यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Sunday, June 21, 2009

18 जून मणिपुर के इतिहास में एक यादगार दिन


केंद्र सरकार और एनएससीएन आईएम के बीच युद्ध विराम यानी सीज फायर की खबर जब मणिपुर पहुंची, उससे पहले से ही प्रदेश की जनता इस बात की उम्मीद लगा चुकी थी. 2001 के 18 जून को केंद्र सरकार और एनएससीएन आईएम के बीच युद्धविराम लागू कराने वाली जगहों को बढ़ाने में मणिपुर भी शामिल था. लेकिन यु+द्ध विराम हो, इससे पहले यह खबर इंफाल पहुंच गई. यह खबर पूरे राज्य में बवंडर की तरह फैल गई. मणिपुर की कई संस्थाओं ने इसे मानने से इंकार कर दिया. अमुको, एमसु, निपको, एमकिल, ईपसा, यूपीएफ आदि ने मिल कर इस निर्णय को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के इरादे से आम हड़ताल की घोषणा कर दी, जो 15 जून की रात से लागू होकर 18 जून तक चला. हड़ताल की शुरुआत में केंद्र के सत्ताधारियों सहित राज्य में शासन कर रहे नेताओं का पुतला दहन कर इन संस्थाओं ने अपना विरोध जताया. हड़ताल का चौथा दिन, 18 जून. यह दिन राज्य के इतिहास में काला दिन साबित हुआ. इस दिन में कई मासूमों की जान चली गई. इस दिन भोर में ग्रेटर इंफाल के इलाके में रहनेवाली जनता ने जगह-जगह नुक्कड़ पर इकट्ठा होकर बैठक करना शुरू किया. भारी तादाद में लोगों के सड़क पर निकलने से राज्य के बाकी हिस्से के लोग भी जोश से भर गए और निर्भय होकर अपने-अपने घरों से निकल पडे+. रक्षाकर्मियों ने भीड़ को भगाना शुरू किया. मगर लोग घर तो नहीं गये, हां और ज्यादा आक्रोच्च से जरूर भर गये. भीड़ और ज्यादा सड़को पर निकल आई.

भीड़ ने जनसैलाब की शक्ल अख्तियार कर ली. पुलिस ने उन पर काबू पाने के लिए टियर ग्यास और ब्लेंक फायर करना शुरू किया. आक्रोच्च से भरी भीड़ ने जवाबी हमला करते हुए पुलिस पर पत्थर फेंकना शुरू किया. विच्चाल संख्या में मौजूद पुलिस फोर्स ने भीड़ को नियंत्रित करने की नाकाम कोच्चिच्च की. लेकिन वांगखै और नोंगमैबुंग के रास्ते से आए लोग आगे बढ़ते-बढ़ते राज्यपाल के बंगले के सामने जा पहुंचे. उरिपोक, सगोलबंद और टिडीम रोड के रास्ते से आए लोग एक साथ होकर राज्यपाल बंगले के सामने जा धमके.

इतनी बड़ी तादाद में जमी भीड़ ने राज्यपाल से बात करने का प्रस्ताव रखा. बात करने का मौका न मिलने पर जनता और भी आक्रोच्चित हो गई. इतनी बड़ी भीड़ को रोकने की इन सेक्यूरिटी पार्सोनेल के पास शक्ति नहीं थी. और भीड़ थी कि लगातार बढ़ती ही जा रही थी. राजभवन के सामने होम मिनिस्टर और प्राइम मिनिस्टर का पुतला जलाया गया. आक्रोच्चित भीड़ ने राजनेताओं और उसके आवास को जलाकर राख कर दिया. विशेष बल आने पर भी स्थिति नियंत्रण नहीं हो पाई. गुस्साए लोगों ने कैशामपात स्थित मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी के ऑफिस को जला दिया. ऑफिस कंपलेक्स के अंदर स्थित कैंटिन भी जल कर राख हो गई. बीटी रोड स्थित मणिपुर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ऑफिस, रूपमहल टेंक स्थित समता पार्टी का ऑफिस और सीपीआई का ऑफिस आदि को भी जलाने की कोच्चिच्च की. पिपल्स रोड स्थित एमपीपी के ऑफिस भी जलाकर राख कर दिया. ऑफिस जलाने के बाद गुस्साए लोगों ने मणिपुर लेजिस्लेटिव असेंबली को निशाना बनाया और उसे जलाना शुरू किया.


इतना ही नहीं सीआरपीएफ से लैस मणिपुर के मुख्यमंत्री के बंगले के पश्चिम गेट को तोड़कर भीड़ अंदर घुस गई और तोड़-फोड़ मचा कर रख दिया. साथ में सामान को जलाने भी लगे. मुख्यमंत्री आवास के कंफरेंस हॉल और पड़ोसी कमरे जल कर राख हो गए. उस वक्त मुख्यमंत्री दिल्ली में थे. आगे एमएलए क्वार्टर में लोगों ने घुस कर यूनियन मिनिस्टर ऑफ स्टेट का
क्वार्टर, कई मंत्री के क्वार्टर और प्लानिंग विभाग के ऑफिस आदि एक-एक कर जला डाले.
जवाबी कार्रवाई करते हुए सीआरपीएफ ने भी अंधाधुंध गोली चलाई. उसमें 13 लोगों की मौत तत्काल घटना स्थल पर ही हो गई. शाम तक मरने वालों की संख्या 18 हो गई. मुख्यमंत्री का बंगला जलाने के बाद से ही सीआरपीएफ ने गोली चलाना शुरू कर दिया था. उस घटना में दो एक्स एमएलए जल मरे थे. साथ में और भी सरकारी संपत्तियां जलीं. इसके बाद मणिपुर घाटी के तीन जिले में कफ्‌र्यू लगा दिया गया. सड़क पर जो कोई भी दिखे, उसे गोली मारने का आदेच्च दे दिया गया.


इस तरह मणिपुर की अखंडता बचाने के लिए 18 जानों ने 18 जून 2001 को कुरबानी दे दी. अखंडता तोड़ने के बदले हम अपनी जान दे देंगे. शांति पसंद मणिपुर की जनता केंद्र सरकार को कई बार मणिपुर में सीज फायर लागू नहीं करवाने के लिए अपनी मांग प्रस्तुत कर चुकी है. बावजूद इसके केंद्र सरकार ने नगालैंड के साथ मिल कर सीज फायर एक्सटेंट करने की जो घोषणा की थी, उसी का नतीजा था 18 जून 2001 की यह अमानवीय घटना. हर साल 18 जून को लोग इसे एक सामाजिक पर्व की तरह मनाते हैं. इस दिन का इतिहास जब तक लोगों के दिलों में जिंदा रहेगा, तब तक मणिपुर के अखंडता कोई तोड़ नहीं सकता. इस विश्वास के साथ लोग इस दिन को एक लोकोत्सव की तरह मनाते हैं.

दिल्‍ली नहीं आना चाहिए था

पटना से एक पुराने मित्र दिल्‍ली आए थे. दिल्‍ली में शुरू में टिकने के लिए मुश्किलें सामना करना स्‍वाभाविक बात है. उसने पुराने मित्रों से संपर्क किया और उन लोगों के पास जाकर राय-परामर्श लिया. एक बुजुर्ग साथी ने उनसे कहा कि यार अभी दिल्‍ली नहीं आना चाहिए था तुमको. पटना में ही रहना चाहिए था. अभी तो मंडी का दौर है. मैं तो यही राय दूंगा कि आप पटना में ही रहिए. उस पुराने मित्र ने हमको फोन किया. आप कहां है. मैंने अपना पता बताया तो बोले कि मैं तुमसे मिलना चाहता हूं. मैंने कहा कि हम मिलते हैं कनाटप्‍लेस में. अगले दिन कनाटप्‍लेस में मिले रिगेल के सामने. सामने पार्क में बैठकर पुरानी यादों को ताजा किया. और दिल्‍ली के माहौल के बारे में बातचीत करने लगे. इस दरमियान उसने हमको पूरी कहानी बताई. मैं मन ही मन सोचने लगा कि जब आदमी संकट में पड जाते हैं तो उसकी मदद करने में क्‍यों लोग कंजुस करता है. मदद की बात तो छोडिए. कोई दिल्‍ली आकर नौकरी के बारे में राय परामर्श लेता है तो लोगों को ये लगता है कि नौकरी उनसे ही मांगने आ रहा है. और कहने लगता है कि यार तुमको दिल्‍ली आना नहीं चाहिए था. अभी समय खराब चल रहा है. अरे भैया कौन सा समय कब सही चलता है. मनके जीते जीत मनके हारे हार. आप अच्‍छे सोचते हैं तो अच्‍छा है. खराब सोचते हैं तो खराब. लोग खुद भी बढता नहीं है और दूसरों को भी बढने नहीं देता है. सामने कोई बढता है तो लोगों को अच्‍छा नहीं लगता. किसी को दिल्‍ली में आकर आपने आपको आगे बढाने के लिए कोशिश करना कितनी अच्‍छी बात है. खाली दिल्‍ली की बात नहीं है कोई भी बडे शहरों में जाकर खुद के और परिवार के लिए कुछ करना बहुत हिम्‍मत की बात तो है. हर आदमी से इस तरह नहीं होता है. दिल्‍ली में नौकरी का ऑप्‍सन जितना मिल रहा है उतना कोई और शहर में नहीं मिलता होगा. मेरा मानना है कि दिल्‍ली आना ही चाहिए था. मंडी में ही कीमत बढती है. लोग कहने लगता है कि मंडी का दौर चल रहा है. मंडी का दौर में ही नौकरी की तलाश आसानी होती है. मैं उम्‍मीद करता हूं कि लोग खुब संघर्ष करें. और आगे बढे.

मणिपुर में कांग्रेस ही कांग्रेस

मणिपुर में दोनों संसदीय सीटों पर कांग्रेस का कब्‍जा रहा. भीतरी मणिपुर इनर में डॉ टी मैन्‍य और बाहरी आउटर में थांगसो बाइटे ने सफलता हासिल की. यह मणिपुर के इतिहास में पहली बार हुआ है कि लोकसभा की दोनों सीटों पर कांग्रेस ने अपने पांव जमाए.

भीतरी यानी इनर की सीट पर निवर्तमान सांसद डॉ थोकचोम मैन्‍य ने अपने निकटतम प्रतिस्‍पर्धी सीपीआई के डॉ नर सिंह को 30960 वोट से परास्‍त किया. पूर्व केंद्रीय मंत्री एमपीपी के प्रत्‍याशी थौनाउजम चाउबा को 101787 वोट मिले, जबकि पूर्व मुख्‍यमंत्री और भाजपा के प्रत्‍याशी डब्‍ल्‍यू निपामचा को 34098 वोट ही मिले. निर्दलीय प्रत्‍याशियों में ए रहमन और एन होमेंद्रो को क्रमश: 13805 और 1450 वोट मिले. आरबीसीपी के प्रत्‍याशी एल क्षेत्रानी को 1290 वोट मिले. इनर के सफल प्रत्‍याशी डॉ मैन्‍य को पिछले लोकसभा चुनाव में 154055 वोट मिले थे, जबकि इस बार 76821 वोट अधिक मिले. डॉ मैन्‍य को सबसे ज्‍यादा वोट दिलाने वाला विधानसभा क्षेत्र अंद्रो है, जहां से 16280 वोट मिले. सबसे कम उनको शिंगजमै विधानसभा क्षेत्र से 2626 वोट मिले. सीपीआई को सबसे ज्‍यादा वोट लिलोंग विधानसभा क्षेत्र से 10898 मिले, जबकि सबसे कम 1618 वोट नंबोल से सीपीआई को मिले. जिला स्‍तर पर मतदान को देखें तो इंफाल (ईस्‍ट) में कांग्रेस को 79610 वोट और सीपीआई को 69212 इंफाल (वेस्‍ट) में कांग्रेस को 77765 सीपीआई को 75621, थौबाल जिले में कांग्रेस को 29330 और सीपीआई को 27845 और विष्‍णुपुर जिले में कांग्रेस को 44132 और सीपीआई को 27212 वोट मिले. बाहरी (आउटर) संसदीय सीट पर भी कांग्रेस के प्रत्‍याशी थांसो वाइटे ने पीडीए के प्रत्‍याशी और निवर्तमान सांसद मनि चरानमै को 119798 से भी ज्‍यादा वोट से हराया. वाइटे को कुल 388517 वोट मिले, जबकि मनि चरानमै को 224719 वोट मिले. आउटर में तीसरे स्‍थान पर बीजेपी के डी लोलि अदानि रहे, जिन्‍हें 93052 मत मिले, चौथे स्‍थान पर एनसीपी के एलबी सोना रहे, जिनको 79849 वोट मिले. आरजेडी के एमवाई हाउकिप को 4859, निर्दलीय वेली रोज को 4735, निर्दलीय एल गांते को 2070, एलजेपी के थांखानगिन को 1252 और निर्दलीय रोज मांस हाउकिप को 1128 वोट मिले. सांसद थांसो वाइटे को सबसे ज्‍यादा वोट साइकुल विधानसभा क्षेत्र से मिले, जहां उनको 27516 वोट मिले और सबसे कम यानी 850 मत माओ विधानसभा क्षेत्र से मिले. पीडीए के प्रत्‍याशी मनि चरानमै को सबसे ज्‍यादा 22194 वोट चिंगाई विधानसभा क्षेत्र से मिले और सबसे कम 106 वोट सुगनु विधानसभा क्षेत्र से ही मिले.

इस तरह मणिपुर के सभा सांसद कांग्रेस के हो गए हैं. गौरतलब है कि मणिपुर से राज्‍यसभा के रिशांग कैसिंग हैं, जो कांग्रेस के पुराने और बडे नेता हैं. और, इस बार लोकसभा के लिए चुने गए दोनों सदस्‍यों के भी कांग्रेसी होने से राज्‍य में कांग्रेस का पूरा वर्चस्‍व हो गया है. यही कारण है कि रिशांग कैसिंग ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से मांग की हे कि इस बार मणिपुर से भी किसी सांसद को केंद्र में मंत्री बनाया जाए.
बहरहाल, अब इन दोनों लोकसभा सदस्‍यों का सर्वप्रथम कार्य यही होगा कि आतंकवादी समस्‍या खत्‍म हो. दोबारा सांसद बने डॉ मैन्‍य ने तो जनता को यह आश्‍वासन भी दिया है कि उनकी प्राथमिकता प्रदेश में शांति व्‍यवस्‍था कायम करना है.