यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Friday, September 11, 2009

नगा शांति वार्ता अब केंद्र से सीधे होगी


पिछले 10 सालों से केंद्र सरकार और शीर्ष नगा अलगाववादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-आईएम) के बीच चली आ रही युद्ध विराम की वार्ता अब सीधे तौर पर होगी. वार्ता के प्रतिनिधि के रूप में पूर्व भारतीय गृह सचिव के पद्मनाभैया का 1999 के 28 जुलाई को चयन किया गया था. उनका कार्यकाल समाप्त करने का केंद्र सरकार ने फैसला कर लिया है. भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में पद्मनाभैया पिछले 10 साल से कई भागों में वार्ता करते आ रहे थे. अब सीधी बातचीत करने के लिए गृह मंत्रालय के सीनियर ऑफिसिएल ने घोषित किया गया. युद्ध विराम के समझौते 1997 के अगस्त से शुरू हुआ था. इस वार्ता के सबसे पहला मध्यस्थ मिजोरम के पूर्व राज्यपाल स्वाराज कौशल था. उन्होंने 1999 के जुलाई तक यह कार्य किया था.
नगा बागी काफी दिनों से वृहद नगालैंड नगालिम के तहत नगा बहुल इलाकों को एक प्रशासन तंत्र में शामिल करने की मांग पिछले कई सालों से करते रहे हैं. यानी उन्हें नगालिम में नगालैंड के अलावा मणिपुर के चार जिले, असम के दो पहाड़ी जिले और पूर्वी अरुणाचल प्रदेश के दो जिले भी चाहिए. यूपीए सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत इन राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने का वादा किया है. असम के मुख्यमंत्री ने तो सीधे तौर पर कहा कि इस तरह की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, जबकि मुख्य विपक्षी दल असम गण परिषद ने कांग्रेस पर यूपीए सरकार को बचाने के लिए असम का ही सौदा करने का आरोप लगाया है. असम, अरुणाचल और मणिपुर की सरकारें और वहां की प्रदेश कांग्रेस समिति इसका विरोध करती रही है. नगालैंड में सोलह नगा जनजातियां हैं और प्रत्येक की अपनी-अपनी बोली और भिन्न पहचान है. प्रत्येक नगा जनजाति का भिन्न नाम है और अपनी पहचान के प्रति सजग है.
पिछले कुछ महीनों में मणिपुर के उख्रुल जिले के सिरुई और नगालैंड के फुटचेरो में एनएससीएन (आईएम) और सुरक्षा बलों के बीच हुई झड़प को लेकर होम मिनिस्टर पी चिदंबरम ने कहा कि भविष्य में अगर वार्ता करनी है तो भारतीय संविधान के दायरे में होनी चाहिए. उन्हें पहले हिंसा का रास्ता छोड़ना होगा. इसलिए दोनों पक्षों को युद्धविराम निभाना ही होगा. एनएससीएन (आईएम) के नेता इसाक मुइवा का वक्तव्य 19 मार्च 09 को नगालैंड के प्रमुख अख़बारों में छपा था कि चिदंबरम नगाओं और इस वार्ता के बारे में कुछ भी जान पा रहे हैं. इसलिए केंद्र सरकार उनकी गलती को सुधारना चाहिए. मुइवा ने कहा कि केंद्र का यह रुख़ अगर बरकरार रहा तो इस वार्ता में कई संकटें आएंगी.



ऐसे में इस वार्ता को लेकर मणिपुर और नगालैंड की जनता और हर संगठन तरह-तरह की मांग कर रहे. नगालैंड के कुकी आदिवासियों ने चेतावनी दी कि जिस क्षेत्र पर उनका समुदाय निवास करता है, उस ज़मीन पर एनएससीएन (आईएम) के नेताओं के साथ सहमति बनती है, तो वे खूनी संघर्ष पर उतर आएंगे. शीर्ष कुकी नेता सतकोखारी चोनगोलीई ने कहा कि हम अपनी इंच भर ज़मीन भी किसी को नहीं देंगे. कुकी आदिवासी समुदाय नगालैंड, असम, त्रिपुरा, मणिपुर और मिजोरम राज्यों में निवास करता है. इनका कहना है कि एनएससीएन (आईएम) ने कुकी समुदाय के हजारों लोगों को गुरिल्ला लड़ाई में मौत के घाट उतार दिया है. वे नहीं चाहते कि उनके समुदाय के दुश्मनों को उनकी जमीन पर अधिकार मिले.
एनएससीएन (आईएम) नेता वी एस अतम ने कहा कि नगा लोगों को विद्रोहियों के रूप में दिखाया गया है. जबकि वे अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए सरकार से संघर्ष कर रहे हैं. इस अलगाव की मुख्य वजह, इस क्षेत्र का सामाजिक और राजनीतिक रूप से अलग-थलग रह जाना है. अतम के मुताबिक़ सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और जातीय रूप से हम भारतीयों से भिन्न हैं. यदि शांति वार्ता असफल होती है तो एनएससीएन (आईएम) के जवान भारतीय सेना से लोहा लेने के लिए तैयार हैं.
13 जनवरी 2001 को केंद्र सरकार और एनएससीएन के बीच हुए सीज़ फायर ग्राउंड रूल समझौते को 6 मार्च 09 को लागू किया गया. जिसके तहत,
-यह ग्राउंड रूल केवल नगालैंड राज्य में ही चालू होगा.
-यह रूल चलाने का दायित्व केंद्र सरकार का होगा.
-एक दूसरे के ख़िला़फ कार्रवाई बंद करना और अन्य आतंकवादी गुटों को सहायता न देना.
-एनएससीएन (आईएम) के कार्यकर्ता सीएफसीवी में बताए बिना अपने कैंप से बाहर नहीं जाएंगे, न ही जबरन चंदा लेंगे और न ही नए कार्यकर्ताओं की भर्ती करेंगे.
-आर्मी, पैरा-मिलिट्री फोर्स और पुलिस रक्षा दल या पेट्रोलिंग के लिए अवरूद्ध पैदा नहीं करना.
लेकिन इसके साथ ही यह सवाल अभी बरक़रार है कि क्या इस समझौते से लंबे समय से चली आ रही नगा समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो पाएगा? क्या दूसरे नगा संगठन एनएससीएन-(के) इस समझौते को स्वीकार करेंगे. जो एनएससीएन-आईएम गुट के साथ लगातार खूनी संघर्ष में शामिल रहा है. इससे यह सा़फ है कि यदि केंद्र सरकार और एनएससीएन के बीच भले ही यह समझौता हो जाए, लेकिन जबतक खपलांग गुट इस पर सहमत नहीं होता, यह प्रयास सफल होगा, कहना मुश्किल है. अब देखना यह है कि केंद्र की एनएससीएन (आईएम) से सीधी वार्ता कहां तक सफल होती है.

1 comment:

Kulwant Happy said...

अति-जानकारीपूर्वक लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।