यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, May 17, 2012

तब कुछ और ही था संसद और राजनीति का माहौल



भारतीय संसद ने अपने सफर के साठ साल पूरे कर लिए हैं. हमारी संसद में आज भी एक चेहरा ऐसा मोजूद हैं जो इन छह दशक के सफर का गवाह है. यह नेता हैं मणिपुर के रिशांग कैशिंग. 13 मई, 1952 को संसद का पहला सत्र शुरू हुआ था तब कैशिंग उसमें मौजूद थे. अब 60 साल पूरे होने पर भी वह साथ हैं. दो बार लोकसभा, दो मर्तबा राज्‍यसभा सदस्‍य और चार बार मणिपुर के मुख्‍यमंत्री रहे कैशिंग जल्‍द 92 साल के भी हो जाएंगे. संसद और राजनीति के साठ साल के सफर पर हिंदुस्‍तान अखबार के ब्‍यूरो चीफ मदन जैड़ा ने उनसे बातची की. बातचीत के अंश -

13 मई, 1952 के संसद सत्र में आप मौजूद थे. तब क्‍या माहौल था ?
हां, मैं उस दिन का गवाह हूं. मैं उस दिन केंद्रीय कक्ष में मौजूद था. तब मैं नौजवान था. करीब 32 साल की उम्र रही होगी. उमंग और जोश से लबालब था. राष्‍ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने संयुक्‍त सत्र को संबोधित किया. उन्‍होंने आजादी के बाद देश के समक्ष उत्‍पन्‍न चुनौतियो से निपटने का जिक्र किया था. हमने चुनौतियों से निपटने की शपथ ली.

तब राजनीतिक परिदृश्‍य कैसा था?
तब 489 सीटें थीं, पर लोकसभा क्षेत्र 401 ही थे. 86 क्षेत्र दो सीटों वाले तथा एक क्षेत्र तीन सीट वाला था. मैं तब मणिपुर की आउटर सीट से सोशलिस्‍ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जी‍त कर आया था. पार्टी 12 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही. कांग्रेस ने सबसे ज्‍यादा 364 सीटें जीतीं, जबकि 16 सीटों के साथ सीपीआई दूसरे स्‍थान पर रही थी; कांग्रेस का एक छत्र राज था. विपक्ष की उपस्थिति नगण्‍य थी.

तब और आज के संसद के कामकाज में क्‍या फर्क नजर आता है?
तब कोई मंत्री, सदस्‍य यदि बोल रहा होता था तो कोई भी उसे डिस्‍टर्ब नहीं करता था. सभी ध्‍यान से उसकी बात सुनते थे. उसके बाद अपनी बात कहते थे. बड़ा नेता हो या छोटा, सभी एक दूसरे को सम्‍मान देते थे. पंडित जवाहरलाल नेहरू सदस्‍यों द्वारा उठाए गए मुद्दों को तरजीह देते थे. यही कारण है कि पहली लोकसभा की रिकार्ड 677 बैठकें हुईं. आज छोटे-बड़े नेता संसद मे बच्‍चों की तरह झगड़ते हैं. तब ऐसा नहीं था. इसलिए आज हंगामे को देख कर संसद में कभी कभी मन नहीं लगता है. अब मैं राज्‍यसभा में हूं पर वहां भी वही हाल है.

कभी नेहरू जी से सीधे बात करने का मौका मिला था?
मुझे तारीख तो ठीक से याद नहीं है पर मैंने एक बार नेहरू जी को संसद की लॉबी में रोका और कहा कि भूमिगत नगा आंदोलनकारी आपसे बात करना चाहते हैं. आप उन्‍हें टाइम दें. पहले तो मुझे लगा कि वह ऐसे रोकने पर गुस्‍सा हो गए हैं, इसलिए आगे बढ़ गए, पर फिर वह पीछे लौटे. मेरा हाथ थामा और बोले, कैशिंग ऐसा करो, पहले गृह मंत्री से मिलवाओ. फिर मैं बात करूंगा. मुझे उनका तरीका बहुत अच्‍छा लगा.

आपने नेहरू गांधी परिवार की चार पीढि़यों को देखा है, क्‍या अनुभव रहा?
नेहरूजी मुझे कांग्रेस में लाए. 1980 में इंदिरा गांधीजी मणिपुर के तत्‍कालीन सीएम आर के दोरेंद्र को हटा कर मुझे सीएम बनाया था. तब मैं मंत्री था. दोरेंद्र को नॉर्वे का अंबेसडर बनाया गया, हालांकि वह गए नहीं. बाद में जब राजीव पीएम बने, तो राज्‍य में अस्थिरता के चलते उन्‍होंने मुझे इस्‍तीफा देने को कहा. लेकिन उन्‍होंने मुझे सम्‍मानजनक तरीके से नौवें वित्‍त आयोग में भेजा. इस प्रकार तीनों महान नेताओं के मैं संपर्क में रहा. राहुलजी से भी बतौर पार्टीमैन जुड़ा हूं.

आपने 1951 में पहला चुनाव लड़ा तब कितने रुपए खर्च होते थे?
खर्च कैसा? कोई खर्च नहीं हुआ. पोस्‍टर, बैनर पार्टी से मिले थे. बाकी प्रचार हम पैदल जाकर करते थे. इ‍सलिए तब चुनाव लड़ने का कोई खर्च नहीं था. आज तो मैं चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता.

पहली लोकसभा में आपका वेतन कितना था ?
वेतन नहीं होता था तब. संसद की कार्यवाही में भाग लेने पर 30 रुपए रोज मिलते थे. हम उससे भी खुश थे.

मणिपुर से दिल्‍ली कैसे आते थे?
तीन दिन से अधिक लगते थे. इंफाल से दीमापुर होते हुए गुवाहाटी तक पैदल आते थे. वहां से ट्रेन पकड़ कर बिहार आते थे, फिर दूसरी ट्रेन लेते थे. तब ब्रह्ममपुत्र नदी पर रेल पुल नहीं था. नाव से पुल पार करते थे और ट्रेन पकड़ते थे. दिल्‍ली के आवास में मैंने संसद जाने के लिए एक साइकिल रखी थी.

तब संसद में कैसे मुद्दे उठते थे?
सदस्‍य दलगत राजनीति से हट कर जनता से जुड़े मुद्दे उठाते थे. आज जनता के मुद्दों से ज्‍यादा दलगत राजनीति हावी है.

साठ साल में हुई देश की प्रगति से आप कितने संतुष्‍ट हैं?
निश्चित रूप से हमने प्रगति की है. मुझे याद है, तब हमारे पास खाने के लिए अनाज तक नहीं था. अमेरिका से खराब अनाज मंगा कर खाते थे. आज हम इतने सक्षम हैं कि अपने जैसे एक और देश को खिला सकते हैं. संसद का काम कानून बनाना है उसने अपना दायित्‍व बखूबी निभाया है. लेकिन इसके बावजूद अभी देश को अग्रणी देशों की कतार में ले जाने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है. मुझे उम्‍मीद है कि संसद आगे भी अपनी जिम्‍मेदारी निभाएगी.

आपकी सेहत का राज क्‍या है? सेंचुरी लगाएंगे?
नो स्‍मोकिंग, नो अल्‍कोहल, नो पान मसाला. इसके अलावा मैं स्‍पोर्ट्समैन भी रहा हूं. नियमित व्‍यायाम करता हूं. खुश रहता हूं. राज्‍यसभा का कार्यकाल 2014 तक है. उम्‍मीद करता हूं कि यह पूरा कर लूंगा. सेंचुरी लगेगी या नहीं, कौन जाने?