हाल में मणिपुर के दो विधानसभा
क्षेत्र इंफाल वेस्ट और इंफाल ईस्ट के म्यूनिस्पल कॉरपोरेशन के चुनाव हुए. इंफाल
म्यूनिस्पल कॉरपोरेशन वेस्ट इंफाल से 20 वार्ड और
ईस्ट इंफाल से सात वार्डों का समूह है. 27 सीट के
इस चुनाव में सत्ता पक्ष कांग्रेस ने 12 सीटें
जीतीं, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने 10 सीटें और पांच निर्दलीय. यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों
के बीच शक्ति परीक्षण जैसा था. इस जीत से कांग्रेस को लगता है कि अब भी आम जनता
कांग्रेस पार्टी के समर्थन में है. कांग्रेस पार्टी, मणिपुर के अध्यक्ष टीएन हाउकिप को विश्वास है कि इस जीत के बाद कांग्रेस
पार्टी को 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में
भी लोगों का समर्थन मिलेगा और जीत उन्हीं की होगी. लेकिन हकीकत इससे कहीं कोसों
दूर है. कांग्रेस को लेकर आम लोगों में असंतोष है. जनता की सोच है कि प्रदेश में
भ्रष्टाचार और कुशासन कांग्रेस की नियति बन गई है. कांग्रेस आम जनता की जान-माल की
रक्षा नहीं कर पा रही है. कांग्रेस सरकार पर लगातार प्रदेश में एनकाउंटर कराने के
आरोप लगते रहे हैं, जिसे हाल में सुप्रीम कोर्ट ने भी
सही ठहराया है. हर मोर्चे पर कांग्रेस सरकार विफल साबित हो रही है. इनर लाइन परमिट
को लेकर एक महीने से ज्यादा समय तक स्कूली बच्चे सड़क पर प्रदर्शन करते रहे. उनपर
लाठियां गोलियां और पानी की बौछारें की गईं. कई छात्र घायल हुए फिर भी सरकार चुपचाप तमाशा देखते रही. जब राजनीतिक पार्टियां
सामाजिक मुद्दों पर चुप रहेंगी, तब जनता का मुखर
होना स्वाभाविक है. वही हाल मणिपुर का है. जिस मुद्दे पर सरकार, पार्टियों और नेताओं को आगे आना था, उसके लिए आम जनता को प्रदर्शन करना पड़ रहा है. सड़क पर लोग विरोध प्रदर्शन
कर रहे हैं, नारे लगा रहे हैं. इन मामलों पर चाहे
कोई भी नेता किसी भी पार्टी का क्यों न हो, उनकी ओर से न कोई बयान आया और न ही लोगों के बीच जाकर उन्होंने अपनी बातें
रखीं. दूसरा, इरोम शर्मिला 15 साल से भूख हड़ताल पर हैं. कांग्रेस सरकार का कोई नेता या
मंत्री आजतक शर्मिला से मिलने नहीं गया.
ये अलग बात है कि कांग्रेस 15 साल से शासन कर रही है, इसलिए उसकी पैठ अब भी प्रदेश के कोने-कोने में है. पार्टी के कार्यकर्ता
आम लोगों की बात सुनने तक को तैयार नहीं हैं. मणिपुर में चाहे नेशनल पार्टी हो या
स्थानीय पार्टी, सभी यहां की समस्याओं को सुलझाने में
विफल रहे हैं. कांग्रेस पार्टी भूमिगत संगठनों से शांति वार्ता कर अपनी वाहवाही
लूटने में मगन है, तो वहीं अफस्पा को लेकर सरकार अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है.
दूसरी तरफ, भाजपा ने भी लोकसभा चुनाव के पहले अफस्पा को मुद्दा बनाया था, लेकिन केंद्र में सरकार आने के बाद हाथ खड़े कर दिए. एमपीपी
(मणिपुर पीपुल्स पार्टी) एक स्थानीय पार्टी है. इस पार्टी से लोगों को बहुत
उम्मीदें थीं. लेकिन यह पार्टी भी दूसरी पार्टियों की तरह साबित हुई. मणिपुर की
स्थानीय समस्याओं पर अपनी आवाज बुलंद करने के बजाय कार्यकर्ता चुपचाप आंख-कान बंद
कर बैठे हैं.
प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने
अभी से चुनावी रणनीति की तैयारी शुरू कर दी है. सबसे पहले राज्य के अध्यक्ष टीएच
चाउबा सिंह को बदला गया. चाउबा सिंह ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं लोकसभा में सांसद रह चुके हैं. 1999 में वे यूनियन मिनिस्टर ऑफ स्टेट, कल्चर, यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स मंत्री
थे. चाउबा प्रदेश में एक मजबूत भाजपा नेता हैं, इसके बावजूद उनकी जगह पर आरएसएस कार्यकर्ता केएच भवानंद को पार्टी अध्यक्ष
बनाया गया. चाउबा को राज्य चुनाव प्रबंधन कमेटी का संयोजक बनाया गया है. भवानंद एक
दशक पहले 1995 में भाजपा में शामिल हुए थे. पहले
वे संघ प्रचारक के तौर पर राज्य में काम कर रहे थे. भवानंद प्रदेश भाजपा में
कोषाध्यक्ष, महासचिव और उपाध्यक्ष आदि पद पर
कार्य करते रहे हैं.
केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद
पूर्वोत्तर खास कर मणिपुर में भी भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है. भाजपा
मणिपुर में सोशल मीडिया के जरिए कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ाने पर जोर दे रही है.
भाजपा कार्यकर्ता प्रदेश में जगह-जगह घूमकर पार्टी का प्रचार करते देखे जा रहे
हैं. वहीं वे स्थानीय समस्याओं पर भी लोगों की मदद कर रहे हैं. पिछले साल जब
प्रदेश में बाढ़ आई थी, तब सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी से अधिक
बाढ़ पीड़ित परिवारों की मदद भाजपा कार्यकर्ताओं ने की. असम चुनाव की जीत के बाद
भाजपा की उम्मीदें और बढ़ गई हैं.
बहरहाल, राज्य की प्राथमिकता है अशांत राजनीतिक और सामाजिक माहौल को बदलना,
भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाना, रोजगार के अवसर प्रदान करना और बिजली, पानी, सड़क व शिक्षा की समस्या को दूर करना.
इस दिशा में कांग्रेस विफल रही है. शेष भारत से जोड़ने वाली सड़क नेशनल हाईवे 53 के बंद होने से मणिपुरियों की रोजी-रोटी छिन जाती है. इस
हाईवे की स्थिति दयनीय हो चुकी है. बारिश के मौसम में यहां अक्सर लैंड स्लाइड होता
है, जिससे राहगीरों को आने-जाने में बाधा होती
है. लूट-खसोट, यात्रियों को जान से मारना, नगा चरमपंथियों की मांगें पूरी नहीं करने पर ड्राइवरों को
मारना-पीटना, लोगों को धमकी देना यहां आम बात है.
इसे दूर करने के लिए हाईवे फोर्स रखने की जरूरत है. यहां बिजली-पानी की समस्याएं
भी गंभीर हैं. प्रदेश में आज भी लोगों के पास पीने का पानी नहीं है. 80 प्रतिशत लोग तालाब का पानी पीने को मजबूर हैं. गांवों में
बिजली दो से चार घंटे ही मिल पाती है. शिक्षा के क्षेत्र में भी हाल बेहाल है.
अशांत माहौल के चलते प्रदेश में अक्सर बंद की स्थिति रहती है. इस वजह से साल में
छह महीने ही स्कूल, कॉलेज खुल पाते हैं. बच्चे शिक्षा से
वंचित होने के कारण प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़ रहे हैं. राज्य के अलग-अलग
संप्रदाय के लोगों में हमेशा तनाव का माहौल रहता है. पहाड़ बनाम घाटी के मुद्दे पर
हमेशा टकराव की स्थिति बनी रहती है. इस टकराव को राजनीतिक पार्टियां अपने निहित
स्वार्थ के लिए और भी खाद-पानी देती रहती हैं. इसका समाधान तभी संभव है, जब प्रदेश में राजनीतिक और सामाजिक शांति कायम हो. इसके लिए
हर राजनीतिक पार्टियों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है. अपने हित छोड़कर काम
करने पर ही इन समस्याओं का समाधान होगा. राज्य में राजनीतिक टक्कर कांग्रेस और
भाजपा में ही है. देखना है कि इस टक्कर में जनता की समस्याओं का कितना समाधान निकल
पाता है.
मणिपुर की राजनीतिक तस्वीर
पूर्वोत्तर भारत का राज्य मणिपुर एक
अशांत प्रदेश है, जिसकी आबादी 22 लाख है. अगले साल 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्य के कुल 60 विधानसभा सीटों में से 20 विधानसभा सीट
अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. यानी पहाड़ी क्षेत्र के राजनेता ही इन 20
सीटों पर खड़े हो सकते हैं. असम विधानसभा चुनाव होने के
बाद राष्ट्रीय पार्टियां अब मणिपुर पर नजर गड़ाए हैं. राज्य में मुख्यमंत्री ओक्रम
इबोबी सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार पिछले 15 सालों से है. मणिपुर की मुख्य राजनीतिक पार्टियों में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, कम्यूनिस्ट
पार्टी ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय जनता दल एवं नेशनलिस्ट
कांग्रेस पार्टी हैं. प्रमुख स्थानीय पार्टियों में मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी,
लोक जन शक्ति पार्टी, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस, मणिपुर पीपुल्स
पार्टी, फेडरल पार्टी ऑफ मणिपुर, नगा पीपुल्स फ्रंट, निखिल
मणिपुरी महासभा आदि हैं. मणिपुर में दो लोकसभा सीट हैं. इनर और आउटर. आउटर लोकसभा
सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इनर लोकसभा के अंदर 32 विधानसभा सीट है और आउटर में 28 विधानसभा सीट.
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