यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, August 29, 2013

अफसपा का गलत इस्तेमाल : कमीशन

मणिपुर में आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफसपा) वर्षों से लागू है, जिसकी आ़ड में सुरक्षा बल फर्जी मुठभे़डों को अंजाम देते रहे हैं. अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कह दिया है कि अफसपा का गलत इस्तेमाल हो रहा है. ऐसे में इस एक्ट का बने रहना कितना उचित है?


भारत सरकार अपनी जनता की हिफाजत करने में पूरी तरह से नाकाम रही है. आए दिन भ्रष्टाचार और घोटालों से सरकार की किरकिरी होती रहती है. लगता ही नहीं कि भारत में कोई सरकार काम कर रही है, क्योंकि जनता के अधिकारों और उसके हितों का पूरा ख्याल सुप्रीम कोर्ट को रखना प़ड रहा है. जनता को भी इस बात का भान हो चुका है कि सरकार उसके लिए कुछ नहीं कर सकती, इसीलिए वह न्याय की आस में कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है. समझ में नहीं आता कि इतने ब़डे अमले और लाव-लश्कर के साथ सरकार कर क्या रही है. जब हर काम कोर्ट के दखल के बाद ही होगा, तो इस अकर्मण्य और अपाहिज सरकार का क्या काम.
कुछ ऐसा ही हाल है आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफसपा)-1958 का, जिसकी सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट करने लगी है. गौरतलब है कि 15 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने छह मुठभेड़ों के मामले में एक फैसला सुनाया. सारे मुठभे़ड फर्जी थे. दो संस्थाओं एक्सट्रा जूडिशिएल एक्जीक्यूशन विक्टीम फेमिलीज एसोसिएशन (एएवीएफएएम) और ह्यूमन राइट्स एलर्ट ने एक पीटिशन सितंबर 2012 को सुप्रीम कोर्ट को दिया था. इस पीटिशन में लिखा था कि 1979 से 2012 तक मणिपुर में मुठभेड़ की 1528 घटनाएं हुई थीं, जिन पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई. उन संस्थाओं की मांग है कि इन मुठभे़डों की जांच-पड़ताल सुप्रीम कोर्ट करे. पीटिशन के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन लोगों का एक कमीशन बनाया था, जिसके चेयरमैन हैं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस संतोष हेगड़े. इस कमेटी में पूर्व चीफ इलेक्शन कमिश्‍नर जी एम लिंगदोह और कर्नाटक के पूर्व डीजीपी अजय कुमार सिन्हा भी शामिल हैं. कमीशन ने पहले छह केस की जांच शुरू की थी. इंफाल क्लासिक होटल में 3 से 7 मार्च तक कमीशन की बैठक हुई थी. इसके बाद दिल्ली में 13 से 21 मार्च तक बैठक कर कमीशन ने सुप्रीम कोर्ट को 12 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट दिया था.

बहरहाल, जिन छह लोगों पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है, उन्में हैं-एमडी आजाद खान (4-3-2009), खुमबोंगमयुम ओरसोनजीत सिंह (16-3-2010), नामैराकपम गोविंद मैतै (4-4-2009) और नामैराकपम नोवो मैतै (4-4-2009), इलांगबम किरणजीत सिंह (24-4-2009), चोंगथाम उमाकांता (5-5-2009), अकोयजम प्रियोबर्ता (15-3-2009). इनमें आजाद खान स्कूली बच्चा है. आजाद कोे उसके मां-बाप के सामने उसके घर से घसिट कर ले जाकर गोली मारी गई. बच्चे की लाश के पास से पिस्टल भी मिला. मणिपुर पुलिस कमांडो और असम रायफल्स की तरफ से यह कहा गया कि वह आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त था. उसके पास से हथियार पिस्टल और ग्रेनेड आदि बरामद हुआ है. आपको जानकर ताज्जुब होगी कि जिस दिन इस बच्चे को मारा गया, उस दिन उसके स्कूल रजिस्टर में उसकी उपस्थिति दर्ज दिखाई गई है, जो एक ब़डा सवाल है. हैवानों की हद देखिए कि जब बच्चे का पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आया, तो पता चला कि उसे छह गोलियां मारी गई थीं.

कमीशन की रिपोर्ट के केंद्र में अफसपा ही है. अफसपा को हटाने के लिए जो जीवन रेड्डी कमेटी गठित की गई थी, उस रिपोर्ट को भी कमीशन ने सही ठहराया. अफसपा की आड़ में कई जगहों को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया गया, ताकि वहां आर्मी का दखल हो सके. मणिपुर पुलिस कमांडो जनता को धमकी दे रही है. आए दिन हत्याओं की खबरें आती रहती हैं, जिसकी जितनी भर्त्सना की जाए, कम है. एसपी द्वारा कमांडो के कार्यों पर नजर रखी जानी चाहिए. जिला स्तर पर पुलिस कंप्लेंट कमेटी बनाना चाहिए. कमेटी में जन प्रतिनिधि की हिस्सेदारी होनी चाहिए. गैरकानूनी कामोें पर सीआईडी को अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी. लंबे अर्से से रख रहे अफसपा को हटाने की दिशा में काम होना चाहिए. मुठभेड़ में मारे गए लोगों की छानबिन पुलिस द्वारा अच्छी तरह की जानी चाहिए. एनकाउंटर में मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम होने में काफी देरी हो जाती है, जिससे रिपोर्ट में छे़ड-छा़ड का मौका मिल जाता है और महत्वपूर्ण सुराग गायब हो जाता है, इसलिए वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमॉर्टम होना चाहिए. फोरेंेसिक एनालिसिस होनी चाहिए, ताकि फिंगर प्रिंट का पता चल सके. सबसे अहम बात यह है कि पुलिस कमांडो द्वारा गोलीबारी में जो लोग मारे गए हैं, उसके जवाब में वह यह बयान देते हैं कि उन्होंने अपने डिफेंस में गोली चलाया है, यह उचित नहीं है. सच तो यह है कि अफसपा दूसरे देशों से रक्षा के लिए बनाया गया कानून है.

एनकाउंटर के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद मणिपुर का दूसरा स्थान है. राज्य में कुल 60 असम रायफल्स कंपनी, 37 सीआरपीएफ कंपनी और 12 बीएसएफ कंपनी तैनात है. मणिपुर की जनता खासकर युवा, हिंसा से इस हद तक प्रभावित है कि पटाखे भी आज मौत की सबब बन गए हैं, भले ही वह बम-बारूद या गोलीबारी की आवाज न हो. घर में लोग छुप जाते हैं. हिंसा की वजह से यहां के नौजवान देश के बाकी हिस्सों से या दूसरे राज्यों से किसी भी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा में शामिल भी नहीं हो पाते. गोलीबारी, बम धमाका यहां के लिए आम बात है. बच्चा-बच्चा इससे वाकिफ है. एक समय ऐसा भी था, जब वहां का युवा घर से बाहर नहीं निकलता था. चारों तरफ डर का माहौल होता था. इंडियन आर्मी और मणिपुर पुलिस कमांडों दोनों का डर इन नौजवानों को हमेशा सताता रहता था. मुठभेड़ में न जाने कितनी महिलाओं का सुहाग उज़ड गया, जिनके लिए परिवार का बोझ ढोना बहुत मुश्किल हो जाता है. 2004 में थांगम मनोरमा को इंडियन आर्मी द्वारा घर से पकड़ लिया गया था. इंसानियत उस समय शर्मसार हो गई, जब पहले उसके साथ दुष्कर्म किया गया और बाद में उसको गोली मार दी गई. मनोरमा पर आरोप था कि वह आतंकवादी संगठन की सदस्य है. मनोरमा की घटना के विरोध  में उस समय 10 महिलाओं ने असम रायफल्स के गेट पर नग्न प्रदर्शन किया था. भारत जैसे लोकतंत्र के लिए इससे शर्मनाक घटना भला और क्या हो सकती है. 23 जुलाई, 2009 को रवीना और संजीत को सरेआम सड़क पर मारा गया था. संजीत को पीपल्स लिबरेशन आर्मी का सदस्य बताया गया था. इरोम शर्मिला राज्य से अफसपा हटाने के लिए पिछले 12 सालों से भूख हड़ताल पर है, लेकिन बहरी सरकार के कानों तक अहिंसात्मक आंदोलन की आवाज आज तक नहीं पहुंची.


ह्यूमन राइट्स एलर्ट के एक्जीक्यूटिव डाइरेक्टर बब्लू लोइतोंगबम ने कहा है कि यह रिपोर्ट कमीशन ने 8 अप्रैल, 2013 को सुप्रीम कोर्ट में भेज दिया था और 15 जुलाई को पीड़ित के पीटिशनर को दिया गया. अगला हियरिंग 17 सितंबर को होगा. वह कहते हैं कि इतने दिनों से अफसपा लागू है, लेकिन स्थिति बद से बदतर हो गई है, ऐसे में अफसपा के लागू होने का मतलब नहीं समझ में आता. बब्लू कहते हैं कि यह रिपोर्ट कम से कम अफसपा को हटाने का एक सुंदर मौका है. इस रिपोर्ट से उम्मीद का दरवाजा खुला है, जिसे बंद नहीं होने देना चाहिए.