Sunday, June 21, 2009
दिल्ली नहीं आना चाहिए था
पटना से एक पुराने मित्र दिल्ली आए थे. दिल्ली में शुरू में टिकने के लिए मुश्किलें सामना करना स्वाभाविक बात है. उसने पुराने मित्रों से संपर्क किया और उन लोगों के पास जाकर राय-परामर्श लिया. एक बुजुर्ग साथी ने उनसे कहा कि यार अभी दिल्ली नहीं आना चाहिए था तुमको. पटना में ही रहना चाहिए था. अभी तो मंडी का दौर है. मैं तो यही राय दूंगा कि आप पटना में ही रहिए. उस पुराने मित्र ने हमको फोन किया. आप कहां है. मैंने अपना पता बताया तो बोले कि मैं तुमसे मिलना चाहता हूं. मैंने कहा कि हम मिलते हैं कनाटप्लेस में. अगले दिन कनाटप्लेस में मिले रिगेल के सामने. सामने पार्क में बैठकर पुरानी यादों को ताजा किया. और दिल्ली के माहौल के बारे में बातचीत करने लगे. इस दरमियान उसने हमको पूरी कहानी बताई. मैं मन ही मन सोचने लगा कि जब आदमी संकट में पड जाते हैं तो उसकी मदद करने में क्यों लोग कंजुस करता है. मदद की बात तो छोडिए. कोई दिल्ली आकर नौकरी के बारे में राय परामर्श लेता है तो लोगों को ये लगता है कि नौकरी उनसे ही मांगने आ रहा है. और कहने लगता है कि यार तुमको दिल्ली आना नहीं चाहिए था. अभी समय खराब चल रहा है. अरे भैया कौन सा समय कब सही चलता है. मनके जीते जीत मनके हारे हार. आप अच्छे सोचते हैं तो अच्छा है. खराब सोचते हैं तो खराब. लोग खुद भी बढता नहीं है और दूसरों को भी बढने नहीं देता है. सामने कोई बढता है तो लोगों को अच्छा नहीं लगता. किसी को दिल्ली में आकर आपने आपको आगे बढाने के लिए कोशिश करना कितनी अच्छी बात है. खाली दिल्ली की बात नहीं है कोई भी बडे शहरों में जाकर खुद के और परिवार के लिए कुछ करना बहुत हिम्मत की बात तो है. हर आदमी से इस तरह नहीं होता है. दिल्ली में नौकरी का ऑप्सन जितना मिल रहा है उतना कोई और शहर में नहीं मिलता होगा. मेरा मानना है कि दिल्ली आना ही चाहिए था. मंडी में ही कीमत बढती है. लोग कहने लगता है कि मंडी का दौर चल रहा है. मंडी का दौर में ही नौकरी की तलाश आसानी होती है. मैं उम्मीद करता हूं कि लोग खुब संघर्ष करें. और आगे बढे.
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4 comments:
शुभकामनाएं !
सही कहा.. जरुर आये..
वीजेन,अब तक शायद तुम मुझे भूल गए होगे। दो महीने पहले ही चौथी दुनिया में तुम्हारे साथ चाय पी थी। चौथी दुनिया में ब्लॉग पर लिखे मेरे चुनावी नारे प्रकाशित हुए थे औऱ मैं उत्साह में सीधे ऑफिस ही लेने चला आया था।..कुछ ध्यान आ रहा है तुम्हें। तुमने मेरा ब्लॉग खोलकर देखा और कहा- अरे ये तो मैं पढ़ता रहता हूं।
सही बात।
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