
आजादी के बाद वह स्वर्ण दिवस आया, जब 14 सितंबर 1949 ई. को हिंदी राजभाषा के गौरवपूर्ण पद पर सुशोभित हुई। यह 14 सितंबर का सुखद और महत्वपूर्ण दिवस एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में हर साल गर्व के साथ हम मनाते हैं। यह दिवस भारतीय इतिहास के पन्ने पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा, राजभाषा और संपर्क भाषा है। हिंदी की जननी संस्कृत है। हिंदी प्राकृत, पाली, अपभ्रंश की गोद में खेलती और पलती हुई वर्तमान रूप में आई है। इस की लिपि देवनागरी है, जो दुनिया की सबसे ज्यादा वैज्ञानिक लिपि है। हिंदी दुनिया की एक समृद्घ भाषा है। देश को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिंदी ही हो सकती है। रवींद्रनाथ ठाकुर ने कहा ’ उस भाषाको राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, जो देश के सबसे बड़े हिस्से में बोली जाती हो, अर्थात हिंदी।’विश्व के 104 विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन और अध्यापन होता है। अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यूएनओ में भी हिंदी ने अपना परिचय दिया है। हिंदी की फिल्में दुनिया में प्रतिष्ठा पा चुकी हैं। परंतु दुख की बात यह है कि आजादी के 60 वर्षों बाद भी हिंदी पूर्ण रूप से राजभाषा का पद नहीं प्राप्त कर सकी है। यह हमारी राजभाषा की कमी नहीं है। यह हमारी सोच का परिणाम है कि हम आज भी अंगरेजी भाषा की दासता झेल रहे हैं। अंग्रेजी के पिट्ठू अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए यह दुखद स्थिति बनाए रखना चाहते हैं। रूस, चीन, फ्रांस, इजराइल, लंका, जर्मन, अलजीरिया, न्युजीलैंड आदि देश जब अपनी-अपनी भाषाओं में दुनिया में अपनी पहचान बना सकते हैं, तो हम अपने देश की भाषा के द्वारा क्यों नही बना सकते? उन देशों ने अंग्रेजी की गुलामी कभी स्वीकार नहीं की। भारत में अंग्रेजी का बना रहना क्या देश की प्रतिष्ठा के साथ मजाक नहीं है? डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा ‘ राष्ट्रभाषा का प्रचार करना मैं राष्ट्रीयता का एक अंग मानता हूं।’हिंदी आज करोड़ों की भाषा के रूप में लोकप्रिय है। देश की सीमा को पार कर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए हिंदी विश्व भाषा की दौड़ में शामिल है। वह दिन दूर नहीं, जब हिंदी विश्वभाषा की कोटि में पहुंच कर अपनी गुणवत्ता की किरणें बिखेरेगी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा ’अगर हिंदुस्तान को हमें एक राष्ट्र बनाना है, तो राष्ट्रभाषा हिंदी ही हो सकती है।’आज हम हिंदी के हितैषी, प्रचार-तंत्र, समाचारपत्र, सिनेमा, दूरदर्शन, आकाशवाणी, स्वयंसेवी संस्थाएं हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कृत-संकल्प हैं। हिंदी भारत की आत्मा है। हिंदी भारत की मर्यादा है। हिंदी भारत की गंगा है। हिंदी भारत माता के मस्तक की बिंदी है। बिना हिंदी के हिंदुस्तान की कल्पना नहीं की जा सकती। हिंदी को अपनाए बिना राष्ट्रीय एकता संभव नहीं। हिंदी का आंदोलन भारतीयता का आंदोलन है। हिंदी के बिना भारत की राष्ट्रीयता की बात करना व्यर्थ है। हिंदी के बिना जनतंत्र की बात केवल धोखा मात्र है। हिंदी में तुलसी के राम हैं। सूरदास के कृष्ण हैं। मीरा के आंसू हैं, तो भूषण का रण गर्जन है। हिंदी हृदय को हृदय से जोड़ने वाली भाषा है। भारतेंदु जी ने कहा
’निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को सूल।।
अर्थात अपनी भाषा की उन्नति ही सभी प्रकार की उन्नति की जड़ है। बिना अपनी भाषा के ज्ञान के हृदय की पीड़ा दूर नहीं हो सकती है।
हमारे मन में राष्ट्रभाषा के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। हिंदी के लिए सेवा, लगन और बलिदान की आवश्यकता है। हमलोग हिंदी को मन-कर्म-वचन से इसे राजरानी के पद पर बैठाने की चेष्टा करेंगे।
मेरी शुभकामना है कि हमारी राष्ट्रभाषा-राजभाषा हिंदी दिन-प्रतदिन विकास करती रहे और सफलता की चोटी पर पहुंच कर अपना आलोक सभी दिशाओं में फैलाए।