यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Saturday, July 18, 2009

बोलबम के जयघोष के बीच श्रावणी मेला शुरू

सावन की रिमझिम फुहार व बोलबम के जयघोष के बीच 7 जुलाई मंगलवार को देवघर के श्रावणी मेला शुरू हो गया. शरुआत का आयोजन कांवरिया पथ पर झारखंड के प्रवेश द्वार दुम्मा में मुख्यु अतिथि राज्यकपाल के सलाहकार टीपी सिंह ने परंपरागत वैदिक मंत्रोच्चोरण के साथ फीता काट कर उदघाटन किया. राज्यलपाल के सलाहकार सह मंदिर प्रबंधन बोर्ड के अध्य क्ष सिन्हा ने कहा कि श्रद्धालुओं को सुगम दर्शन कराने के साथ देवघर आने पर एक सुखद अनुभूति हो, इसकी व्यकवस्थात की गई है, ताकि कांवरिया यहां से अविस्म रणीय याद लेकर जाएं. मेले के पहले दिन में 50 हजार श्रद्धालुओं ने जल चढा.



झारखंड के देवघर में लगने वाले इस मेले का सीधा वास्ता बिहार के सुल्तारनगंज से है. यही गंगा नदी से जल भरने के बाद बोलबम के जयघोष के साथ कांवरिए नंगे पाव से 105 किमी देवघर की यात्रा आरंभ करते हैं. इस बार पहली बार हुआ है कि बिहार के सुल्ताएनगंज में जिला प्रशासन की लचर व्य वस्थार के कारण मंच तैयार होने के बावजूद मेले का उदघाटन नहीं किया. पहली बार मेला बिना उदघाटन ही शुरू हो गया. विभागीय मंत्री इसको प्रशासनिक चूक मानते हैं. सबसे बडी गलती तो यह है कि मंत्रियों और प्रमुख लोगों को आमंत्रण ही नहीं मिल सका. यह दुर्भाग्यट है कि इतने बडे मेले के लिए आमंत्रण तक पहुंचा नहीं पाए. बावजूद हजारों कांवरियों ने अजगैबीनाथ व अन्यि घाटों पर पवित्र गंगा में डुबकी लगा कर जल उठाया. हर साल डाक बमों को प्रमाण पत्र दिया जाता है. इससे मंदिर में उन लोगों को पहले जल चढाने का मौका मिलता था, मगर इस बार जिला प्रशासन ने प्रमाण पत्र नहीं दिया. कांवरियों ने हंगामा भी किया, फिर भी प्रमाण पत्र नहीं दिया. इसके बाद गुजरात, नागपुर, मथुरा और सुदूर नेपाल सहित अन्या राज्यों से पहुंचे डाक कांवरिए बिना प्रमाण पत्र के ही बाबा के दरबार की ओर चल पडे. बिहार के मुख्यामंत्री नीतीश कुमार ने झारखंड के राज्यरपाल सैय्यद सिब्तेह रजी को फोन पर बात की कि पुराने जमाने से चली आ रही डाक बमों की परंपरा पर छेडछाड न हो.

एक महीना तक चलनेवाला यह मेला महाकुंभ से भी कम नहीं है. हम रोज कांवरियों की भीड लाखों से भी पार कर जाती है. सोमवार में अन्य दिनों की अपेक्षा जल चढाने के लिए देश भर से शिव भक्तों का तांता लगा रहता है. लंबी कतारें, ऐसी लंबी जो तीन-चार दिनों तक लगी रहती हैं. लाइन में ही लोग सो जाते हैं. मंदिर पहुंचते-पहुंचते कई दिन लगता है. मगर उनके पास न श्रद्धा की कमी है और न ही ताकत की.



वैसे कुछ वर्ष पहले इस मेले पर जल चढाने की होड रहती थी, वह अब उतनी नहीं है. आज के बदलते परिवेश में धर्म की अवधारणा ध्वलस्तढ होती गई है. उपभोक्तानवादी इस दौर में लोग खाली सुख-सुविधा पाना चाहता है, लेकिन उसी को पाने में भी पूजा-पाठ का अलग महत्वन रहता है. इस मायने में देवघर स्थित शिवलिंग का अपना अलग महत्वे है, क्योंनकि इसको मनोकामना लिंग भी कहा गया है. यह देश के 12 ज्योितिर्लिंगों में से एक माना जाता है. यह वैद्यनाथधाम से भी जाना जाता है. वैसे देवघर के शिवलिंग के बारे में एक प्रचलित कथा है. रावण ने शिव जी की अराधना की, तो भगवान शिव प्रसन्नक होकर रावण के प्रत्यलक्ष दर्शन दिए. भगवान शिव जी ने रावण को वरदान मांगने को कहा. रावण ने यह वरदान मांगा कि शिव लिंग को लंका ले जाएं. भगवान ने रावण को वह वरदान दे दिया और एक शर्त बताया कि बीच में शिवलिंग कभी मत रखना. अगर किसी भी स्थिति से कहीं नीचे रख दिया, तो उसी जगह पर ही मैं रहूंगा. इस शर्त पर शिवलिंग को रावण ने ले आए. देवताओं को शिवजी के रावण को दिया हुआ वरदान से चकित और निराश हुए. इससे बचाने के लिए भगवान विष्णुे ने एक साधु के रूप में अवतरित होकर आए. भगवान विष्णुए ने रावण को पैशाव जोर से लगवाया. मगर शिवलिंग को सौंपने के लिए कोई नजर नहीं आ रहा था. अंत में भगवान विष्णु के अवतरित उस साधु की नजर आई. रावण साधु को शिवलिंग सौंप कर पैशाब करने गए. विष्णुव भगवान ने रावण को पैशाब खत्मर ही होने नहीं दिया. इधर, साधु ज्याएदा समय शिवलिंग को पकड नहीं पाने से जमीन में रख कर चले गए. काफी देर के बाद पैशाब खत्मि होकर रावण उस साधु के पास आए. उनकी नजर नहीं आई. शिवलिंग तो जमीन पर रखा हुआ है. रावण यह देख कर चौंक गए साथ में नाराज भी, क्यों कि जो शर्त शिवजी ने बताई थी, वह निभा नहीं पाया. रावण ने शिवलिंग को उठाने की कोशिश की, मगर उठा नहीं पाए. अंत में नाराज होकर मुट्ठी से शिवलिंग को मारी थी. तभी से उसी जगह पर ही शिवलिंग बस गए. उसी जगह को आज बाबाधाम के नाम से जाना जा रहा है और रावण ने जो पैशाब किया था उसी जगह को शिब गंगा, एक पोखड के रूप में हो गए. उसी शिवगंगा पर श्रद्धालु मंदिर प्रवेश करने से पहले डुबकी लगाते हैं. मेले के मौके पर देवघर पूरे दिन-रात बोलबम से गुंजायमान हो उठता है. हर गली-मुहल्ले में भक्तिमय माहौल व्या प्तव है.



देवघर के इस श्रावणी मेले के साथ बाजार का अर्थशास्त्र भी जुडा है. मेले का दरमियान देवघर में कई अनगिनत छोटी और बडी दुकानें खुलती हैं. पूजा-पाठ में आवश्य क चीजें जैसे फूल, बेलपत्र और अगरबत्तीघ वगेरह बेचने वाली दुकानें तक पूरे सावर महीने में 40 से 50 हजार कमाती हैं. इसके अलावा कई बडी दुकानें कपडे, चूडा, मिठाई, पेडा, लोहे के सामान, सिंदूर और चुडियों की हैं, जो पूरे सावन में अधिक से अधिक पैसा कमाते हैं, इसके अलावा बाहर से आए दुकानदार भी इस मेले में अधिक कमाते हैं. मुख्यि रूप से बंगाल, उडीसा, यूपी आदि राज्यों से लोग मेले के दौरान सामान बेचने आते हैं. पूरे महीने खरीदारी चलती रहती है. इस तरह सिर्फ श्रावणी मेले में पांच सो करोड की खरीदारी इन वस्तुाओं की होती है. साथ में कांवरियों के साथ कुछ वस्तु्एं साथ में ले जाना आवश्य क होता है जो कि एक हजार रुपए की खरीदारी होती है. जैसे टार्च, अगरबत्तीय, गंजी-बनियान, तौलिया, चादर, दो जल पात्र, मोमबत्ती और माचीस आदि. इसके अलावा कांवरिए रास्तें में चाय, ठंडे पेय, खाद्य आदि पर भी प्रति कांवडिया चार पाच दिनों में दो सौ से ढाई सौ रुपएा तक खर्च करता है. कुल मिला कर श्रावणी मेले का अर्थशास्त्रआ करीब एक हजार करोड का है. मगर दुख की बात है कि इस मेले में कई बडी कंपनी करोडों कमाती है. जैसे टी सीरिज है जो कि कांवरियों के गाने फिल्म और एल्बेम की सीडी काफी मात्रा में बेचती है. मगर श्रद्धालुओं के लिए कांवरिया पथ में सुविधा मुहैया कराने के लिए एक भी रुपए खर्च नहीं करती. सावन खत्म् होते ही अपना सामान समेट कर चलती है. सुल्ताानगंज से देवघर की दूरी 105 किमी है. इसमें सुइया पहाड जैसे दुर्गम रास्तेो और नंगे पांव गुजरने में नुकीले पत्थार पांव में चुभने वाली कई जगह शामिल हैं. मगर शिवभक्तोंह को इसके परवाह नहीं करते. कई दिन-रात बिना खाए थकते नहीं हैं. उनके मुंह से एक ही आवाज निकलती है बोल बम, बोलबम का नारा है बाबा एक सहारा है. भक्तैजनों की श्रद्धा अद्भुत है. गंगा जल भरते हुए पैदल 105 किमी की दूरी तय करके शिवजी के ज्योातिर्लिंग पर जल चढाना एक साधारण आदमी की वश की बात नहीं है. वहीं आदमी कर सकता है, जिसे भोलेनाथ का आशीर्वाद हो.


अब बिहार सरकार की नजर इस धार्मिक यात्रा पर पडी. राज्यर सरकार ने इस वर्ष कांवरियों के लिए कच्चीह सडक का निर्माण प्रारंभ कराया है. खुशी की बात तो यह है कि इस कार्य के पूरा होने के बाद सुल्ताानगंज से देवघर की दूरी 17 किमी कम हो जाएगी और नंगे पांव से यात्रा सुगम होगी. श्रावणी मेला को और आकर्शण बनाने के लिए हरिला जोडी और शिवगंगा को दर्शनीय स्थ ल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है. इससे बाबा के दर्शन के साथ तीर्थ यात्री मनोरंजन के साथ पर्यटक स्थ ल का भी आनंद उठा सकेगा. त्रिकुट रोप वे का भी कार्य शुय होनेवाला है. टेक्निकल स्वीहकृति मिल गई है. वहीं हरिशरणम कुटिया को पार्क के रूप में विकसित करेंगे. झारखंड पर्यटन विभाग ने देवघर में इस बार मोबाइल बेस्डय सूचना प्रणाली स्थातपित किया है. इससे लोगों का एसएमएस के जरिए पर्यटन की जानकारी मिलेगी. मेले को सुव्यलवस्थित करने मेला प्राइज़ का गठन और श्रावणी मेले को राष्ट्रीएय मेले का दर्जा देने के लिए देवघर के विधायकों का प्रयास जारी है. लोगों का मानना है कि मेला प्राइज़ के गठन से न सिर्फ सुल्ता नगंज से लेकर बासुकिनाथधाम तक मेले का एक समान विकास हो पाएगा, बल्कि श्रावण महीने में विभिन्नब जिलों के प्रशासन खास कर, देवघर भागलपुर और दुमका के जिला प्रशासन पर पडने वाले अतिरिक्त‍ बोझ भी कम होगा और जिले के विकास कार्य भी प्रभावित नहीं रहेगा. यह कहने में गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में यह उम्मी द की जा सकती है कि कांवरिए सुगम यात्रा के साथ बाबा को जल चढा सकेंगे.



मेले में आते हैं भांति-भांति के बम
सुल्तानगंज से देवघर तक 105 किमी की पैदल कांवरयात्रा में तरह-तरह के बम होते हैं. अधिकतर ऐसे कांवरिए होते हैं, जो साधारण पात्रों में जल भर कर उठते-उठते, सोते-जागते, खाते पीते दो से चार दिनों में अपनी कांवर यात्रा पूरी करते हैं. इन्हें साधारण बम कहा जाता है. दूसरे होते हैं खडा कांवर बम, जो रास्तेा में कही भी न तो जमीन पर अपना कांवर रखते हैं और न ही कांवर स्टैंबडों में. ऐसे में बम प्राय: एक सहायक लेकर चलते हैं और उनके आराम के वक्तर सहायक व्यवक्ति ही कांवर अपने कंधे पर रखता है. तीसरे होते हैं डाक बम, जो जल भरने के बाद लगातार चल कर 24 घंटे में देवघर पहुंच कर बाबा का जलाभिषेक करते हैं. ऐसे बम कांवर नहीं रखते हैं, बल्कि छोटे पात्रों में जल भर कर इसे पीठ पर लटका लेते हैं. इन्हेंे हर जगह विशेष सुविधा प्राइज़ होती है. दंडी बम रास्ते भर दंड देते हुए आते हैं और यह सबसे माना जाता है, जब माहवारी बम प्रत्येजक महीने पैदल आकर बाबा को जल चढाते हैं.

Thursday, July 2, 2009

विशेष कानून : अगाथा ने भी मिलाया शर्मिला से सुर

पूर्वोत्तर की दो शीर्ष महिलाएं आपस में मिलीं. दोनों ने एक-दूसरे के दुख-दर्द बांटे थे. कई दिनों से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट-1958 के चलते मणिपुर में व्याप्त आशांति का जायजा लेने केंद्र की सबसे युवा सांसद अगाथा संगमा पिछले दिनों तीन दिनों की यात्रा पर मणिपुर आई थी. जेएन अस्पताल के विशेष तौर पर सुरक्षित वार्ड में इस एक्ट के विरोध में जिंदगी और मौत से लड़ रही इराम शर्मिला से मुलाकात की.



इस मुलाकात में शर्मिला ने मणिपुर से यह कानून हटाने में अगाथा की मदद की आस लगाई. आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट को रद्द करवाने को लेकर पिछले आठ साल से अनसन पर बैठी इरोम शर्मिला से मुलाकात के बाद पत्रकारों को संबोधित करती हुई अगाथा ने कहा कि इस काले कानून को रद्द करने को केंद्र सरकार से वह मांग जरूर करेंगी. उन्होंने कहा कि वह जनता को आश्वाशन देती हैं कि जितना हो सके, इस मुद्दे को प्राथमिकता देंगी. उसके कुछ ही समय बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस मसले पर मुलाकात कर अनशन पर बैठी शर्मिला को बचाने की अपील की. उनकी इस मुलाकात से प्रदेश की जनता को उम्मीद है कि पिछले कई सालों से प्रदेश में इस कानून के सहारे जो मनमानी की जा रही है, उसका अंत होगा. यूपीए सरकार की सबसे युवा मंत्री अगाथा संगमा ने लिखित ज्ञापन देकर शर्मिला की जिंदगी बचाने की मांग की.
अगाथा की इस मुलाकात से प्रदेश में कई सालों से आस लगा रही जनता को उम्मीद की नई किरण दिखी हैं. इसकी वजह यह है कि कई सालों से शर्मिला के इस संघर्ष को किसी राजनेता या किसी अधिकारी ने न तो जानने की कोशिश की और न ही इस मामले का जायजा लिया. इस मसले पर केंद्र सरकार ने हर वक्त कठोर कदम उठाए हैं. केंद्र यह मानने को तैयार नहीं है कि पूर्वोत्तर राज्यों से विशेष सशस्त्र बल कानून हटाया जाए. इस मामले को लेकर राज्य सरकार का रुख भी वैसा ही है, जैसा केंद्र का है. राज्य सरकार कई मुद्दों पर मजबूर हो जाती है और केंद्र के इशारों का इंतजार करती रहती है.



मणिपुर की जनता तो इस कानून को जंगल का कानून मानती है, जिसके मुताबिक कभी भी किसी को मार गिराया जा सकता है. इस कानून को लोग बेहद खराब नजर से देखते हैं. 2004 में कथित तौर पर असम रायफल्स के जवानों ने सामाजिक कार्यकर्ता मनोरमा देवी की हवालात में बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी. उसके विरोध में समूचे प्रदेष में आग लग गई, जो अभी भी सुलग रही है. इस कानून को लेकर शर्मिला का मानना है कि इस दुनिया में मनमानी से कोई किसी को मार नहीं सकता. यह सोचने-समझने वाले मनुष्य की दुनिया है, जानवारों को नहीं. शर्मिला देश के शासक वर्ग से यह सवाल पूछ रही है कि जंगलराज के भीतर कब तक आम आदमी बिना डर के जी सकता है? शर्मिला कहती हैं कि यह भूख-हड़ताल तभी खत्म होगी, जब सरकार वगैर किसी शर्त के आर्म्ड फोर्सेस स्पेच्चल पावर एक्ट को हटाएगी. आतंकवादी समस्या पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक आंतरिक और स्थाई समस्या है. इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या है विशेष सशस्त्र बल कानून 1958, जिसको हथियार बनाकर आतंकवाद को कुचलने के नाम पर निर्दोष लोगों पर जुल्म हो रहे हैं. इससे आमजन का अमन-चैन छिन रहा है.
अगाथा की शर्मिला से मुलाकात को लोगों ने बहुत सराहा. मणिपुर की आम जनता ने इसके पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य न देख कर उनकी संजीदगी देखी. उनको ऐसा लगा कि परिवार की कोई बहन अपनी बड़ी बहन से मिल रही हो. गौरतलब है कि असम रायफल्स के जवानों ने 2000 में 10 निर्दोषों को मार दिया था. इसके विरोध में ही शर्मिला आमरण अनशन पर बैठ गई. उसी वक्त राज्य सरकार ने इंफाल शहर के कई विधानसभा क्षेत्रों से यह कानून हटा दिया था. केंद्र के मना करने के बावजूद मणिपुर सरकार ने एक प्रयोग के तौर पर कुछ खास इलाकों में इस एक्ट को रद्द करना शुरू किया था. कानून-व्यवस्था अगर दुरुस्त रही, तो इस एक्ट को अन्य जगहों से भी हटाने की घोषणा राज्य सरकार ने की. मगर शर्मिला ने इस एक्ट को राज्य से पूरी तरह से हटाने की मांग की. इस बात को लेकर वह अड़ी रहीं. उल्लेखनीय है कि कइस एक्ट के विरोध में मणिपुर से लेकर उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों और देच्च के कुछ हिस्सों में अप्रिय घटना घटने के बाद केंद्र सरकार ने जस्टिस जीवन रेड्डी के नेतृत्व में एक समिति बनाई. समिति ने भी इस एक्ट को आपत्तिजनक बताया था. दूसरी तरफ शर्मिला को बचाने के लिए पिछले छह महीने से शर्मिला बचाव समिति पीडीए कांप्लेक्स, इंफाल में अनशन कर रही है. इस अभियान में सिने एक्टर्स गिल्ड मणिपुर के सदस्यों ने भी जून 28 से शिरकत करने का फैसला किया. कुल मिला कर अगाथा संगमा की मणिपुर यात्रा और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात से लगता है कि राज्य से इस काले कानून को हटा दिया जाएगा.

क्या है आर्म्ड फोर्स स्पेच्चल पावर एक्ट?

आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट को 11 सितंबर 1958 को संसद में पारित किया गया था. यह पूर्वोत्तर के राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा जैसे अच्चांत क्षेत्रों में सेना को विशेष ताकत देने के लिए पारित किया गया था.

यह कानून लागू होने वाले इलाके में सेना क्या-क्या कर सकती है.

1.भले ही मौत का कारण बने, फिर भी इसके तहत किसी पर देखते ही गोली चलाई जा सकती है.
2.इस एक्ट के अनुसार किसी को भी शक के आधार पर ही वारंट के बिना भी जबरदस्ती गिरफ्‌तार किया जा सकता है.
3.किसी को गिरफ्‌तार करने के लिए सेना किसी भी इलाके की तलाच्ची ले सकती है.

इस एक्ट के विरोध में कौन-कौन

पूरे देश के सौ से भी अधिक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और एच्चिया से भी आए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इंफाल में विरोध प्रदर्शन कर इस एक्ट को हटाने के लिए संघर्ष कर रही शर्मिला का समर्थन किया. भारत की कई महत्वपूर्ण संस्थाएं इस एक्ट का समर्थन करती हैं. वे हैं - आशा परिवार, नेशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इंफोरमेच्चन, राइट टू फूड कैंपेन, असोसिएशन ऑफ पैरेंट्स ऑफ डिसअपियर परच्चंस, नेशनल कैंपेन फॉर दलित ह्‌यूमन राइट्स, एकता पीपल्स यूनियन ऑफ ह्‌यूमन राइट्स, इंसाफ लोकराज संगठन, हिंद नव जवान एकता सभा, ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमन असोसिएशन, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स असोसिएशन, फोरम फॉर डेमोक्रेटिक इनिसिएटिव्स और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी 'मार्क्सवादी-लेनिनवादी' आदि

विदेशों से भी समर्थन

केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के मानवाधिकार संगठनों और एनआरआई ने भी इस एक्ट का विरोध किया है. द पीस कॉलिच्चन ऑफ पीपल ऑफ साउथ एशिया, फ्रेंड्स ऑफ साउथ एशिया, एनआरआई फॉर ए सेकुलर एंड हारमोनिअस इंडिया, पाकिस्तान ऑर्गेनाइजेशंस, पीपल्स डेवलपमेंट फाउंडेशान, इंडस वैली थिएटर ग्रुप और इंस्टीट्यूट फॉर पीस एंड सेकुलर स्टडीज.