यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Wednesday, October 23, 2013

राजनीतिक पार्टियों का कांग्रेस पर हमला

मिजोरम चुनाव 

मिजोरम विधानसभा चुनाव 4 दिसंबर को हो रहा है. चुनाव की तारीख घोषित होते ही राज्य में चुनावी हलचल मचने लगी है. सभी पार्टियां अपनी अपनी तैयारी में लग गई हैं. राज्य के 6,86,305  मतदाता विधानसभा चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे.  मिजोरम में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है.

बहरहाल, 40 विधानसभा सीट वाला राज्य मिजोरम मुख्य विपक्षीय दल मिजो नेशनल फ्रंट, मिजोरम पीपल्स कान्फरेन्स (एमपीसी), जेएनपी और अन्य पार्टियों ने कांग्रेस पर हमला करने के लिए कमर कसना शुरू किया है. उन पार्टियों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी पायलट परियोजना, नई भूमि उपयोग नीति ललथनहावला नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को वापस आने में कारगर साबित नहीं होगी. मिजोरम पीपल्स कान्फरेन्स के कार्यकारी महासचिव डॉ. केनेथ च्यांगलियाना ने कहा कि आनेवाले विधानसभा चुनाव में पायलट परियोजना, नई भूमि उपयोग नीति एक खास मकसद से सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी द्वारा राज्य में लागू की गई है. यह चुनावी फायदे के लिए ही राज्य में लाई है. कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की बौछार विरोधी पार्टियों द्वारा की जा रही है.

राज्य में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और मिजोरम पीपल्स कान्फरेन्स (एमपीसी) चुनावी एजेंडा भ्रष्टाचार मुक्त सरकार बनाना है. एमएनएफ-एमपीसी ने लोगों से आह्वान किया कि एक साफ छवि की सरकार देने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं. मिजो नेशनल फ्रंट, मिजो राष्ट्रवाद को ज्यादा तवज्जो देता है. एमएनएफ ग्रेटर मिजोरम के गठन की मांग को चुनावी मुद्दा बना कर लोगों से अपील की है कि राज्य के भीतर सभी मिजो एकजुट होकर रह सकें. एक शासन तंत्र के तहत सभी मिजो को एकजुट होने की अपील एमएनएफ ने की. केंद्र सरकार और लालदेंगा के बीच 30 जून 1986 को हुए समझौते के अनुसार मिजो लोगों की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. दूसरी ओर मिजोरम पीपल्स कनेक्शन ने चुनावी दस बिंदु बनाए है, जो राज्य के विकास पर केंद्रित हैं. 

भारतीय जनता पार्टी राज्य में कमजोर स्थिति में है. पिछले चुनावों में भाजपा अपना एक भी उम्मीदवार जिता नहीं पाई. 1998 के चुनाव में तो 12 उम्मीदवारों में कोई जीत नहीं पाया था. राज्य में भाजपा का नामोनिशान मिट सा गया था. अब मोदी के हाथों में चुनावी कमान आने के बाद हो सकता है राज्य में इस बार चुनाव में कुछ खास चमत्कार हो. एमएनएफ-एमपीसी के गठबंधन में राज्य में 1998 के चुनाव में ऐतिहासिक जीत हुई थी. लोगों को पूर्वोत्तर के चुनावी इतिहास में एक अनहोनी घटना लगी थी. मगर कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत करने में देर नहीं की. पिछले 10 सालों से कांग्रेस की स्थिति राज्य में मजबूत है. मगर इस बार कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा. विरोधी पार्टियां एक जुट हो कर कांग्रेस पर हमला बोलेंगी. दूसरी सबसे बड़ी चुनौती मोदी हैं. मोदी का नाम आजकल सबकी जुबान पर है. पूर्वोत्तर के राज्यों में गांव-देहात तक मोदी का नाम चल रहा है. सोशल साइट्स पर वहां के लोग लिख रहे हैं कि हम बदलाव चाहते हैं, उसके लिए भगवान ने मोदी को भेजा है. मोदी कौन हैं, कैसे हैं, इससे उनको कोई मतलब नहीं है. बस बदलाव चाहिए. इसलिए मोदी का नाम लिया जा रहा है. वर्षों से कांग्रेस का शासन राज्य में है. उसकी स्वार्थी राजनीति से लोग आहत हुए हंै. वैसे राज्य में समता पार्टी की स्थिति भी वैसी ही है, जैसी भाजपा की.

वैसे राज्य में सक्रिय मार और रियांग उग्रवादी संगठनों के बीच शांतिपूर्ण चुनाव हो पाना अपने आप में एक बड़ा सवाल है. ये संगठन राज्य के पश्चिम और उत्तर पूर्व हिस्से में अधिक सक्रिय हैं. हर बार आशंकाओं के बीच चुनाव होता है. इसलिए भी राज्य में पुलिस बल   जरूरी है. चुनाव अभियान के खर्च पर चुनाव आयोग द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद उम्मीदवारों के दरवाजे पर संगीत कार्यक्रम पूर्वोत्तर पहाड़ी राज्यों की विशिष्ट पहचान है. मिजो धर्मसभा के प्रेस्बिटेरियन चर्च ने आनेवाले मिजोरम विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार के दौरान विद्रोही और सशस्त्र समूहों का उपयोग नहीं करने के लिए राजनीतिक दलों से आग्रह किया है. मिजोरम पीपुल्स फोरम (एमपीएफ) को मिजोरम की सबसे बड़ी धर्मसभा द्वारा एक चुनावी वाच डॉग के रूप में जारी किया गया है.
मालूम हो कि पिछले विधानसभा चुनावों में अधिकांश भारतीय राज्यों के चुनावी एजेंडे में भले ही पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को प्राथमिकता

नहीं मिलती है, लेकिन मिजोरम विधानसभा चुनाव के दौरान ये मुद्दे प्रमुख बन कर उभरे थे. बांस में आए फूल राज्य की सबसे बड़ी आर्थिक और पर्यावरणीय समस्या बने हुए थे, जिनसे निपटने के लिए वहां की सरकार ने कई कार्यक्रमों की घोषणा की है. चूहा मारने वालों को इनाम भी दिए जा रहे थे. हरियाली से ढके मिजोरम के लोग पर्यावरणीय संतुलन को लेकर संजीदा रहे हैं, इसलिए राजनीतिक पार्टियां ने भी इसे प्रमुख मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. राज्य के 80 फीसदी हिस्सों में जंगल है. अधिकांश दलों ने इसे अपने एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया था. मगर इस बार भ्रष्टाचार और मिजो राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया है.

राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अश्विनी कुमार ने 1,126 मतदान केंद्रों में से 94 को संवेदनशील घोषित किया है. राज्य में आचार संहिता लागू हो गई है. राज्य की शांति रक्षा के मद्देनजर सेंट्रल पेरामिलिट्री फोर्स, 31 कंपनियां साथ में राज्य की आर्म्‍ड पुलिस बटालियन आठ भी तैनात की गई है. जिला चुनाव अधिकारी का काम करना शुरू हो चुका है. उन्होंने कहा कि जब तक 4 दिसंबर को चुनाव नहीं होते तब तक के लिए म्यांमार के  अंतराष्ट्रीय सीमा और बांग्लादेश सीमा को बंद कर दिया जाएगा. कुमार ने कहा कि कई मौजूदा कार्यों के चलते रहने की इजाजत दी जाएगी, नए कार्यक्रमों के एलान एवं कार्यान्वयन पर रोक लग जाएगी. उन्होंने कहा कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर वीएस संपथ मिजोरम में अक्टूबर महीने में दौरा करेंगे. एसेंबली पोल की सूचना 8 नवंबर को दी जाएगी. 4 तारीख को वोटिंग होगी और 8 दिसंबर को मतगणना होगी.



Monday, October 21, 2013

हग्रामा ने छोड़ी पृथक बोडोलैंड की आस

सब वोट बैंक की राजनीति

बोडोलैंड की मांग को लेकर हुएदर्दनाक नरसंहार को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. उस अप्रिय घटना में लाखों को अपनी जानें गंवानी पड़ी थीं. असम के लोगों ने अपनों को कटते और जलते हुए देखा था. उस भयावह और खतरनाक दिन को लोग अब भी याद कर कांफ जाते हैं. मगर आश्चर्य की बात है कि डिवाइड असम 50-50 के नारे से पृथक बोडोलैंड राज्य गठन किए जाने की मांग को बुलंद करने वाले बीटीएडी (बोडोलैंड टेरिटोरिएल एरिया डिस्ट्रीक्स) सुप्रीमो और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीटीएफ) के अध्यक्ष हग्रामा महिलारी ने सात सितंबर को एक सभा में स्पष्ट कहा कि पृथक बोडोलैंड संभव नहीं है. अब पृथक बोडोलैंड राज्य का गठन नहीं होगा और यह बात सौ प्रतिशत सच है. बोडोलैंड का गठन कब होगा, यह कोई नहीं जानता. इसलिए आंदोलन करके कोई फायदा नहीं है. बोडोलैंड की मांग पर जो आंदोलन चल रहा है, उस के पीछे राजनीतिक कारण हैं. आगामी लोकसभा चुनाव के कारण ही विभिन्न पक्षों की ओर से वोट बैंक के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है. बीपीएफ भी पृथक बोडोलैंड की मांग पर आंदोलन कर रही है. महिलारी ने आगे कहा कि मेरी बात से लोग बुरा मानेंगे, मगर मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि पृथक बोडोंलैंड का गठन नहीं होगा.

हालांकि राजनीतिक हलकों में हग्रामा के इस बयान को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. वैसे 5 सितंबर को बोडो नेशनल कान्फरेंस (बीएनसी) व बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ दिल्ली में हुए त्रिपक्षीय वार्ता में यह साफ हो गया था कि बोडोलैंड का गठन अभी संभव नहीं है. क्योंकि सरकार के पास नया राज्य गठन करने की कोई योजना नहीं है. केंद्र ने साफ कर दिया था कि कभी निकट भविष्य में नए राज्यों का गठन होगा तो बोडोलैंड पर भी विचार किया जाएगा. सभी लोगों को पता है कि नए राज्यों का गठन अभी नहीं हो सकता है. बोडोलैंड टेरिटोरिएल काउंसिल (बीटीसी) के विकास के लिए सभी समझौते को लागू करने व सुविधा मुहैया कराने पर बल दिया गया है. सरकार ने बीटीसी को और अधिक शक्तिशाली बनाने का आश्वासन दिया है.

हग्राम की टिप्पणी से बोडो भूमि पर भूचाल

पृथक बोडोलैंड की मांग को लेकर बीटीएडी सुप्रीमो हग्रामा महिलारी की ओर से की गई टिप्पणी को लेकर बोडो भूमि पर भूचाल-सा आ गया है. ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन (अब्सू) समेत कई बोडो संगठनों ने हग्रामा की टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई है. कई जगह हग्रामा के पुतले फूंके गए हैं. अब्सू की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में संगठन के अध्यक्ष प्रमोद बोडो व महासचिव रोमियो पी. नर्जारी ने इस तरह की गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी से बाज आने को महिलारी से आग्रह किया. दूसरी ओर पृथक बोडोलैंड की मांग को लेकर केंद्र व राज्य सरकार के साथ दूसरे दौर की त्रिपक्षीय बैठक तक अब्सू ने अपने पूर्व घोषित राष्ट्रीय राजमार्ग व रेल मार्ग अवरोध कार्यक्रम को फिलहाल स्थगित रखा है. अब्सू नेताओं ने विज्ञप्ति में बताया कि त्रिपक्षीय बैठक की प्रगति को ध्यान में रखते हुए संगठन ने अक्तूबर में होने वाली दूसरे दौर की बैठक तक अपना आंदोलन स्थगित रखने का फैसला किया है. वहीं बीटीएडी में अपहरण, धन-उगाही व गैर-कानूनी तरीके से कर वसूली आदि जैसी घटनाओं के सिलसिले में केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को संगठन की ओर से एक ज्ञापन भी सौंपा गया है. ज्ञापन में बीटीएडी में इन अनैतिक कार्यों को तत्काल बंद करने की केंद्रीय गृहमंत्री से मांग की गई है. इस बीच बोडो नेशनल कौंसिल बीएनसी, बीपीपीएफ समेत कई संगठनों ने जगह-जगह हग्रामा की इस टिप्पणी का कड़ा विरोध किया हे. उदालगुड़ी समेत बीटीएडी के विभिन्न भागों में इसके विरोध में हग्रामा के पुतले फूंके गए. बीपीएफ के उदालगुड़ी कार्यालय में शरारती तत्वों ने आग लगा दी. अब्सू, बीएनसी या बीपीपीएफ ही नहीं, बल्कि महिलारी के खिलाफ उनकी ही पार्टी बीपीएफ के कुछ शीर्ष नेता भी नाराज हैं. बीटीसी के उप मुख्य कार्यवाही सदस्य खम्फा बरगयारी ने हग्रामा की टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बीएनसी का मूल लक्ष्य ही पृथक बोडोलैंड का गठन है. अगर कोई बोडोलैंड नहीं चाहता तो उसे बीएनसी से बाहर हो जाना चाहिए.
आखिर एक पृथक राज्य की मांग करनेवाला एक नेता का इस तरह का गैरजिम्मेदाराना बयान देना कहां तक उचित है. इस मांग पर इतना बड़ा दंगा हुआ था, लाखों की जानें जा चुकी थीं, क्या वह सिर्फ वोट बैंक के लिए हुआ था. वैसे हग्रामा ने वोट वैंक की स्वार्थिक राजनीति में लोगों की बात करना छोडक़र अपने मन की बात की है. इस बात से साफ है कि उनकी मंशा स्पष्ट नहीं है. पूर्वोत्तर में और भी कई स्वायत्त दल प्रथक राज्यों की मांग कर रहे हैं. ऐसे में हग्रामा की टिप्पणी सुन कर लोगों को और सरकार को इस तरह की मांगों पर यकीन नहीं करेंगे. इसलिए बोडोलैंड की मांग पर जुड़े नेताओं को सार्वजनिक बयान सोच समझ कर देना होगा, वर्ना कहीं बोडोलैंड की मांग मजाक न बन जाए.

बोडोलैंड की मांग क्या है

बोडोलैंड राज्य का प्रस्ताव ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर स्थित जिलों का है. यह एक स्वायत्त प्रशासनिक इकाई है, जिसका गठन छठी अनुसूचित के तहत किया गया था. बोडोलैंड राज्य के नक्शे में चार जिला कोकड़ाझाड़, बस्का, उदलगुड़ी और चिरांग शामिल है. वर्तमान में कोकड़ाझाड़ पृथक बोडोलैंड की राजधानी है. बोडोलैंड का क्षेत्रफल 8795 किमी में फैला है. पृथक बोडोलैंड आर्थिक, शिक्षा, जमीन का अधिकार, भाषा का अधिकार, सामाजिक-सांस्कृतिक और बोडोओं की जातीय पहचान को विकसित करने के मकसद से बना था. परिषद का वास्तविक कामकाज 7 दिसंबर 2003 को अस्थाई 12 सदस्यों के साथ शुरू किया गया था. बोडो समुदाय के दो चरमपंथी गुट, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और वार्तापंथी पृथक बोडोलैंड राज्य की मांग कर रहे हैं. दूसरी तरफ बीटीसी इलाके में गैर बोडो समुदायों की नाराजगी का एक प्रमुख कारण शायद यह भी है कि वहां स्वायत्त शासन लागू होने के बाद से कानून-व्यवस्था की स्थिति पहले से बदतर हो गई है. गैर बोडो समुदाय अक्सर अपने साथ भेदभाव होने और शिकायत करने पर पुलिस द्वारा उचित कार्रवाई न किए जाने का आरोप लगाते रहे हैं.

कौन है हग्रामा मोहिलारी


हग्रामा मोहिलारी उर्फ हग्रामा बासुमटारी बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के  मुख्य कार्यकारी सदस्य हैं. वह बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स (बीएलटीएफ) के पूर्व मुखिया थे. उन्होंने 2641 कैडरों के साथ 6 दिसंबर 2003 को समर्पण किया था. बीएलटीएफ ऐसा एक सशस्त्र समूह है, जो बोडो बहुल क्षेत्रों पर सक्रिय है. उनका संघर्ष है असम राज्य से अलग होकर बोडोओं का अलग राज्य बनाना, जिसका नाम बोडोलैंड है. यह संस्था 18 जून 1996 को प्रेम सिंह ब्रह्मा के नेतृत्व में बनाई गई थी. बोडोलैंड काउंसिल का गठन भारत सरकार, असम सरकार और बोडो लिबरेशन टाइगर के बीच 10 फरवरी 2003 को हस्ताक्षरित समझौते (मेमोरेंडम ऑफ सेटलमेंट) में वर्णित प्रावधानों के आधार पर किया गया था. हग्रामा को बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के मुखिया के तौर पर चुना गया था साथ में 12 कार्यकारी सदस्य भी शामिल किए गए थे. वह बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के भी सभापति हैं.