मणिपुर में 11वीं
विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है. राज्य में दो चरणों में 4
और 8 मार्च को चुनाव होंगे. मणिपुर में कुल 60
विधानसभा सीट हैं. पहले चरण में घाटी के 38 विधानसभा सीट
और दूसरे चरण में पहाड़ के 22 विधानसभा सीट पर चुनाव होगा. 10वीं
विधानसभा का कार्यकाल 18 मार्च 2017 को
समाप्त हो रहा है. यहां फिलहाल कांग्रेस के मुख्यमंत्री ओक्रम इबोबी सिंह तीसरी
बार अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं. मणिपुर में मुख्य नेशनल पार्टी कांग्रेस,
भाजपा और सीपीआई (एम) है. स्थानीय पार्टियों में तृणमूल कांग्रेस,
मणिपुर पीपुल्स पार्टी, लोक जनशक्तिपार्टी, बहुजन
समाज पार्टी, एनपीएफ, जदयू,
आम आदमी पार्टी, पीपुल्स रिसर्जेन्स एंड जस्टिस एलाइन्स
(प्रजा) आदि हैं.
इरोम शर्मिला के चुनाव में हिस्सा लेने के कारण
इस बार मणिपुर का चुनाव काफी दिलचस्प होगा. शर्मिला अफस्पा के खिलाफ 16
वर्षों से आमरण अनशन कर रही थीं. अब उन्होंने अपने आंदोलन का माध्यम राजनीति को
चुना है. सत्ता के जरिए अब वे अफस्पा की लड़ाई को आगे बढ़ाएंगी. उनकी प्रजा पार्टी 20
सीटों पर चुनाव लड़ेगी. मजे की बात तो ये है कि शर्मिला मुख्यमंत्री ओक्रम इबोबी के
विधानसभा सीट से उनके खिलाफ चुनाव लड़ेंगी. शर्मिला के चुनाव में उतरने से कांग्रेस
को नुकसान होना तय है. हालांकि, शर्मिला राजनीति में नई हैं और उनके
राजनीति में आने के फैसले से लोग नाराज भी हैं, इसके
बावजूद वे चुनाव में एक महत्वपूर्ण फैक्टर होंगी. एक राजनेता के रूप में देखने से
ज्यादा उनको लोग एक सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं, इसलिए
उनके राजनीति में आने के फैसले से लोग आहत हैं. सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर
शर्मिला पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं, लेकिन उस
लोकप्रियता को वे चुनाव में कितना भुना पाती हैं, इस पर
लोगों की नजरें टिकी हैं. ये भी सच है कि शर्मिला की हार एक तरह से मणिपुरी जनता
की हार होगी, क्योंकि अब तक वे जोशो-खरोश के साथ जनता की
लड़ाई लड़ रही थीं. लेकिन जब उन्होंने इस लड़ाई को राजनैतिक रूप से जारी रखने की
घोषणा की, तो वही जनता बिदक गई.
भाजपा ने भी इस सियासी जंग में कोई कसर नहीं
छोड़ी है. भाजपा मैरीकॉम को स्टार प्रचारक बनाने जा रही हैं. राज्य में मैरी की छवि
शर्मिला से कमतर नहीं है. वे ट्राइवल समुदाय से हैं, इसलिए
भाजपा को उम्मीद है कि मैरी को स्टार प्रचारक बनाने से कांग्रेस के विरोधी पहाड़ी
क्रिश्चियन धर्म मानने वाले लोग भाजपा की तरफ खींचेंगे. वैसे भी नरेंद्र मोदी के
प्रधानमंत्री बनने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है.
मणिपुर में पहले विधानसभा चुनावों में भाजपा को एक भी कैंडिडेट खड़ा करने के लिए
लोग नहीं मिलते थे, लेकिन अब स्थितियां तेजी से बदली हैं. असम में
भाजपा की सरकार बनने के बाद पूर्वोत्तर में भाजपा का मनोबल और भी मजबूत हुआ है.
मणिपुर के निवासियों की भी भाजपा में रुचि बढ़ी है. राज्य में कांग्रेस की सरकार लंबे समय से होने
के बाद भी भाजपा इस बार मुकाबले में होगी. भाजपा कार्यकर्ता केंद्र सरकार की
नीतियों का मणिपुर के गांव-गांव जाकर प्रचार करने में जुटे हैं. केंद्रीय मंत्री
भी हर दो माह में पूर्वोत्तर राज्योंं का दौरा कर लोगों का हालचाल ले रहे हैं. लुक
ईस्ट पॉलिसी के तहत रेल लाइनों पर खूब काम हो रहा है. त्रिपुरा और मिजोरम तक रेल
पहुंच गया है. मणिपुर में भी जिरिबाम तक रेल लाइनें बिछ गई हैं. उम्मीद है कि दो
तीन-साल में राजधानी इंफाल तक रेलवे ट्रैक पहुंच जाएंगे. राज्य में चल रहे इन
विकास कार्यों को देखकर लोगों में भी एक बदलाव की लहर चल पड़ी है. लोग महसूस कर रहे
हैं कि कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा राज्य के लिए कुछ तो कर रही है. उम्मीद है कि
प्रधानमंत्री मणिपुर में स्पोट्र्स यूनिवर्सिटी का उद्घाटन करेंगे. साथ में
मैरीकॉम की बॉक्सिंग इंस्टीट्यूट का भी उद्घाटन होगा. भाजपा का नया अध्यक्ष भवानंद
के बनने के बाद इंफाल के म्यूनिसिपल चुनाव में चार जगहों पर भाजपा की जीत हुई है.
कुल मिलाकर भाजपा की स्थिति राज्य में मजबूत दिख रही है.
कांग्रेस सरकार से राज्य के लोग खफा हैं. लोगों
को नौकरी दिलाने के नाम पर जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है. लोगों को लगता है कि
कांग्रेस सरकार केवल वादे करती है, जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं दिखता है.
हाल में नए सात जिलों की घोषणा भी चुनाव के नजदीक आने पर की गई. राजनीतिक जानकारों
का मानना है कि यह घोषणा 2011 में ही की जा सकती थी, तब
राज्य को ब्लॉकेड का सामना नहीं करना पड़ता. 2011 में 120
दिन की आर्थिक नाकेबंदी हुई थी, उसमें भी सरकार ने लूंज-पूंज तरीके से
काम किया. आम लोगों को आज भी इसकी जानकारी नहीं दी गई कि यूएनसी के साथ किन शर्तों
पर समझौता किया गया. वहीं, अफस्पा के मामले में भी कांग्रेस सरकार
ने कोई ठोस कार्य नहीं किया. शर्मिला 16 सालों से भूख
हड़ताल पर थीं, लेकिन राज्य का कोई मंत्री या मुख्यमंत्री उनसे
मिलने नहीं गया. इसे लेकर भी लोगों में काफी नाराजगी थी. यहां पुलिस और टीचर की
नौकरी के नाम पर भी खूब हंगामा होते रहा. इंटरव्यू होने के बाद भी नतीजों की घोषणा
नहीं की गई. इसे लेकर युवाओं में खासी नाराजगी थी. हाल में जब लोग आर्थिक नाकेबंदी
का सामना कर रहे थे, तब भी सरकार सोई रही. राजनीति के कुछ जानकारों
का कहना है कि राज्य में भाजपा की टक्कर सिर्फ कांग्रेस से है. मणिपुर में आम आदमी
पार्टी के पास कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है, जिसके
बूते चुनावी मैदान में उतरा जा सके. पिछले विधानसभा चुनाव में भी आप का परफॉर्मेंस
बुरा रहा था. लोग आम आदमी पार्टी में पूरी तरह भरोसा नहीं कर रहे हैं, इसका
एक कारण यह भी है कि मणिपुर की स्थिति बाकी राज्यों से अलग है. आम आदमी पार्टी
राज्य में अभी शुरुआती स्टेज पर है. बाकी पार्टियां सीपीआई एम, तृणमूल
कांग्रेस, मणिपुर पीपुल्स पार्टी, लोक जन शक्ति पार्टी, बहुजन
समाज पार्टी आदि की भी कोई मजबूत स्थिति नहीं है. इन दलों को कुछ सीटें भी मिल
जाएंगी, लेकिन वे सरकार बनाने की स्थिति में कतई नहीं होंगी. इस मामले में
मणिपुर में एक अनूठा समीकरण बनता है. यहां सभी राजनीतिक दल कांग्रेस को हराने के लिए एकजुट हो जाते हैं.
भाजपा और वाम दल भी एक साथ हो जाते हैं. एमपीपी, जो
मणिपुर की स्थानीय पार्टी है, उसकी स्थिति भी कमजोर हुई है. अधिकतर
स्थानीय पार्टियों के मजबूत दावेदार कांग्रेस और भाजपा में शामिल हो गए हैं. कुल
मिलाकर कह सकते हैं कि मणिपुर के चुनाव की स्थिति सत्ता पाने और बचाने के लिए
संघर्ष होगी.
मणिपुर विधानसभा चुनाव की अनुसूची
फेज 1 फेज 2
अधिसूचना की तारीख 8.2.2017 (बुधवार) 11.2.2017 (शनिवार)
नामांकन की अंतिम तिथि 15.2.2017 (बुधवार) 18.2.2017
(शनिवार)
नामांकन की जांच 16.2.2017 (गुरुवार) 20.2.2017 (सोमवार)
उम्मीदवारी वापसी लेने की तारीख 18.2.2017 (शनिवार) 22.2.2017 (बुधवार)
चुनाव की तारीख 4.3.2017 (शनिवार) 8.3.2017 (बुधवार)
मतगणना की तारीख 11.3.2017 (शनिवार) 11.3.2017 (शनिवार)
समापन की तिथि 15.3.2017 (बुधवार) 15.3.2017 (बुधवार)
चुनाव की तिथि तय होने के बाद भी नाकेबंदी वापस
नहीं लेंगे ः यूएनसी
इधर, चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद यूएनसी ने कहा है कि नेशनल हाईवे से ब्लॉकेड नहीं हटाया जाएगा. मणिपुर में नगा बहुल इलाकों में अशांति को दूर किए बिना शांतिपूर्ण चुनाव संभव नहीं होगा. यूएनसी के पूर्व अध्यक्ष केएस पोल लियो ने कहा कि नाकेबंदी वापस लेने की अपील राज्य सरकार ने कभी नहीं की है. सरकार की तरफ से राजनीति तौर पर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. चुनाव आयोग की तरफ से राज्य में चुनाव की तारीख तय की गई है. हमारे पास आर्थिक नाकेबंदी को और तेज करने के अलावा कोई चारा नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार राज्य में रह रहे नगाओं को उपेक्षा की नजर से देखती है. राज्य में सात नए जिले बनाने में नगाओं की राय नहीं ली गई. अब राज्य के नगा बहुल इलाकों में चुनाव शांति से हो पाएगा, यह प्रशासन के लिए भी चिंता की बात होगी.
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