यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Tuesday, September 25, 2012

मैरी कॉम पर बनने वाली फिल्म दिलों को जोड़ पाएगी ?


मणिपुर में पीपुल लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की राजनीतिक शाखा रिबोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ) ने हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन और हिंदी चैनल पर हिंदी फिल्मों के प्रसारण पर सितंबर 2000 से प्रतिबंध लगाया हुआ है. उनका मानना है कि हिंदी फिल्में मणिपुरी कल्चर को बिगाड़ती हैं. इससे यहां के लोगों की मानसिकता दूषित होती है. इसी प्रतिबंध के कारण 15-18 अप्रैल, 2012 को इंफाल में आयोजित इंटरनेशनल सोर्ट फिल्म फेस्टिवल में 18 हिंदी फिल्मों को नहीं दिखाया गया था. चूंकि यह एकमात्र बहाना है. वहां के उग्रवादी संगठन शुरू से ही भारत के प्रति अपनी उग्रता दिखाते रहे हैं. उनको लगता है कि भारतीय होना एक थोपी गई साज़िश है. दूसरी ओर आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट की आड़ में सेना की करतूत ने भी इस बग़ावत को हिंदी से जोड़ दिया है. उनका मानना है कि हिंदी का मतलब हिंदुस्तान.

मणिपुर में हिंदी भाषा और फिल्मों पर प्रतिबंध लगाना भारत से विरोध करने का एक प्रतीक है. हद तो तब हो गई, जब कहीं हिंदी गाना बजते हुए सुन लेने पर गाना बजाने वाले को पकड़ कर पीटना, ब्लैड से चेहरे पर काटना और गोली तक मार देना शुरू हो गया. यहां हिंदी गानों और फिल्मों के प्रति इतना हिंसक विरोध है. क्या ऐसे में संजय लीला भंसाली द्वारा मैरी कॉम पर बनने वाली फिल्म इस खाई को पाटने में सफल होगी? बहरहाल, हिंदी फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने से मणिपुर में कोरिया फिल्म की धमक बढ़ती जा रही है. युवा पीढ़ी कोरिया फिल्म में का़फी दिलचस्पी ले रही है. इसका नतीजा इस रूप में सामने आ रहा है कि मणिपुरी युवा कोरियन हेयर स्टाइल रखना पसंद करने लगे हैं. वहां के परिधान अब इन युवाओं की पसंद बन गए हैं. वैसे मणिपुर फिल्म इंडस्ट्री कई मायनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है. ओइनाम गौतम द्वारा निर्देशित फीचर फिल्म फीजीगी मणि को 2011 में आयोजित 59वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में क्षेत्रीय फिल्म का पुरस्कार मिला था.


मणिपुरी भाषा को अगस्त 1992 में आठवीं सूची में शामिल किया गया था. इसके बाद भी प्राथमिक कक्षा से आठवीं कक्षा तक हिंदी की पढ़ाई होती है. मणिपुर बोर्ड के सिलेबस में हिंदी विषय अनिवार्य कर दिया गया. मणिपुर में गांव-गांव में लोग हिंदी गाना गुनगुना लेते हैं. हिंदी नहीं जानने के बावजूद बच्चा-बच्चा हिंदी गाना गाता है. पुष्पारानी मणिपुर की एक प्लेबैक सिंगर है. वह 1997 में सारेगामापा सांग कंपिटीशन में गाती थी. इसका कार्यक्रम का संचालन कर रहे सोनू निगम ने कहा था कि पुष्पारानी को न अंग्रेजी आती है और न हिंदी, मगर उसने इतनी ब़खूबी से लता जी के ऐ मेरे वतन के लोगों गाया. मंच पर उपस्थित लोग अवाक रह गए थे. मणिपुर के लोग हिंदी नहीं जानने के बावजूद टीवी पर हिंदी फिल्में देखते हैं. सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को हर कोई चाहता है. हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन और प्रसारण पर रोक लगाने से लोगों की हिंदी फिल्मों में रुचि कम नहीं हुई. पाइरेटेड फिल्में गुवाहाटी, कोलकाता और दिल्ली से आती हैं. साथ में दूरदर्शन और डीटीएच पर प्रसारित हिंदी फिल्में और कार्यक्रम भी यहां ़खूब देखे जाते हैं. भले ही मणिपुर में हिंदी फिल्में प्रतिबंधित हों, लेकिन वहां के लोगों के दिल में रचे-बसे हिंदी गाने और हिंदी फिल्मों को कभी प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता.

मैरी कॉम मणिपुर की राजधानी इंफाल से 35 किमी दूर चुराचांदपुर ज़िले के गांव कांगाथेल में जन्मी थीं. चारों भाई बहनों में सबसे बड़ी मैरी कॉम का परिवार बहुत ही ग़रीब था. उनकी मां मांगते अखम कॉम और बाप मांगते तोनपा कॉम पहाड़ में खेतीबा़डी करके परिवार चलाते थे. मैरी कॉम भी पहाड़ से लकड़ी काटती और मां-बाप के साथ झुमिंग फार्मिंग में सहायता करती थीं. प्राथमिक स्कूली शिक्षा लोकताक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल मोइरांग से शुरू कर आठवीं कक्षा सेंजेबीयर कैथोलिक स्कूल मोइरांग में ख़त्म  की. नौवीं और दसवीं कक्षा की प़ढाई आदिम जाति इंफाल के स्कूल से की, मगर दसवीं कक्षा पास नहीं कर पाईं. इसलिए उन्होंने ओपन स्कूल से दसवीं पास की और चुराचांदपुर कॉलेज से बीए पास किया. उन्होंने के उनलर कॉम से शादी की. उनके जुड़वां बच्चे रेचुंगवर और खुपनेवर हैं. मैरी कॉम को बॉक्सिंग के अलावा गिटार बजाना भी पसंद है. शाहरु़ख खान उनके पसंदीदा बॉलीवुड हीरो हैं.

मणिपुर में हिंदी फिल्मों पर प्रतिबंध है, मगर मैं विश्वास करती हूं कि इस फिल्म के रिलीज होने पर बेहतर बदलाव आएगा. यह फिल्म मेरी ज़िंदगी और संघर्ष पर आधारित है. मैं आशा करती हूं कि इस फिल्म का मेरी मातृभूमि में स्वागत होगा. -मैरी कॉम

Thursday, September 13, 2012

ज़मीन की एक लड़ाई यहां भी

क्या पूर्वोत्तर को तभी याद किया जाएगा, जब कोई सांप्रदायिक हिंसा होगी, जब लोगों का खून पानी बनकर बहेगा? या तब भी उनके संघर्ष को वह जगह मिलेगी, उनकी आवाज़ सुनी-सुनाई जाएगी, जब वे अपने जल, जंगल एवं ज़मीन की लड़ाई के लिए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करेंगे? मणिपुर में तेल उत्खनन के मसले पर जारी जनसंघर्ष की धमक आ़खिर तथाकथित भारतीय मीडिया में क्यों नहीं सुनाई दे रही है? 


                                                   Oil Extraction Can Spell Doom 

17 अगस्त, 2012. मणिपुर के तमेंगलोंग जिले का नुंगबा कम्युनिटी हॉल. सरकार द्वारा एक जन सुनवाई का आयोजन किया गया था, ताकि लोग अपनी आपत्तियां सरकार के समक्ष रख सकें.  मणिपुर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने इस जन सुनवाई का आयोजन किया था. उसमें स्थानीय ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन किया. लोग हाथों में बैनर लिए हुए थे और तेल खनन के  खिला़फ  नारे लगा रहे थे. इस वजह से जन सुनवाई नहीं हो पाई. विरोध कर रहे 15 ग्रामीणों के  खिला़फ  नुंगबा पुलिस ने एफआईआर संख्या 23/8/2012, आईपीसी की धारा 148, 149, 341, 353 एवं 506 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया है. यानी संगठित रूप से हथियार बंद लोगों द्वारा सरकारी काम में बाधा पहुंचाने और दंगा फैलाने का आरोप लगाया गया है. इनमें से कुछ लोग सरकारी कर्मचारी भी हैं, जिन्हें संबंधित विभागों ने आत्मसमर्पण करने के  लिए कहा है. उक्त घटना भारत सरकार और नीदरलैंड की कंपनी के बीच हुए एक अनुबंध का नतीजा है. भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस के अनुदान पर नीदरलैंड की जुबिलियंट ऑयल एंड गैस प्राइवेट लिमिटेड (जेओजीपीएल) को 2009 में मणिपुर के दो खंडों जिरिबाम (इंफाल ईस्ट), तमेंगलोंग और चुराचांदपुर जिले में पेट्रोलियम पदार्थ ढूंढने और खुदाई करने (ड्रिलिंग) का काम दिया गया था. अब कंपनी यहां तेल का उत्पादन करना चाहती है. मणिपुर का क्षेत्रफल 22327 वर्ग किमी है. तेल निकालने के लिए बोरिंग वाले इलाके का क्षेत्रफल 4000 वर्ग किमी है यानी प्रदेश के छठवें हिस्से का इस्तेमाल तेल उत्पादन के लिए किए जाने की योजना है. यह कहा गया है कि मणिपुर में 5000 बिलियन क्यूबिक फीट तेल उपलब्ध है. फिलहाल तेल के 30 कुओं से तेल उत्खनन के लिए काम चल रहा है.

दरअसल, एसईएनईएस कंसल्टेंट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने एक सर्वे किया था, जिसकी एनवायरमेंट एसेसमेंट रिपोर्ट के आधार पर 17 अगस्त को उक्त जन सुनवाई हो रही थी. इसकी अध्यक्षता एडिशनल डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट जिरिबाम वाई इबोयाइमा ने की. अजय विसेन कंपनी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. उत्पादन के बंटवारे के अनुबंध पर हस्ताक्षर भारत सरकार और नीदरलैंड के जुबिलियंट ऑयल एंड गैस प्राइवेट लिमिटेड के बीच 19 जुलाई, 2010 को हुए थे. प्रोडक्शन शेयरिंग के पहले खंड (एए-ओएनएन 2009/1) के लिए हस्ताक्षर 30 जून, 2010 को किए गए थे और उसका लाइसेंस मणिपुर सरकार ने 23 सितंबर, 2010 को दिया था. दूसरे खंड (एए-ओएनएन 2009/2) के लिए हस्ताक्षर 19 जुलाई, 2010 को हुए और लाइसेंस 20 सितंबर, 2010 को दिया गया. एक्सप्लोरेशन लाइसेंस की डीड पर हस्ताक्षर 15 नवंबर, 2010 को स्थानीय लोगों को जानकारी दिए बिना करा लिए गए. इंफाल के चुराचांदपुर और जिरिबाम सब डिवीजन के लोगों को उन नियम-कायदों के बारे में जानकारी नहीं है, जिनके तहत केंद्र सरकार, राज्य सरकार और जुबिलियंट ऑयल एंड गैस प्राइवेट लिमिटेड के बीच तेल खनन के लिए सहमति बनी है. इसके अलावा पर्यावरण संबंधी रिपोर्ट भी स्थानीय भाषाओं जैसे जेमी, लियांगमै एवं कुकी आदि में नहीं है, जो कि जन सुनवाई की प्रक्रिया के लिए बहुत ज़रूरी है. अभी तक मणिपुर में खोजे गए पेट्रोलियम ऑयल की मात्रा का खुलासा प्रभावित होने वाले और प्रदेश के अन्य लोगों के सामने नहीं किया गया. अभी तक मणिपुर के स्थानीय लोगों को औपचारिक रूप से यह सूचित नहीं किया गया है कि वहां पेट्रोलियम ऑयल मिला है और उसे निकालने का ठेका एक विदेशी कंपनी को दिया गया है.

बहरहाल, इस कार्य से वहां के पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ेगा. पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को भी भारी नुकसान होगा. यह इलाका पर्यावरण की दृष्टि से बहुत संपन्न है. दवाओं के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले पेड़-पौधे भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं. वैसे भी तमेंगलोंग पर्यावरण के हिसाब से संवेदनशील क्षेत्र है. वन्य जीवन के अस्तित्व के स्रोतों और समुदायों को नज़रअंदाज किया गया है. बहुत सारे ऐसे सबूत मिले हैं, जिनसे यह मालूम हुआ है कि तेल के रिसाव, उसकी जांच, खुदाई (ड्रिलिंग), दुर्घटना और पाइप लाइन फटने के कारण नदियों एवं अन्य जल स्रोतों का पानी दूषित हो जाता है. तेल की खोज के दौरान मिट्टी, पानी एवं खाद्य पदार्थ प्रदूषित हो जाते हैं और वनों एवं जलवायु को भी नुकसान होता है. बराक, इरंग, मक्रू और अन्य सहायक नदियों पर पेट्रोलियम की खोज और ड्रिलिंग का प्रभाव सबसे पहले पड़ेगा. यह प्रोजेक्ट इस क्षेत्र की जैव विविधता, हॉट स्पॉट जोन और भारत एवं पड़ोसी देशों के बीच स्थित जलीय आवास को नष्ट कर देगा, जिसके चलते कई जीव विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाएंगे.


तेल की खुदाई नहीं होने देंगे : सिविल सोसायटी
मणिपुर प्रेस क्लब में इस मामले को लेकर सामाजिक संस्थाओं ने बैठक की, जिसमें ऑल जेलियांगरोंग स्टूडेंट यूनियन, जेलियांगरोंग बावड़ी, नगा वुमेंस यूनियन, नॉर्थ-ईस्ट डायलॉग फोरम, लाइफवाच, जोमी ह्यूमन राइट्‌स फाउंडेशन, सेंटर फॉर ऑर्गेनाइजेशन रिसर्च एंड एजुकेशन, सिनलुंग इंडिजिनस पीपुल्स ह्यूमन राइट्‌स ऑर्गेनाइजेशन, एक्शन कमेटी अगेंस्ट टिपाइमुख प्रोजेक्ट, सिटीजन कोसेन फॉर डैम एंड डेवलपमेंट, टमेंगलोंग विलेज अथॉरिटी, नगा पीपुल्स मूवमेंट फॉर ह्यूमन राइट्‌स एमोंग अदर्स आदि संगठनों ने कहा कि विकास के नाम पर विध्वंसात्मक कार्य नहीं होने देंगे. राज्य सरकार, केंद्र सरकार एवं जुबिलियंट ऑयल प्राइवेट लिमिटेड को मणिपुर में तेल की खोज और उत्खनन कार्य तब तक नहीं करना चाहिए, जब तक स्थानीय लोगों से चर्चा करके सहमति नहीं ली जाती. उन्होंने कहा कि यूएन द्वारा घोषित स्थानीय लोगों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए.

एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट रिपोर्ट
एसईएनईएस (सेंस, हैदराबाद) कंसल्टेंट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने एक सर्वे किया था, जिसकी एनवायरमेंट एसेसमेंट रिपोर्ट कहती है कि दो खंडों में तेल के कुल 30 कुएं हैं, जो 4000 वर्ग फीट में फैले हैं, जिनसे तेल की खुदाई की जाएगी. पहले खंड में 17 कुएं हैं और दूसरे खंड में 13. प्रत्येक कुआं 7 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. तेल एक्सप्लोरेशन का उद्देश्य संभावित कच्चे तेल का भंडार निर्धारित करना, खोदना और परीक्षण करना है. साथ ही यह भी पता लगाना कि आगे पर्यात तेल भंडार है या नहीं. हर कुएं की गहराई का लक्ष्य 2500-4500 मीटर रखा गया है. रिपोर्ट कहती है कि खुदाई प्रक्रिया में प्रतिदिन 41 क्यूबिक मीटर अपशिष्ट जल निकाला जाएगा. रिपोर्ट में लिखा है कि इन जिलों (चुराचांदपुर, तमेंगलोंग एवं इंफाल ईस्ट) में जंगल का क्षेत्र क्रमश: 90.96 प्रतिशत, 88.11 प्रतिशत और 34.08 प्रतिशत है. साथ में वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी भी शामिल है. सबसे अहम बात यह कि इस जंगल  में से 9.76 प्रतिशत रिजर्व फॉरेस्ट है. यह अति संवेदनशील क्षेत्र है. यहां लोगों का प्रवेश वर्जित है. इसमें होल्लोक, गीब्बोन एप और हिमालियन भालू पाए जाते हैं. तमेंगलोंग जिला चीतों और गोल्डन बिल्लियों का भी घर है. अब सवाल यह है कि वन विभाग किसी निजी कंपनी को वहां तेल की खुदाई करने की अनुमति कैसे दे सकता है? 



मणिपुर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा आयोजित जन सुनवाई में हिस्सा लेने वाले और तेल निकालने का विरोध करने वाले नुंगबा के ग्रामीणों के  खिला़फ  एफआईआर दर्ज करना बिल्कुल गलत है. इसका मतलब है मणिपुर सरकार, केंद्र सरकार और जुबिलियंट ऑयल एंड गैस प्राइवेट लिमिटेड मिलकर इस प्रदेश के आदिवासियों का हक छीनना चाहते हैं. यह ग्रामीणों के साथ सरासर धोखा है. वे अपने जंगल और ज़मीन की रक्षा करते हुए शांति से रहना चाहते हैं. 
-पामै तिंगेनलूंग, संयोजक, सीपीएनआर.

जन सुनवाई के दौरान इस प्रोजेक्ट के केवल फायदे ही ग्रामीणों को बताए गए, नुकसान नहीं. हम इस तरह तेल खुदाई का विरोध करते हैं. 
-जिरि ईमा मैरा पाइबी अपुनबा लुप (जीआईएमपीएएल). 


राज्य सरकार और जुबिलियंट ऑयल के बीच हुए एग्रीमेंट में यह नहीं लिखा है कि तेल के फैलाव और अन्य नुकसान की ज़िम्मेदारी कौन लेगा.
-राम वांगखैराकपम, पर्यावरण कार्यकर्ता.