यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Tuesday, March 18, 2014

मोदी की टोपी राजनीति

देश को इस तस्वीर का इंतज़ार है

राजनीति में टोपी पहनने और पहनाने का चलन तबसे है, जब से खुद राजनीति का अस्तित्व है. कभी जनता नेता को टोपी पहनाती है तो कभी नेता जनता को. टोपी किसी भी धर्म या जाति की हो, नेता कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसको पहनने से इंकार कर दे, तो कई सवाल उस नेता की नीति और नीयत को ले कर खड़े हो जाते हैं.













ये फोटो असली नहीं है, बल्कि हमने अपनी कल्पना से इसे तैयार किया है, इस उम्मीद से, इस आशा से कि शायद नरेंद्र मोदी एक दिन इस टोपी को जरूर पहनेंगे, क्योंकि देश को इस तस्वीर का भी इंतजार रहेगा.

इन दिनों भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी 16वीं लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए देश के विभिन्न राज्यों में  रैली कर रहे हैं. जहां-जहां जाते हैं, वहां-वहां की सांस्कृतिक और पारंपरिक  टोपी पहने हुए देखे जाते हैं. 8 फरवरी को मणिपुर की राजधानी इंफाल में उन्होंने वहां के राजा-महाराजाओं का मुकुट निंगखम समजी पहना. असम में  रैली के दौरान उन्होंने वहां की पारंपरिक टोपी अजापी पहनी. 22 फरवरी को अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट में हुई विजय संकल्प अभियान रैली में वहां की पारंपरिक टोपी दुमुलूक पहनी. सिलचर में हुई रैली में उन्होंने मणिपुर के मैतै समुदाय के एक हिस्सा, जो अब सिलचर में बसा हुआ है, की टोपी कोयेत पहनी. 16 फरवरी को हिमाचल प्रदेश के सुजानपुर तिरा में हुई परिवर्तन रैली में हिमाचली पहाड़ी टोपी पहनी तो 23 फरवरी को पंजाब के जगरांव, लुधियाना की फतेह रैली में पंजाबी पगड़ी पहनी. पिछले साल मोदी के 63 वें जन्मदिवस के मौके पर गांधी नगर में भिन्न-भिन्न तरह की पारंपरिक टोपी और पोषाक उनके शुभचिंतकों ने पहनाया. सितंबर 2011 में अहमदाबाद में एक सम्मेलन के दौरान मोदी ने बंधानी (एक टाई के रूप) पहनी.
3 फरवरी 2014 को नरेंद्र मोदी अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे की यात्रा के दौरान एक फैंसी टोपी पहने हुए थे, लेकिन सवाल है कि किस्म-किस्म की टोपी पहनने वाले मोदी को एक खास किस्म की टोपी से इतनी नफरत क्यों है


आपको याद होगा कि 2011 में अहमदबाद में सद्भावना उपवास के दौरान जब नरेंद्र मोदी को एक  मुस्लिम धर्मगुरु ने टोपी पहनानी चाही, तो नरेंद्र मोदी ने टोपी पहनने से इनकार कर दिया. मौलवी सैयद इमाम शाही सैयद ने मोदी को टोपी पहना कर स्वागत करना चाहा, मगर उन्होंने टोपी पहनने से इंकार किया. सवाल है कि दूसरे जाति या धर्म की पारंपरिक टोपी पहनने में नरेंद्र मोदी को कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन मुस्लिम टोपी से क्यों परहेज है? जाहिर है, वे ऐसा कर इस देश की एक बड़ी आबादी के महत्व को नकारने की कोशिश कर रहे हैं. क्या इसकी उम्मीद देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार से की जा सकती है

Wednesday, March 12, 2014

अनब्रिकेबल:एन ऑटोबायोग्राफी

संघर्ष की एक ईमानदार कथा

32 वर्षीय एम सी मैरी कोम की आत्मकथा-अनब्रिकेबल:एन ऑटोबायोग्राफी पढ़ने के बाद मुझे बहुत खुशी हुई. आश्‍चर्य भी महसूस हुआ, क्योंकि मैरी कोम ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं. वह केवल बॉक्सिंग की विश्‍व प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं, कोई लेखिका नहीं, जिसने साहित्य के क्षेत्र में कभी काम किया हो. बावजूद इसके, कई यादगार लम्हों को समेट कर उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी, जो क़ाबिले तारीफ है. इस किताब की सबसे बड़ी विशेषता ईमानदार लेखन, साहस के साथ अपनी बात कहना, बॉक्सिंग को अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करना और उसे आने वाली पीढ़ियों की खातिर लोकप्रिय बनाने की उनकी कोशिश है. एक बॉक्सर बनने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष किया, यह बात किताब पढ़ते समय बखूबी मालूम हुई. उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

मैरी कोम मानती हैं कि खेल ही सबको प्यार में बांध सकता है. वह अपनी जाति कोम और जन्मस्थल मणिपुर को बेहद प्यार करती हैं. एक मां होने की ज़िम्मेदारियां, पति के साथ ईमानदार रिश्ते, खेल में राजनीतिक दबाव, मणिपुर का अशांत माहौल एवं समस्याएं उनकी आत्मकथा के हिस्से हैं. यह किताब पढ़कर पता चलता है कि उनके अंदर कितना साहस, सकारात्मक सोच और धैर्य है. वह विश्‍व महिला बॉक्सिंग में पांच बार चैंपियन रहीं और लंदन ओलंपिक 2012 में उन्हें कांस्य पदक मिला. अर्जुन अवॉर्ड एवं पद्मभूषण से सम्मानित मैरी कोम के जीवन पर आधारित यह किताब युवा खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करेगी, उन्हें मेहनत करने की प्रेरणा देगी. मैरी कोम की सफलता की यह कहानी अभी अंग्रेजी में आई है, इसे अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित करने की ज़रूरत है, ताकि लोगों को प्रेरणा मिले.

मैरी कोम मणिपुर के चुड़ाचांदपुर जिले के सागां नामक स्थान पर 22 नवंबर, 1982 को जन्मी थीं. कोम उनकी जाति है. ईसाई धर्म को मानने वाली मैरीकोम की सफलता का मंत्र है, आई मस्ट विन दिस बाउट, आई मस्ट विन, आई मस्ट विन. इस मंत्र को जपते हुए वह पहले प्रार्थना करती हैं, तब खेलना शुरू करती हैं. हर बार खेलने से पहले वह सोचती हैं कि विरोधी खिलाड़ी भी इंसान है. मेरी तरह उसके भी दो हाथ और दो पांव हैं, इसलिए मैं क्यों डरूं. मैरी कोम का बचपन बहुत संघर्षपूर्ण रहा. एक निर्धन परिवार में जन्म होने की वजह से उन्हें अभाव में रहना पड़ता था. लेकिन, इंसान अभाव में ही बहुत कुछ कर सकता है, यह बात मैरी कोम ने साबित कर दिखाई. वह तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं. उनके पिता मांगते तोनपा कोम एक भूमिहीन किसान हैं. बाद में मैरी कोम की नौकरी लगने के बाद जमीन खरीदी गई. मैरी कोम के पिता पारिवारिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मोइरांग के कांगाथै के मुखिया के पास काम करने आ गए. उस वक्त मैरी कोम केवल पांच महीने की थीं. उनके पिता वहां 10 साल से काम कर रहे थे. मुखिया ने थोड़ी सी जमीन उन्हें दी, जिस पर उन्होंने एक झोंपड़ीनुमा घर बनाया. मैरी कोम खेती-बारी का काम भी करती थीं.

उनके पिता ने लोकताक क्रिश्‍चियन मॉडल स्कूल में उनका दाखिला कराया. यह वहां का सबसे अच्छा स्कूल था. रोज एक घंटा पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था. उसके बाद सेंट जेवियर्स स्कूल में सातवीं कक्षा में दाखिला लिया. स्कूल के खेलकूद में हमेशा आगे रहती थीं. खेलों में उनकी विलक्षण प्रतिभा स्कूल के अध्यापकों को पता थी. बाद में 1999 में इंफाल के साई स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में आकर खेलने लगीं. 16-17 की उम्र में उन्होंने पढ़ाई छोड़कर पूरी तरह खेलना शुरू किया. उस वक्त राज्य में महिलाओं का बॉक्सिंग में आना भी शुरू नहीं हुआ था. मैरी कोम को शुरुआती शिक्षक मिले इबोमचा, जिन्होंने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी.

मैरी कोम की शादी ओनलर के साथ मार्च 2005 में हुई. दोनों के रिश्ते और शादी किसी परिकथा से कम नहीं हैं. मैरी तो केवल खेलने में व्यस्त थी. ट्रेनिंग लेने में अधिकतर समय बिताती थी. शादी के बारे में कभी सोचा भी नहीं था. लोगों से घुलने-मिलने, दोस्ती करने का भी समय नहीं मिलता था. ट्रेनिंग में शामिल खिलाड़ियों को ही वह अपना दोस्त मानती थीं. ओनलर के साथ दिल्ली में पहली मुलाकात हुई. ओनलर विधि के विद्यार्थी और दिल्ली के कोम-रेम स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसिडेंट हैं. ट्रेनिंग के दौरान एक दिन ओनलर मैरी से मिलने आए. उसी दिन जान-पहचान हुई. कुछ दिनों बाद ओनलर ने मैरी से शादी का प्रस्ताव रखा. मैरी को आश्‍चर्य हुआ. ओनलर मैरी के जीवनसाथी बनना चाहते थे. ओनलर ने कहा, आई वांट टू प्रोटेक्ट योर करियर एंड डेट इस वन ऑफ द मेइन रीजन्स फॉर माई प्रोपजल. मैरी अस्वीकार नहीं कर सकती थीं. मैरी ने हां कह दी. दोनों की शादी हो गई. यह शादी एक आदर्श शादी थी. अब तीन बच्चे भी हैं. यही सब कुछ उन्होंने अपनी आत्मकथा में समेटा है.

मैरी कोम ने अपने खेल के माध्यम से मणिपुर, भारत और अपनी जाति कोम का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया. मणिपुर की एक साधारण महिला का साहस पूरी दुनिया ने अपनी आंखों से देखा. खेल के क्षेत्र में मैरी कोम का एक बड़ा हिस्सा है. मैरी कोम का एकमात्र सपना है, उनके द्वारा पूर्वोत्तर के लिए स्थापित बॉक्सिंग एकेडमी (एम सी मैरी कोम रीजनल बॉक्सिंग फाउंडेशन) को विकसित करना. सरकार ने उन्हें जमीन दी है और देश-विदेश से सहायता भी मिल रही है. इस एकेडमी में ग़रीब खिलाड़ियों को बॉक्सिंग नि:शुल्क सिखाई जाती है. इस समय 30 से ज़्यादा छात्र एकेडमी में हैं. एक छात्र को 600 रुपये महीने वजीफा दिया जाता है. मैरी कोम को 2016 में रिओ (ब्राजील) में होने वाले वर्ल्ड ओलंपिक में गोल्ड मेडल मिलने की उम्मीद है और वह इसके लिए खूब मेहनत भी कर रही हैं. मैरी, हमें तुम्हारी सफलता का इंतजार है. 

Tuesday, March 11, 2014

15वीं लोकसभा और पूर्वोत्तर

उपेक्षा का सिलसिला जारी है 

पूर्वोत्तर के लोग सड़क, शिक्षा, बिजली, पानी एवं रोज़गार के मामले में आज भी सौ साल पीछे हैं. गांवों में 24 घंटों में दो घंटे बिजली, पीने का अच्छा पानी नहीं. बारिश में पोखर का जमा हुआ पानी पीना. स्कूलों में अध्यापक नहीं. उच्च शिक्षा पाने के लिए पलायन की मजबूरी, क्योंकि यहां के राज्यों में अच्छे विश्‍वविद्यालय नहीं हैं. पूर्वोत्तर इतने दुर्गम पहाड़ों से भरा है कि आने-जाने का मार्ग नहीं है. बीमार होने पर लोग सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते. ऐसी स्थिति में, यह देखना काफी ज़रूरी है कि यहां के सांसदों ने संसद के भीतर क्या किया? जनसमस्याओं के समाधान के लिए क्या किया? उनकी आवाज़ ने सरकार का ध्यान यहां की ओर खींचा या नहीं या फिर वे केवल कोरम पूरा करने के लिए संसद में बैठे रहे?
15वीं लोकसभा में नेशनल फूड सिक्योरिटी बिल जैसे कई महत्वपूर्ण बिल पास हुए. कई बिल पेंडिंग भी हैं. पूर्वोत्तर के लिए मिजोरम यूनिवर्सिटी एमेंडमेंट बिल 2007, द नॉर्थ ईस्टर्न एरियाज (रिऑर्गेनाइजेशन) एमेंडमेंट बिल 2011 आदि महत्वपूर्ण बिल पास हुए और द नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल (एमेंडमेंट) बिल 2013 पेंडिंग रहा. पूर्वोत्तर के कुल 25 सांसद हैं, जिन्होंने संसद के भीतर पूर्वोत्तर की मूलभूत समस्याओं पर कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए. अपने क्षेत्र की आवाज़ बुलंद की और दिल्ली में पूर्वोत्तर के लोगों पर हुए अत्याचार का एक स्वर से विरोध किया. हाल में दिल्ली में अरुणाचल के छात्र नीडो तानिया की हत्या पर अरुणाचल प्रदेश (पूरब) के कांगे्रसी सांसद निनोंग इरिंग ने संसद में आवाज़ उठाई. उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में गैस आपूर्ति के लिए पाइप लाइन बिछाने की मांग करते हुए कहा कि इंडस्ट्रियल जोन में भी गैस पहुंचाने के लिए पाइप लाइन बिछाई जाए. पूर्वोत्तर भारत में उल्फा जैसे संगठनों ने कई बार पाइप लाइन को क्षति पहुंचाई है.

त्रिपुरा (पश्‍चिम) के सीपीआई (एम) के सांसद खगेन दास ने रियांग शरणार्थियों के पुनर्वास, त्रिपुरा में एक स्वतंत्र हाईकोर्ट की स्थापना, रोजमर्रा की ज़रूरत की वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि, रेल, बिजली, पानी एवं परिवहन संबंधी मुद्दे संसद में उठाए. सबसे अहम सवाल उन्होंने संसद में किया कि 2005 में प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन किया हुआ नेशनल हाईवे-44 अभी तक अधूरा पड़ा है. यह त्रिपुरा के लिए लाइफलाइन है, लेकिन 10 सालों से अभी तक काम चल ही रहा है. मेघालय (तुरा) से एनसीपी की युवा सांसद अगाथा संगमा जब लोकसभा में पहली बार चुनकर आईं, तब उन्होंने लोगों को खूब आकर्षित किया. केंद्र में ग्रामीण विकास मंत्री भी बनीं. अपने कार्यकाल में उन्होंने पूर्वोत्तर के ग्रामीण विकास को लेकर काम किया, लेकिन कई काम अधूरे रह गए. अगाथा ने आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफसपा) को लेकर सवाल उठाया था कि यह क़ानून पूर्वोत्तर में लागू न हो. उन्होंने यह एक्ट हटाने के लिए कई वर्षों से भूख हड़ताल कर रहीं इरोम शर्मिला से मुलाकात कर उनकी मांग का समर्थन किया.
मणिपुर (इनर) के कांग्रेसी सांसद थोकचोम मैन्य ने भी अफसपा जैसे सवाल संसद में उठाए, भले ही उन्हें मीडिया के सामने तीखी आलोचना झेलनी पड़ी. ग़ौरतलब है कि जब नेशनल हाईवे-39 दो महीने से ज़्यादा समय तक बंद रहा, तब लोगों का जीना दुश्‍वार हो गया था. एलपीजी सिलेंडर, पेट्रोल, दवाइयों एवं खाद्य पदार्थों के दाम दोगुने हो गए थे. उन्होंने फर्जी मुठभेड़, आतंकी संगठनों, एनएससीएन (आईएम) प्रमुख मुइवा की जन्मस्थल वापसी, नेशनल हाईवे (इंफाल-जीरी), ऑटोनोमस डिस्ट्रिक काउंसिल आदि मामलों पर आवाज़ बुलंद की. लुक ईस्ट पॉलिसी के तहत म्यांमार और पूर्वोत्तर से जुड़ने वाला रोडमैप तैयार कराने की बात कही. इंफाल तक रेल पहुंचने से रोज़गार बढ़ेगा, इसलिए वहां जल्द से जल्द रेल पहुंचाने की मांग की. नगालैंड के नगालैंड पीपुल्स फ्रंट के सांसद सीएम चांग नगा राजनीतिज्ञ हैं. वह नगाओं की समस्याएं संसद में उठाते रहे. असम से पूर्वोत्तर के सबसे ज़्यादा यानी कुल 14 लोकसभा सदस्य हैं, जिनमें डिब्रूगढ़ से इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) के पवन सिंह घटोवार प्रमुख हैं. वह डेवलपमेंट ऑफ नॉर्थ ईस्टर्न रीजन एंड पार्लियामेंट्री अफेयर्स (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री हैं. उन्होंने कई महत्वपूर्ण सवाल संसद में उठाए. उन्होंने असम में बाढ़ की स्थिति में लोगों की सहायता की मांग उठाते हुए संसद में बहस भी की. स्वतंत्रता सेनानियों, ब्रह्मपुत्र बोर्ड, असम चाय अनुसंधान, झूम कल्टीवेशन एवं पूर्वोत्तर के नेशनल हाईवे को 4 लेन करने संबंधी मुद्दे उन्होंने संसद में उठाए. 

पूर्वोत्तर के सांसदों ने सदन के भीतर स्थानीय समस्याएं उठाने का काम ज़रूर किया, लेकिन उनकी आवाज़ पर 15वीं लोकसभा ने कितना ध्यान दिया, सरकार उनकी मांगों के प्रति कितनी गंभीर रही, यह तब पता चलता है, जब हम पूर्वोत्तर की लगातार बदतर हो रही स्थिति को देखते हैं. प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी रस्मी तौर पर पूर्वोत्तर की यात्राएं करते रहे, लेकिन उनकी घोषणाओं एवं आश्‍वासनों पर अमल नहीं हुआ. ज़ाहिर है, पूर्वोत्तर के सांसदों को अब पार्टी लाइन से ऊपर उठकर न स़िर्फ संसद के भीतर आवाज़ उठानी होगी, बल्कि अपनी मांगें पूरी कराने के लिए उन्हें सड़क पर आने से भी परहेज नहीं करना चाहिए.

संसद में पूर्वोत्‍तर के सांसदों की उपस्थिति 
  • राज्य                   सांसद                    पार्टी                                   संसद में उपस्थिति (प्रतिशत)  
  • मणिपुर                थांगसो बाइते           इंडियन नेशनल कांग्रेस             98%
  • मणिपुर                थोकचोम मैन्य         इंडियन नेशनल कांग्रेस             99%
  • मेघालय                अगाथा संगमा         नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी            49%
  • मेघालय                विंसेंट एच पाला       इंडियन नेशनल कांग्रेस             83%
  • त्रिपुरा                    बाजु बान रियान      माकपा                                    85%
  • त्रिपुरा                    खगेंद दास               माकपा                                    74%
  • मिजोरम               सीएम रौला             इंडियन नेशनल कांग्रेस             95%
  • नगालैंड                 सीएम चांग              नगालैंड पीपुल्स फ्रंट                 78%
  • सिक्किम               प्रेमदास राय           सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट           87%
  • अरुणाचल प्रदेश     निनोंग इरिंग          इंडियन नेशनल कांग्रेस              88%
  • अरुणाचल प्रदेश     टकम संजय            इंडियन नेशनल कांगे्रस            63%
  • असम                   बद्रूडिन अजमल       असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट  48%
  • असम                   विजोय कृष्ण हनडिक  इंडियन नेशनल कांग्रेस           92%
  • असम                   विजोया चक्रवर्ती      भारतीय जनता पार्टी                   84%
  • असम                   विरेन सिंह इंगटी       इंडियन नेशनल कांग्रेस              95%
  • असम                   दीप गोगोई                इंडियन नेशनल कांग्रेस              79%
  • असम                   इस्माइल हुसैन         इंडियन नेशनल कांग्रेस              94%
  • असम                   जोसेप टोप्पो             असम गण परिषद                     76%
  • असम                   काबिंद्र पुरकायस्थ     भारतीय जनता पार्टी                 89%
  • असम                   ललित मोहन सुक्लवैद्य  इंडियन नेशनल कांग्रेस         95%
  • असम                   पवन सिंह घटोवार      इंडियन नेशनल कांग्रेस            91%
  • असम                   राजेन गोहैन               भारतीय जनता पार्टी                54%
  • असम                   रामेन डेका                  भारतीय जनता पार्टी               84%
  • असम                   रानी नराह                   इंडियन नेशनल कांग्रेस           83%
  • असम                   संसुमा खंगर बासुमतारी  बोडोलैंड पीपुल फ्रंट              63%