करीब 25 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने
म्यांमार की यात्रा की. इस यात्रा से उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लोगों को काफी
अपेक्षाएं थीं, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से इसे जो फायदा इस यात्रा
से होने की उम्मीद थी, वह नहीं हुआ. बावजूद इसके यह यात्रा इस क्षेत्र के लिए, दोनों
देशों के बीच अच्छे संबंधों और बेहतर भविष्य का रास्ता खोलती ज़रूर नज़र आई.
म्यांमार की मिलिट्री जुंटा द्वारा लोकतंत्र वापस लाने के आश्वासन के चलते और आंग
सान सू की के संसदीय चुनाव में सफल होने से दुनिया के कई देशों द्वारा म्यांमार के
ऊपर लगाए गए प्रतिबंध अब धीरे-धीरे वापस लिए जा रहे हैं. ऐसे समय में प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह की यह यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण रही. इस बहु प्रचारित यात्रा
में मज़बूत व्यापार एवं निवेश संबंधों,
सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास, दोनों
देशों के बीच कनेक्टिविटी में सुधार,
क्षमता निर्माण और मानव संसाधन पर विशेष
ध्यान दिया गया.
प्रधानमंत्री की इस यात्रा के पहले 18
मई को उनके सलाहकार टीकेए नायर के नेतृत्व में एक टीम इंफाल गई थी, जहां
प्रधानमंत्री की म्यांमार यात्रा और कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की गई
थी. खासकर, म्यांमार और भारत के बीच क्या-क्या महत्वपूर्ण व्यापारिक कदम उठाए जा सकते
हैं? यह
सारी बातचीत म्यांमार के तमु स्थित बॉर्डर ट्रेड के कार्यालय में हुई थी. बहरहाल, प्रधानमंत्री
की इस यात्रा से इंफाल-मंडले बस सेवा को भी हरी झंडी दिखा दी गई, लेकिन
म्यांमार में सुविधाजनक सड़कों के अभाव के चलते यह बस सेवा शुरू होने में विलंब हो
सकता है. इसके जरिए सड़क मार्ग द्वारा दोनों देशों के लोग कम खर्च में आ-जा सकते
हैं. इंफाल-मंडले बस सेवा शुरू होने से पूर्वोत्तर के राज्यों में विकास की रोशनी
फैलेगी. यह बस सेवा नई दिल्ली-लाहौर और कोलकाता-ढाका बस सेवा की तर्ज पर भारत और
म्यांमार के बीच संबंध सुधारने का काम करेगी. एक प्रमुख समझौता सीमा पर सड़क मार्ग
के विकास को लेकर हुआ. प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि भारत तामू-कलेवा मार्ग पर 71
पुलों की मरम्मत कराएगा. दोनों देश एक प्रमुख मार्ग को राजमार्ग में तब्दील करने
का काम करेंगे. भारत के मोरे से लेकर थाईलैंड के माई सोट तक राजमार्ग बनाया जाएगा.
इसके जरिए म्यांमार होते हुए भारत से थाईलैंड का सफर सड़क मार्ग से किया जा सकेगा.
इससे पहले बीते 21 जनवरी को इंडो-म्यांमार बॉर्डर ट्रेड एग्रीमेंट 1994
लागू किया गया, जिसके तहत 22 एग्रीकल्चर/प्राइमरी प्रोडक्ट्स की खरीद-बिक्री पूर्वोत्तर के
राज्यों के साथ होती रही है.
जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, उनमें
अरुणाचल प्रदेश में पांगसू दर्रे पर एक सरहदी हाट खोलना भी है. यह बांग्लादेश की
सीमा पर स्थित हाट की तरह काम करेगी. इससे पूर्वोत्तर के लिए व्यापार की संभावनाएं
बढ़ेंगी, खासकर
मणिपुर में म्यांमार की सस्ती वस्तुएं,
जैसे मोमबत्ती, साबुन, सर्फ, कंबल
एवं खाद्य सामग्री आदि, जिनका लोग पहले से भी ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. सरहदी हाट
खोलने से इस तरह की वस्तुएं आसानी से पूर्वोत्तर के गांवों में उपलब्ध हो सकेंगी.
इसके अलावा अकादमिक सहयोग के लिए भी समझौता हुआ, जिसके तहत म्यांमार के दागोन
विश्वविद्यालय और कोलकाता विश्वविद्यालय आपस में सहयोग करेंगे. प्रधानमंत्री की यह
यात्रा पूर्वोत्तर के लिए एक और मामले में अहम रही. इन दिनों यूनाइटेड लिबरेशन
फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रमुख परेश बरुआ म्यांमार में हैं. जबसे बांग्लादेश की
शेख हसीना सरकार ने उल्फा सहित पूर्वोत्तर के विभिन्न आतंकी संगठनों के ़िखला़फ
अपना अभियान तेज कर दिया है, तबसे इन संगठनों के लोगों ने म्यांमार को अपनी शरणस्थली बना लिया
है. यदि म्यांमार सरकार भी बांग्लादेश की तर्ज पर अपना अभियान तेज कर दे तो उक्त
आतंकी संगठन अपने-अपने राज्यों में वापस आने और देश की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए
विवश हो जाएंगे. म्यांमार ने कहा भी है कि वह आतंकवादियों को भारत विरोधी
गतिविधियों के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा. सेना ने पूर्वोत्तर
क्षेत्र के चरमपंथियों से कहा है कि वे अविलंब म्यांमार छोड़ दें.

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