मुस्लिम संगठनों ने किया मुस्लिम महिला
उम्मीदवार का विरोध
मणिपुर के चुनावी इतिहास में यह पहली बार हो
रहा है कि कोई मुस्लिम महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरी हो. नजिमा बीबी
मणिपुर की पहली मुस्लिम महिला उम्मीदवार हैं. चार मार्च को हो रहे राज्य के पहले
चरण के चुनाव में नजिमा, इरोम शर्मिला की पार्टी पीपुल्स रिसर्जेन्स
एंड जस्टिस एलाइन्स पार्टी (प्रजा) से
चुनाव लड़ने जा रही हैं. नजिमा प्रजा पार्टी की सह-संस्थापक भी हैं. उनका कहना है
कि वह गरीबों और शोषितों की आवाज बनकर चुनाव मैदान में उतरी हैं. वह राज्य के
अल्पसंख्यक समुदायों के बीच जाकर चुनाव चुनाव प्रचार कर रही हैं. हालांकि नजिमा के
चुनाव मैदान में उतरने के ऐलान से मणिपुर के तमाम मुस्लिम संगठन खफा हैं. ये संगठन
नजिमा को चुनाव मैदान से हटाने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. इन
संगठनों ने नजिमा को धमकी भी दी है कि मरने के बाद उनको दफनाने के लिए भी जमीन
नहीं दी जाएगी. इस धमकी का विरोध करते हुए नजिमा ने उन मुस्लिम संगठनों से सवाल
किया कि उनकी क्या गलती है और वे क्यों चुनाव नहीं लड़ें? नजिमा ने
पूछा है कि क्या मैं महिला हूं इसलिए चुनाव नहीं लड़ सकती? यह
विडंबना ही है कि एक तरफ पूरी दुनिया में महिला सशक्तिकरण के नाम पर आंदोलन हो रहे
हैं और दूसरी तरफ महिलाओं के चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेने पर पाबंदी लगाई जा
रही है. नजिमा बीबी के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने वाले संगठन महिलाओं को घर में
कैद रखकर धर्म और समाज के प्रति क्या प्रतिमान स्थापित करना चाहते हैं.
मणिपुर में मुस्लिमों की आबादी कुल आबादी की छह
प्रतिशत है. यहां दो मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्र हैं, लिलोंग
और वाबगाई. नजिमा दोनों मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ेंगी. स्थानीय
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, नजिमा के चुनाव मैदान में आने से
कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. राज्य के अल्पसंख्यक मुस्लिमों का झुकाव पिछले कई
वर्षों से कांग्रेस की तरफ ही रहा है. हालांकि यह भी सच है कि कांग्रेस ने अब तक
सियासी फायदे के लिए ही इनका इस्तेमाल किया है, जमीनी
स्तर पर इनके विकास के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. नजिमा के चुनाव मैदान में
उतरने का यह भी एक कारण है. नजिमा सत्ता में भागीदार होकर अपने समुदाय के पिछड़ेपन
को दूर करना चाहती हैं.
29 जनवरी को नजिमा बीबी समेत प्रजा पार्टी के
अन्य नेताओं ने मणिपुर की गवर्नर नजमा हेपतुल्ला से मुलाकात की. इन नेताओं ने
राज्यपाल से मांग की कि मणिपुर के हित में अफ्सपा को तत्काल हटा देना चाहिए.
मणिपुर यूनिवर्सिटी के कैंपस में बने असम रायफल्स के कैंप को भी हटाने की मांग की
गई. मणिपुर की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के मुद्दे पर इन्होंने
राज्यपाल से बातचीत की. नजिमा बीबी ने राज्यपाल को इस बात से भी अवगत कराया कि
उनके चुनाव लड़ने के ऐलान से राज्य के मुस्लिम संगठनों को ऐतराज है और उन्होंने
नजिमा को धमकी दी है.
नजिमा बीबी के अब तक के सफर पर गौर करें,
तो साफ समझा जा सकता है कि मणिपुर में महिला सशक्तिकरण की बात कितनी
खोखली है. नजिमा को बचपन से ही विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है. वह जब छठी
कक्षा में थीं, तो क्लास में अकेली लड़की थी. स्कूल के समय में
भी उन्हें यौन उपहास झेलना पड़ा था. यही कारण भी था कि घर वालों ने छोटी उम्र में
ही नजिमा की शादी कर दी. हालांकि यह शादी ज्यादा दिन नहीं चली और एक साल बाद ही
नजिमा अपने पति से अलग हो गईं. नजिमा स्वाभिमानी और स्वावलंबी महिला हैं. तलाक के
बाद वह अपने घर लौटीं और मोहल्ले की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर बचत कोष
शुरू किया. इस बचत कोष में महिलाएं हर रोज एक मुट्ठी चावल इकट्ठा करतीं और एक
महीने के बाद चावल को बेचकर उसी पैसे का इस्तेमाल पशुपालन में करती थीं. नजिमा ने
स्थानीय महिलाओं के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप भी शुरू किया था. जब ये महिलाएं अपने
पैरों पर खड़ी हुईं, तो इनमें घरेलू हिंसा से लड़ने के लिए भी बल
मिला.
हालांकि पार्टी की संयोजक इरोम शर्मिला नजिमा
के साथ मजबूती से खड़ी हैं. उन्होंने कहा भी है कि हमारी पार्टी महिलाओं को ज्यादा
सशक्त बनाने पर बल दे रही है. यही कारण है कि प्रजा पार्टी की 40
प्रतिशत उम्मीदवार महिलाएं हैं और कार्यकारी सदस्यों में भी अधिकतर महिलाएं ही
हैं. हालांकि प्रजा पार्टी की संयोजक इरोम शर्मिला ने अपनी पार्टी की तरफ से सिर्फ
10 सीटों पर ही उम्मीदवार
उतारने का फैसला किया है. इन सामाजिक चुनौतियों
के बीच शर्मिला और नजिमा के सामने एक बड़ी समस्या चुनावी फंड की भी है. शर्मिला ने
मीडिया के सामने कहा भी कि नई पार्टी होने के कारण उनके सामने फंड का संकट है.
प्रजा पार्टी चुनावी चंदे के द्वारा अब तक साढ़े लगभग चार लाख रुपए ही इकट्ठा कर
पाई है. इसमें से भी ज्यादातर चंदे ऑनलाइन माध्यमों से मिले हैं. कैश या चेक के
माध्यम में अब तक केवल 60-70 हजार ही इकट्ठा हो पाया है. चुनाव आयोग के
अनुसार राज्य में एक केंडिडेट को 20 लाख तक खर्च करने की अनुमति है. लेकिन
प्रजा पार्टी की तरफ से चुनावी मैदान में उतर रहे 10
उम्मीदवारों को चुनावी खर्च के लिए मात्र 40 हजार
रुपये प्रति उम्मीदवार ही मिल पाएगा. इसी फंड की कमी के कारण चुनाव प्रचार के लिए
शर्मिला और नजिमा इंफाल से 35 किमी दूर तक भी साइकल चलाकर ही जाती
हैं. उनके साथ पार्टी के अन्य कार्यकर्ता भी साइकल से ही होते हैं.
इन सबके बीच मणिपुर में आर्थिक नाकेबंदी की
समस्या जस की तस बनी हुई है. 100 दिन से भी ज्यादा हो गए लेकिन हालात
में सुधार देखने को नहीं मिल रहा है. लोगों की परेशानी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है.
केंद्र, मणिपुर सरकार और यूएनसी के नेताओं के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन
कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आ रहा है. बिना नाकेबंदी हटाए आगामी 4 और
8 मार्च को विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक कराए जा सकेंगे, इसकी
भी संभावना कम ही है.
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