यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Tuesday, December 23, 2008

क्रिसमस की शुभकामनाएं

दोस्तो, आप किसी ओर के लिए अपनी जान दे सकते हैं. थोडा दिक्कत काम है. मगर प्रभु यीशू ने अपनी जान लोगों के लिए गंवाई. दुश्मनों की रक्षा के लिए प्रार्थना करता था. यह सब साधारण काम नहीं है और साधारण आदमी कर नहीं सकता. लोगों के भलाई के लिए अपने हाथ पांव में कांटी लगवाया. उनकी समर्पित जिंदगी को याद करते हैं. उनके जन्मदिन के पावन अवसर पर सभी दोस्तों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं.

Sunday, December 14, 2008

क्या यह इंसानियत है?

अक्सर यह खबर सुनने को मिलती है कि पूर्वोत्तर की लड़कियों से छेड़छाड़, मारपीट और हत्या हमेशा होती रहती है। जब नार्थ ईस्ट सपोर्ट सेंटर एंड हेल्पलाईन (http://www.nehelpline.net/) का गठन हुआ तभी से इस तरह की घटना दूर हो गई थी। मगर दस महीने के बाद यह घटना फिर सुनने को मिल रही है। दैनिक हिंदुस्तान के पेज 6 पर यह खबर छपी कि कॉलसेंटर में काम करने वाली मणिपुर की दो युवतियों को मकान मालिक ने देर रात मकान खाली करने को कहा। वक्त मांगने पर मकान मालिक और कुछ साथियों ने लड़कियों से छेड़छाड़ करना शुरू कर दी। विरोध करने पर दोनों की पिटाई कर दी। आप वह खबर देख सकते हैं, जो दैनिक हिंदुस्तान पर छपी थी।देखिए यह कौन सी मानवता है। यह एक गिरते हुए समाज की तस्वीर है। यह है अपने देश की पहचान। जो शक्ति अपने, समाज के लिए और देश के लिए प्रयोग करनी चाहिए थी वह बदनाम करने में प्रयोग कर रही है। पुरुष प्रधान समाज में हर चुनौती स्वीकार कर घर से बाहर रह कर कमाने आई महिलाओं के लिए यह दर्दनाक घटना है। बताया जाता है कि दोनों लड़कियां गुड़गांव स्थित किसी कॉलसेंटर में काम करने के लिए आई थी। उन्होंने दो दिन पहले सिकंदरपुर स्थित एक कमरा किराए पर लिया था। देर रात लड़कियों को मकान खाली करने के लिए कहना कहां तक सही है। यह खाली पूर्वोत्तर की बात नहीं है। हर जगह की बात है कि जो लड़कियां परिवार से दूर रह कर जिंदगी की लड़ाई से सामना कर रही है उन लोगों को प्रोत्साहन देना चाहिए। जो दिमाग बदनाम करने में प्रयोग कर रहा है वह नेक काम में प्रयोग करता तो तरक्की करने में काम आता। और देश को रोशन करता।

Saturday, December 6, 2008

उठो वारिस शाह



-अमृता प्रीतम

उठो वारिस शाह-
कहीं कब्र में से बोलो
और इश्क की कहानी का-
कोई नया वरक खोलो....

पंजाब की एक बेटी रोई थी
तूने लंबी दास्तान लिखी
आज जो लाखों बेटियां रोती हैं
तुम्हें-वारिस शाह से-कहती हैं...

दर्दमंदों का दर्द जानने वाले
उठो ! और अपना पंजाब देखो !
आज हर बेले में लाशें बिछी हुई हैं
और चनाब में पानी नहीं
...अब लहू बहता है...
पांच दरियाओं के पानी में
यह ज़हर किसने मिला दिया
और वहीं ज़हर का पानी
खेतों को बोने सींचने लगा...

पंजाब की ज़रखेज़ जमीन में
वहीं ज़हर उगने फैलने लगा
और स्याह सितम की तरह
वह काला जहर खिलने लगा...
वही जहरीली हवा
वनों-वनों में बहने लगी
जिसने बांस की बांसुरी-
ज़हरीली नाग-सी बना दी...

नाग का पहला डंक मदारियों को लगा
और उनके मंत्र खो गए...
फिर जहां तहां सब लोग-
ज़हर से नीले पड़ने लगे...

देखो ! लोगों के होठों से
एक ज़हर बहने लगा
और पूरे पंजाब का बदन
नीला पड़ने लगा...

गले से गीत टूट गए
चर्खे का धागा टूट गया
और सखियां-जो अभी अभी यहां थीं
जाने कहां कहां गईं...

हीर के मांझी ने-वह नौका डुबो दी
जो दरिया में बहती थी
हर पीपल से टहनियां टूट गईं
जहां झूलों की आवाज़ आती थी...

वह बांसुरी जाने कहां गई
जो मुहब्बत का गीत गाती थी
और रांझे के भाई बंधु
बांसुरी बजाना भूल गए...

ज़मीन पर लहू बहने लगा-
इतना-कि कब्रें चूने लगीं
और मुहब्बत की शहज़ादियां
मज़ारों में रोने लगीं...

सभी कैदों में नज़र आते हैं
हुस्न और इश्क को चुराने वाले
और वारिस कहां से लाएं
हीर की दास्तान गाने वाले...

तुम्हीं से कहती हूं-वारिस !
उठो ! कब्र में से बोलो
और इश्क की कहानी का
कोई नया वरक खोलो...