार दिया गया. पर तानिया की मौत ने पूर्वोत्तर के लोगों के साथ बाकी देश में हो रहे बर्ताव पर भी सवाल उठाया है. दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और यहां देश के तमाम हिस्सों से लोग नौकरी और पढ़ाई-लिखाई आदि के लिए आते और रहते हैं. इसलिए स्वाभाविक ही दिल्ली को एक लघु भारत के तौर पर देखा जाता है. पर क्या भारत की विविधता का सम्मान करना दिल्ली का संस्कार बन पाया है. यों तो पूर्वोत्तर के लोगों के प्रति पराएपन का भाव देश के बहुत से हिस्सों में देखा जाता है. पर दिल्ली में उनके प्रति असहिष्णुता की घटनाएं दूसरे महानगरों से ज्यादा होती हैं. उन पर छींटाकशी की जाती है. अपमानजनक फिकरे कसे जाते हैं. उनकी नागरिकता या राष्ट्रीयता पर शक किया जाता है. कई बार अधिकारी या कर्मचारी भी ऐसे प्रश्न करते हैं जैसे वे किसी और देश के रहनेवाले हों.
हाल में आए एक सर्वेक्षण से भी यह हकीकत उजागर हुई कि दिल्ली में पूर्वोत्तर के लोगों के साथ भेदभाव होता है उनके रहन-सहन या कुछ अलग तरह के पहनावे आदि को लेकर ताने कसे जाते हैं. मखौल उड़ा वाली टिप्पणियां की जाती हैं. इसलिए यह हैरत की बात नहीं कि मणिपुर, नगालैंड या अरुणाचल के दिल्ली में रह रहे लोग दूसरों से घुलने-मिलने में हिचकते हैं और हमेशा असुरक्षा के भाव में जीते हैं. तिब्बतियों के साथ भी यह होता है. तानिया की मौत ने दिल्ली के संवेदनशील लोगों को स्तब्ध किया है और इस घटना पर हुए विरोध प्रदर्शनों में उन्होंने भी अपनी आवाज मिलाई है. दिल्ली सरकार ने घटना की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं. पर यह काफी नहीं है. दिल्ली पुलिस यह दावा करती रही है कि उसने अपने महकमे को और संवेदनशील और जवाबदेह बनाने के उपाय किए हैं. उसके इस दावे पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा है. पर पूर्वोत्तर के लोगों के प्रति कई बार निमर्मता की हद तक जो पूर्वग्रह बाकी देश में दिखते हैं, उनसे कैसे निपटा जाएगा.
पूर्वोत्तर के प्रति न हमारी राजनीति में अपनत्व और चिंता का भाव दिखता है न शिक्षा-दीक्षा में. बाकी देश के पढ़े-लिखे लोग भी पूर्वोततर की संस्कृति के बारे में कुछ जानना तो दूर वहां के बारे में सामान्य भौगोलिक जानकारी भी नहीं रखते. क्या यह त्रासद घटना हमारे लिए कोई ऐसा सबक बन पाएगी, जिससे पूर्वोततर के लोग देश में कहीं भी परायापन और असुरक्षा महसूस न करें!
साभार-जनसत्ता
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