यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, July 2, 2009

विशेष कानून : अगाथा ने भी मिलाया शर्मिला से सुर

पूर्वोत्तर की दो शीर्ष महिलाएं आपस में मिलीं. दोनों ने एक-दूसरे के दुख-दर्द बांटे थे. कई दिनों से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट-1958 के चलते मणिपुर में व्याप्त आशांति का जायजा लेने केंद्र की सबसे युवा सांसद अगाथा संगमा पिछले दिनों तीन दिनों की यात्रा पर मणिपुर आई थी. जेएन अस्पताल के विशेष तौर पर सुरक्षित वार्ड में इस एक्ट के विरोध में जिंदगी और मौत से लड़ रही इराम शर्मिला से मुलाकात की.



इस मुलाकात में शर्मिला ने मणिपुर से यह कानून हटाने में अगाथा की मदद की आस लगाई. आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट को रद्द करवाने को लेकर पिछले आठ साल से अनसन पर बैठी इरोम शर्मिला से मुलाकात के बाद पत्रकारों को संबोधित करती हुई अगाथा ने कहा कि इस काले कानून को रद्द करने को केंद्र सरकार से वह मांग जरूर करेंगी. उन्होंने कहा कि वह जनता को आश्वाशन देती हैं कि जितना हो सके, इस मुद्दे को प्राथमिकता देंगी. उसके कुछ ही समय बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस मसले पर मुलाकात कर अनशन पर बैठी शर्मिला को बचाने की अपील की. उनकी इस मुलाकात से प्रदेश की जनता को उम्मीद है कि पिछले कई सालों से प्रदेश में इस कानून के सहारे जो मनमानी की जा रही है, उसका अंत होगा. यूपीए सरकार की सबसे युवा मंत्री अगाथा संगमा ने लिखित ज्ञापन देकर शर्मिला की जिंदगी बचाने की मांग की.
अगाथा की इस मुलाकात से प्रदेश में कई सालों से आस लगा रही जनता को उम्मीद की नई किरण दिखी हैं. इसकी वजह यह है कि कई सालों से शर्मिला के इस संघर्ष को किसी राजनेता या किसी अधिकारी ने न तो जानने की कोशिश की और न ही इस मामले का जायजा लिया. इस मसले पर केंद्र सरकार ने हर वक्त कठोर कदम उठाए हैं. केंद्र यह मानने को तैयार नहीं है कि पूर्वोत्तर राज्यों से विशेष सशस्त्र बल कानून हटाया जाए. इस मामले को लेकर राज्य सरकार का रुख भी वैसा ही है, जैसा केंद्र का है. राज्य सरकार कई मुद्दों पर मजबूर हो जाती है और केंद्र के इशारों का इंतजार करती रहती है.



मणिपुर की जनता तो इस कानून को जंगल का कानून मानती है, जिसके मुताबिक कभी भी किसी को मार गिराया जा सकता है. इस कानून को लोग बेहद खराब नजर से देखते हैं. 2004 में कथित तौर पर असम रायफल्स के जवानों ने सामाजिक कार्यकर्ता मनोरमा देवी की हवालात में बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी. उसके विरोध में समूचे प्रदेष में आग लग गई, जो अभी भी सुलग रही है. इस कानून को लेकर शर्मिला का मानना है कि इस दुनिया में मनमानी से कोई किसी को मार नहीं सकता. यह सोचने-समझने वाले मनुष्य की दुनिया है, जानवारों को नहीं. शर्मिला देश के शासक वर्ग से यह सवाल पूछ रही है कि जंगलराज के भीतर कब तक आम आदमी बिना डर के जी सकता है? शर्मिला कहती हैं कि यह भूख-हड़ताल तभी खत्म होगी, जब सरकार वगैर किसी शर्त के आर्म्ड फोर्सेस स्पेच्चल पावर एक्ट को हटाएगी. आतंकवादी समस्या पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक आंतरिक और स्थाई समस्या है. इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या है विशेष सशस्त्र बल कानून 1958, जिसको हथियार बनाकर आतंकवाद को कुचलने के नाम पर निर्दोष लोगों पर जुल्म हो रहे हैं. इससे आमजन का अमन-चैन छिन रहा है.
अगाथा की शर्मिला से मुलाकात को लोगों ने बहुत सराहा. मणिपुर की आम जनता ने इसके पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य न देख कर उनकी संजीदगी देखी. उनको ऐसा लगा कि परिवार की कोई बहन अपनी बड़ी बहन से मिल रही हो. गौरतलब है कि असम रायफल्स के जवानों ने 2000 में 10 निर्दोषों को मार दिया था. इसके विरोध में ही शर्मिला आमरण अनशन पर बैठ गई. उसी वक्त राज्य सरकार ने इंफाल शहर के कई विधानसभा क्षेत्रों से यह कानून हटा दिया था. केंद्र के मना करने के बावजूद मणिपुर सरकार ने एक प्रयोग के तौर पर कुछ खास इलाकों में इस एक्ट को रद्द करना शुरू किया था. कानून-व्यवस्था अगर दुरुस्त रही, तो इस एक्ट को अन्य जगहों से भी हटाने की घोषणा राज्य सरकार ने की. मगर शर्मिला ने इस एक्ट को राज्य से पूरी तरह से हटाने की मांग की. इस बात को लेकर वह अड़ी रहीं. उल्लेखनीय है कि कइस एक्ट के विरोध में मणिपुर से लेकर उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों और देच्च के कुछ हिस्सों में अप्रिय घटना घटने के बाद केंद्र सरकार ने जस्टिस जीवन रेड्डी के नेतृत्व में एक समिति बनाई. समिति ने भी इस एक्ट को आपत्तिजनक बताया था. दूसरी तरफ शर्मिला को बचाने के लिए पिछले छह महीने से शर्मिला बचाव समिति पीडीए कांप्लेक्स, इंफाल में अनशन कर रही है. इस अभियान में सिने एक्टर्स गिल्ड मणिपुर के सदस्यों ने भी जून 28 से शिरकत करने का फैसला किया. कुल मिला कर अगाथा संगमा की मणिपुर यात्रा और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात से लगता है कि राज्य से इस काले कानून को हटा दिया जाएगा.

क्या है आर्म्ड फोर्स स्पेच्चल पावर एक्ट?

आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट को 11 सितंबर 1958 को संसद में पारित किया गया था. यह पूर्वोत्तर के राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा जैसे अच्चांत क्षेत्रों में सेना को विशेष ताकत देने के लिए पारित किया गया था.

यह कानून लागू होने वाले इलाके में सेना क्या-क्या कर सकती है.

1.भले ही मौत का कारण बने, फिर भी इसके तहत किसी पर देखते ही गोली चलाई जा सकती है.
2.इस एक्ट के अनुसार किसी को भी शक के आधार पर ही वारंट के बिना भी जबरदस्ती गिरफ्‌तार किया जा सकता है.
3.किसी को गिरफ्‌तार करने के लिए सेना किसी भी इलाके की तलाच्ची ले सकती है.

इस एक्ट के विरोध में कौन-कौन

पूरे देश के सौ से भी अधिक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और एच्चिया से भी आए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इंफाल में विरोध प्रदर्शन कर इस एक्ट को हटाने के लिए संघर्ष कर रही शर्मिला का समर्थन किया. भारत की कई महत्वपूर्ण संस्थाएं इस एक्ट का समर्थन करती हैं. वे हैं - आशा परिवार, नेशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इंफोरमेच्चन, राइट टू फूड कैंपेन, असोसिएशन ऑफ पैरेंट्स ऑफ डिसअपियर परच्चंस, नेशनल कैंपेन फॉर दलित ह्‌यूमन राइट्स, एकता पीपल्स यूनियन ऑफ ह्‌यूमन राइट्स, इंसाफ लोकराज संगठन, हिंद नव जवान एकता सभा, ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमन असोसिएशन, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स असोसिएशन, फोरम फॉर डेमोक्रेटिक इनिसिएटिव्स और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी 'मार्क्सवादी-लेनिनवादी' आदि

विदेशों से भी समर्थन

केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के मानवाधिकार संगठनों और एनआरआई ने भी इस एक्ट का विरोध किया है. द पीस कॉलिच्चन ऑफ पीपल ऑफ साउथ एशिया, फ्रेंड्स ऑफ साउथ एशिया, एनआरआई फॉर ए सेकुलर एंड हारमोनिअस इंडिया, पाकिस्तान ऑर्गेनाइजेशंस, पीपल्स डेवलपमेंट फाउंडेशान, इंडस वैली थिएटर ग्रुप और इंस्टीट्यूट फॉर पीस एंड सेकुलर स्टडीज.

4 comments:

अजय कुमार झा said...

बहुत खूब..अगाथा ने दूसरी बार प्रभावित किया..एक अछे पिता की अच्छी पुत्री हैं वे..हाँ इस कानून के बारे में पहली बार ही जाना..सामयिक आलेख..

अजय कुमार झा said...

और हाँ शर्मिला के साथ एक आन्दोलन की शुरात जरूर ही रंग लायेगी..हाँ वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें..

विधुल्लता said...

सर जी हम इस एक्ट पर लिख चुकें हें ...मार्च मैं ...शर्मिला से मुलाक़ात के बाद उसके दर्द को और आसाम की जनता के पक्ष में लिखा था ...वैसे वहां एक आन्दोलन चलाने की जरूरत है ....और येइतना आसान नही है

Kapil said...

शर्मिला और मणिपुर के आम अवाम की लड़ाई की जीत एक दिन जरूर होगी।
भिन्‍न राष्‍ट्रीयताओं को सम्‍मान देने के मसले पर मैंने भी लिखा था।
http://andarkeebaat.blogspot.com/2009/06/blog-post_09.html