यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Friday, September 20, 2013

भगवान भरोसे नेशनल हाइवे

मणिपुर में नेशनल हाइवे की स्थिति पिछले छह महीनों से बदतर स्थिति में पहुंच चुकी है, जिसके कारण स्थानीय लोगों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. राज्य में रोजमर्रा की चीजें आसमान छूने लगी हैं और सरकार है कि वादों का सिर्फ ढोल पीटने में ही लगी है. मणिपुर के निवासियों को वहां की सडक़ों के दिन फिरने का इंतजार है, देखना यह होगा कि लोकसभा के इस चुनावी समर में भी उनकी कोई सुनता है या नहीं या इस बार भी नेतागण सिर्फ वादों से ही काम चला लेते हैं.  

Photo : e-pao.net

मणिपुर को भारत में शामिल किए लगभग 64 वर्ष हो चुके हैं. बावजूद इसके, आज तक यहां मुख्यधारा से जोडऩे वाला कोई भी रास्ता सही तरीके से नहीं बनाया गया. मणिपुर के साथ बाहर के राज्यों से संपर्क का सिर्फ एक ही रास्ता है. नेशनल हाइवे 39 (इंफाल-डिमापुर). एक समय इस हाइवे पर 65 दिनों की आर्थिक नाकेबंदी हुई थी. उस समय आम जनता के बीच त्राहिमाम मच गया था. जिंदगी नरक बन गई थी. रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल करनेवाली चीजों की कीमत आसमान छूने लगी थी. एलपीजी गैस सिलेंडर का दाम 2500 और पेट्रोल प्रति लीटर 250 रुपए बिकने लगा था. आज फिर यह हाइवे चर्चा में है, क्योंकि पिछले दिनों लैंडस्लाइडिंग की वजह से 300 मीटर लंबा रोड पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है. 12 जुलाई के बाद से ही कोहिमा के फेसिमा में यातायात पूरी तरह से ठप है. हाइवे को बंद कर दिया गया है. लोगों को सडक़ निर्माण का इंतजार है. स्थानीय लोगों का मानना है कि सडक़ बनने में 5 से 6 महीने लगेंगे.

इस सडक़ के विकल्प के तौर पर नेशनल हाइवे 37 (इंफाल-जिरि) का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन उसकी भी स्थिति बदतर है और आने-जाने लायक नहीं है. सडक़ पर यातायात व्यवस्था बहाल करने के लिए डिफेंस मिनिस्टर ऑफ स्टेट जीतेंद्र सिंह भी वहां पहुंचे थे. हाइवे की खराब स्थिति का अंदाजा इस बात से लागाया जा सकता है कि जिस गाड़ी में मंत्री महोदय जा रहे थे, वह गाड़ी भी रास्ता खराब होने के कारण बीच में ही फंस गर्ई. इसके बाद मंत्री जी को दूसरी गाड़ी में जाना पड़ा. हाइवे 37 इंफाल-जिरि के बीच में बराक और मक्रू पुल है, इस पर निर्मित हैंगिंग क्लाम टूटा हुआ है, जिसे तार से बांधा हुआ है. इसे भी मंत्री जी से दिखाया गया. मंत्री ने आश्वासन दिया है कि 15 दिनों के अंदर वे इंजीनियरों की टीम भेजेंगे, ताकि इसे जल्द से जल्द ठीक किया जा सके. 20 दिसंबर को उन्होंने खुद इस हाइवे को देखने आने को भी कहा था. वहां ड्यूटी पर तैनात सीआरपीएफ जवानों से मंत्री के पूछने पर पता चला कि इस कमजोर पुल से कम से कम 800 गाडिय़ां रोज पार करती हैं. इस दौरे में मिनिस्ट्री ऑफ ट्रांस्पोर्ट एंड हाइवे के चीफ इंजीनियर एस वर्मा, बीआरओ ऑफिसियल, चीफ मिनिस्टर और डिप्टी चीफ मिनिस्टर भी शामिल थे.

नेशनल हाइवे-37 (इंफाल-जिरि) 1980 में बना है. इस हाइवे को बनाने का काम बीआरटीएफ (बॉर्डर रोड टास्क फोर्स) द्वारा किया जा रहा है. गौरतलब है कि 15वीं बीआरटीएफ कर्नल तेजपाल ने अगस्त महीने तक काम पूरा होने की संभावना जताई थी, ताकि हैवी व्हीकल के जाने-आने में दिक्कत न हो. 16 जुलाई से काम शुरू हो चुका था. बारिश अधिक होने की वजह से रास्ता बनाने में कठिनाई हो रही है. बारिश में रास्ता बनाने वाली मशीनें भी काम नहीं कर पा रही हैं. बारिश होने की वजह से पूरे दिन में 3-4 घंटे से ज्यादा काम नहीं हो पा रहा है, इसलिए काम में देरी होने की संभावना बढ़ गई है. ये आश्वासन मंत्री महोदय ने दिए थे, लेकिन अगस्त महीने तक काम पूरा होने का जो वादा उन्होंने किया था, वो अब तक पूरा नहीं हो पाया है. गाडिय़ां अभी भी नहीं जा पा रही हैं. यात्रियों को क्षतिग्रस्त रास्तों से सफर तय करना पड़ रहा है, जो कभी भी किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकता है. वैसे बीआरटीएफ अलग-अलग राज्यों में और म्यांमार में रोड बनाने का काम कर चुका है, लेकिन इंफाल-जिरि रोड की मरम्मत कब होगी, यह अभी तय नहीं है. 225 किमी लंबा इंफाल-जिरि रोड के बीच नोने से अवांगखुन तक 40 किमी और खोंगसांग से बराक तक 30 किमी का कुल 70 किमी कीचड़ से भरा हुआ कच्चा रास्ता है, जिसके कारण यात्रियों को बहुत सारी परेशानियां उठानी पड़ रही हैं. बारिश का पानी तो इस सडक़ पर आने-जाने लायक ही नहीं छोड़ता और फंसी हुई गाडिय़ों की लंबी कतार लग जाती है. सडक़ की खस्ताहाल स्थिति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पहले जहां इंफाल से जिरि तक जाने में मात्र 5 से 6 घंटा लगते थे, वहीं अब दो से तीन दिन लगते हैं. 

नेशनल हाइवे 39 (इंफाल-डिमापुर) की अपेक्षा हाईवे 37 (इंफाल-जिरि) में कम धन उगाही, बंद-ब्लॉकेड, हत्या, कई अप्रिय घटनाएं होती हैं. दूसरी तरफ इंफाल-डिमापुर बंद होने के बाद भी जिरि होते हुए सामान लादने वाली गाडिय़ां इंफाल पहुंचती हैं. ऐसे में यह रास्ता अगर बन कर तैयार हो जाता है, तो यह रास्ता मणिपुर का पहला लाइफ लाइन बन सकता है. हाइवे 37 के बने लगभग 40 साल हो गए. रास्ते के बनने के बाद से इसमें जो पुल बीच में पड़ा था, वो अभी भी वैसे के वैसे ही पड़ा हुआ है. इस पुल में कोई बदलाव आज तक नहीं किया गया है और न ही कोई मरम्मत की गई है. इसे केवल पार करने लायक बना दिया गया है और किसी तरह से काम चलाया जा रहा है. फिलहाल तो बरसात का मौसम भी है, इसलिए और भी इस रास्ते की स्थिति खराब हो गई है. वैसे दोनों हाइवे राज्य की लाइफलाइन हैं. रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल करने वाली हर चीजें इस रास्ते से होकर इंफाल आती हैं. फिर भी दोनों हाइवे की स्थिति बेहद खराब है. दोनों को नेशनल हाइवे तो घोषित कर दिया गया, मगर उनके निर्माण और रख-रखाव की बात किसी ने अब तक नहीं सोची.

हाईवे 39 की स्थिति खराब होने से राज्य में महंगाई इतनी बढ़ गई है कि आम जनता त्रस्त है. सामानों की कीमतें बढऩे से कमाई कर खानेवाले किसानों की तो और भी हालत खराब है. छोटे-मोटे हर सामान इस रास्ते से होकर आते हैं, लेकिन रास्ता ठप पडऩे से खाने-पीने का सामान, दवाई, पेट्रोलियम पदार्थ आदि नहीं पहुंच पा रहा है. इसलिए राज्य में लोगों का जीना मुहाल हो गया है. पेट्रोल के लिए सुबह से लंबी लाइन लगी होती है. ब्लैक में एक लीटर पेट्रोल 200 से 250 रुपए में खरीदना पड़ रहा है. यह स्थिति तभी उत्पन्न होती है, जब नेशनल हाइवे बंद होता है. समय रहते इस रास्ते को अगर नहीं बनाया गया तो आनेवाले दिनों में स्थिति और भी बदतर हो सकती है.

दूसरी तरफ इस हाइवे पर कई आए दिन घटनाएं भी होती रहती हैं. इस हाइवे पर कई अलगाववादी संगठन अवैध वसूली करते रहते हैं. उनकी मांगें नहीं मानने पर वे यात्रियों को मारने, सामान लूटने और ड्राइवरों को मार डालने जैसी घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं. इन घटनाओं के कारण कई बार जनता ने रोड ब्लॉकेड करना और हिंसक प्रदर्शन का सहारा लिया है. आज यहां की जनता के लिए यह प्रदर्शन आम हो गया है. इतना ही नहीं, हाइवे के आसपास बसे लोगों द्वारा किसी मुद्दे को लेकर सरकार से मांग की जाती है और उनकी मांग नहीं पूरा होने की स्थिति में रास्ता बंद कर दिया जाता है. फिलहाल अलग राज्यों की मांग को लेकर फिर से लोगों ने हाइवे ब्लॉकेड करना शुरू कर दिया है. रास्तों को बंद करने से रोकने के लिए आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. सिविल ऑर्गनाइजेशनों ने इसे रोकने के लिए हाइवे सिक्योरिटी रखने की मांग भी केंद्र सरकार से की थी, लेकिन सरकार ने आज तक उनकी एक भी नहीं सुनी.


बहरहाल, नेशनल हाइवे का संबंध राज्य से उतना नहीं है, जितना कि केंद्र से. राज्य के लिए तो इसे केवल सही तरीके और समय पर खत्म होने की मॉनिटरिंग करना है. साथ में उसकी रिपोर्ट सेंटर को भेज कर नियत समय पर खत्म करवाने की मांग करना है. जिरिबाम के लोग 20 वर्षों से मांग करते आए हैं कि इस हाइवे को सही तरीके से बनाया जाए, ताकि एक हाइवे पर लोग निर्भर न रहें. सरकार की उदासीनता के विरोध में लोगों ने प्रदर्शन तक किया था और उनका कहना था कि जब तक रास्ता नहीं बनाया जाएगा, तब तक गाड़ी नहीं चलने देंगे. कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन सभी ने सिर्फ आश्वासन दिया, किया कुछ नहीं. सडक़ों के खराब होने पर थोड़ा बहुत ठीक करके उनकी सुध कभी नहीं जाती. सच्चाई यह है कि पूरी सडक़ें आज तक नहीं बनीं, जबकि आवश्यकता इस बात की है कि निर्धारित समय में काम पूरा किया जाए. ग्रामीणों का कहना है कि इस बार केंद्र सरकार कितना पूर्वोत्तर को याद करता है, इसका उदाहरण केंद्रीय
मंत्री के दौरे से पता चलेगा. पिछले साल भी सितंबर में मणिपुर में आए यूनियन मिनिस्टर ऑफ स्टेट फॉर डिफेंस पल्लम राजु ने कहा था कि 2013 
के दिसंबर महीने तक इस हाइवे का काम
पूरा हो जाएगा. केंद्रीय मंत्री जीतेंद्र सिंह ने 2014
 के जून तक हाइवे बनाने का काम पूरा होने का
वायदा किया है. अब देखना यह है कि देर से ही सही
, केंद्रीय मंत्री का वायदा कहां तक पूरा हो
पाता है.