यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, February 20, 2014

वादे हैं, वादों का क्या?

अरुणाचल के छात्र नीडो तानिया की मौत और फिर उसके बाद जिस तरह पूर्वोत्तर के लोगों पर जानलेवा हमले हो रहे हैं, उसके मद्देनज़र यदि नरेंद्र मोदी या किसी अन्य बड़े नेता द्वारा अपनी रैलियों में की गई घोषणाओं पर लोगों को सहज विश्‍वास न हो तो इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं होगा. अब पूर्वोत्तर के लोग जागरूक हो गए हैं. अब स़िर्फ घोषणाओं से कुछ नहीं होने वाला, उन्हें परिणाम चाहिए, ताकि पूर्वोत्तर का परिदृश्य बदले और आने वाले दिनों में उनके साथ किसी भी तरह की कोई नाइंसाफी न हो.

भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव से पहले पूर्वोत्तर में भी पार्टी की पैठ बनाने के लिए तत्पर दिख रहे हैं. हाल में मोदी ने मणिपुर एवं असम में रैलियां की हैं. केंद्र की उपेक्षा झेल रहे पूर्वोत्तर को देश के अन्य राज्यों की तरह बराबरी का हक़ दिलाने के लिए उन्होंेने कई वादे किए. हालांकि, भाजपा आज तक पूर्वोत्तर में कोई खास जगह नहीं बना सकी है. हाल में अरुणाचल के छात्र नीडो की मौत के बाद देश की सभी बड़ी पार्टियों में गंभीरता देखने को मिली, मगर उसका प्रभाव कहीं दिखाई नहीं पड़ा, क्योंकि नीडो की मौत केे बाद भी पूर्वोत्तर के लोगों पर लगातार जानलेवा हमले हो रहे हैं. नीडो की मौत के एक सप्ताह के अंदर ही पूर्वोत्तर की एक किशोरी से दुष्कर्म की घटना सुर्खियों में आई. सवाल यह है कि आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है?

नरेंद्र मोदी ने इंफाल की रैली में पूर्वोत्तर में आईटी हब बनाने की बात कही. भले ही लोगों ने मोदी की बातों में दम महसूस किया हो, लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है, क्योंकि जिस पूर्वोत्तर में आज तक बिजली, पानी, रोज़गार और सड़क जैसी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध न हो पाई हों, वहां आईटी हब की कल्पना भी बेमानी लगती है. पूर्वोत्तर में स़िर्फ दो घंटे बिजली आपूर्ति की जाती है. प्रति लीटर पेट्रोल 250 से 300 रुपये में मिलता है. एलपीजी सिलेंडर की क़ीमत 2 से 3 हज़ार रुपये तक है. क्या ऐसे हालात में मोदी की आईटी हब की कल्पना या घोषणा साकार हो सकती है? क्या मोदी के ये वादे मात्र चुनाव पूर्व के वादे हैं?

जब तक पूर्वोत्तर के नागरिकों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जाएंगी, तब तक न तो वहां कोई आईटी हब बनाया जा सकता है और न वहां के पढ़े-लिखे नौजवानों को अपने राज्य में नौकरी मिल सकती है. आधारभूत सुविधाओं की कमी के चलते ही पूर्वोत्तर के लोगों को दूरदराज नौकरी की तलाश में भटकना पड़ता है. इसी वजह से कई अप्रिय घटनाएं पूर्वोत्तर के युवाओं के साथ घटती रहती हैं. जब वे नौकरी की तलाश में बाहर जाते हैं, तो वहां के स्थानीय लोगों से सामंजस्य न बैठा पाने की वजह से किसी न किसी हादसे के शिकार बन जाते हैं. पूर्वोत्तर में अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी नहीं हैं, इसलिए यहां के छात्रों को पढ़ाई के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है. अगर राज्य में अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी खुलें, तो नौजवानों को पढ़ाई-लिखाई के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. मोदी द्वारा आईटी हब और अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी खोलने की बात सराहनीय है, बशर्ते पहले लोगों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं. मोदी की बातों पर पूर्वोत्तर को इसलिए संदेह है कि इससे पहले भी कई नामी-गिरामी नेता आए और गए, जिन्होंने बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन उन वादों को निभाया किसी ने भी नहीं. मतलब यह कि पूर्वोत्तर में वादे करना और वहां के भोले-भाले नागरिकों को मूर्ख बनाकर किसी तरह चुनाव जीत लेना इन राजनीतिज्ञों का शगल बन गया है. क्या नरेंद्र मोदी भी कुछ ऐसा ही करने वाले हैं या उनके वादों का आने वाले समय में कोई मतलब होगा?

मणिपुर और म्यांमार की सीमा पर फेंसिंग का काम चल रहा है. म्यांमार ने भारतीय सीमा में 10 किलोमीटर बढ़ाकर फेंसिंग तार लगाए हैं. भारत सरकार ने लुक ईस्ट पॉलिसी के तहत म्यांमार सरकार से इंडो-म्यांमार बॉर्डर ट्रेड समझौता किया है. इस वजह से केंद्र सरकार म्यांमार पर नरम पड़ रही है. इस मामले में नरेंद्र मोदी ने कहा कि कोई भी आए, हमारा सामान लूटकर चला जाए, कोई रोक-टोक नहीं है. ऐसे में देश कैसे चलेगा? वैसे, बॉर्डर फेंसिंग भाजपा का चुनावी एजेंडा है, जिसे लेकर वह मणिपुर में चुनाव लड़ेगी. मणिपुर की जनता कांग्रेस सरकार से ऊब चुकी है. वर्षों से शासन कर रही कांग्रेस इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि जनता का उससे विश्‍वास उठ गया है. जनता अब बदलाव चाहती है. नरेंद्र मोदी की रैली में एक लाख से अधिक लोग शामिल हुए. लोगों में मोदी को लेकर एक उम्मीद देखने को मिली. दरअसल, भाजपा के साथ एक दिक्कत यह है कि वह राज्य से आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफसपा) हटाने की मांग से इत्तेफाक़ नहीं रखती, जो पूर्वोत्तर के लोगों को पसंद नहीं है. पूर्वोत्तर की प्रमुख एक्टिविस्ट इरोम शर्मिला यह एक्ट हटाने की मांग को लेकर कई वर्षों से अनशन पर हैं. नागरिकों का कहना है कि अफसपा जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर से हर हाल में हटा लेना चाहिए. राजनीतिक पार्टियां भी अक्सर प्रचार करती हैं कि राज्य से अफसपा हटाने का विरोध करने वाले दलों को वोट नहीं देना चाहिए.

आने वाले लोकसभा चुनाव में राज्य के लिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बॉर्डर फेंसिंग और अफसपा जैसे मुद्दों पर जनता नरेंद्र मोदी को किस रूप में लेती है? अगर मोदी कल देश के प्रधानमंत्री बनते हैं, तो इन मुद्दों पर उनका क्या रुख होता है? क्या वह बीच का रास्ता निकाल पाएंगे और दोनों मुद्दों पर जनता को संतुष्ट कर सकेंगे? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के असम में भी मोदी ने हुंकार भरी. गुवाहाटी रैली में उन्होंने कहा कि अगर भाजपा सत्ता में आई, तो अवैध ढंग से रह रहे विदेशियों को वापस भेजा जाएगा. इस मामले में किसी भी तरह की कोताही या नरमी नहीं बरती जाएगी. उन्होंने कहा, असम समझौते पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि बाहरी लोगों को पहचान कर उन्हें देश से बाहर किया जाएगा, मगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी उनकी यह बात पूरी नहीं होने देना चाहते. मोदी ने कहा कि भाजपा यह कतई बर्दाश्त नहीं करेगी कि भारत की ज़मीन बांग्लादेश को दे दी जाए. यदि भाजपा सत्ता में आई, तो एक इंच ज़मीन भी बांग्लादेश को नहीं दी जाएगी. उन्होंेने पूूर्वोत्तरवासियों से भाजपा के लिए कांग्रेस के 60 वर्षों की अपेक्षा 60 महीने का समय मांगा. मोदी ने पूर्वोत्तर के पिछड़ेपन के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने केंद्र सरकार के सभी विभागों को अपने बजट का 10 फ़ीसद हिस्सा खर्च करने का आदेश देकर क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम उठाया था. यदि भाजपा सत्ता में आती है, तो हम उपयुक्त नीति बनाएंगे और सभी समस्याएं हल करेंगे, ताकि क्षेत्र के लोग विकास का लाभ प्राप्त कर सकें.


अपने जवाबी हमले में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा कि नरेंद्र मोदी ग़ैर-ज़िम्मेदार हैं और ग़लत बयानबाजी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के दौरान असम को कुछ नहीं मिला. गोगोई ने कहा कि भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़, 2012-13 में असम का सकल घरेलू उत्पाद 13 फ़ीसद था, जबकि गुजरात का 8.52 फ़ीसद. गोगोई ने कहा कि विकास पर उनका व्यय अधिक है. 11वें वित्त आयोग में राजग के शासनकाल के दौरान असम को 13280.86 करोड़ रुपये मिले थे. 13वें वित्त आयोग के दौरान यह धनराशि 57832.7 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. उन्होंने कहा कि असम पर 29200 करोड़ रुपये का क़र्ज है, जबकि गुजरात पर 176500 करोड़ रुपये का. मनरेगा के बारे में उन्होंने कहा कि मोदी ने इस संबंध में गलत आंकड़े दिए. असम में 40.92 लाख जॉब कार्ड दिए गए और 13.08 लाख लोगों को काम मिला, वहीं गुजरात में 36.6. लाख लोगों को जॉब कार्ड मिले, लेकिन काम स़िर्फ 1.75 लाख लोगों को मिला. गोगोई ने दावा किया कि शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में असम की स्थिति गुजरात से बेहतर है. अपराध के मामले में हत्या को छोड़कर चोरी, डकैती, छिनैती एवं अन्य अपराधों में गुजरात असम से बहुत आगे है. चाहे मामला मोदी के दावों का हो या गोगोई के जवाबी हमले का, यह कटु सत्य है कि इन सबके बावजूद पूर्वोत्तर के राज्य सबसे अधिक पिछड़ेपन के शिकार हैं और इसका एकमात्र कारण यह है कि तमाम राजनीतिक पार्टियां पूर्वोत्तर के हितों को लेकर गंभीर नहीं हैं.

महिला पुलिसकर्मियों की मांग

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह पूर्वोत्तर की अंग्रेजी बोलने वाली महिला पुलिसकर्मियों को अपने राज्य में विदेशी पर्यटकों से बात करते हुए देखना चाहते हैं. मोदी ने कहा कि दिल्ली में मुख्यमंत्रियों की बैठक में उन्होंने पूर्वोत्तर के सभी आठ (सिक्किम मिलाकर) राज्यों से दो-दो सौ महिला पुलिसकर्मियों को उनके राज्य में दो वर्षों के लिए प्रतिनियुक्ति पर भेजने का अनुरोध किया था, लेकिन किसी ने उनकी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. मोदी ने कहा कि उन्होंने एक बार फिर गुजरात में पूर्वोत्तर की 1600 महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती का अनुरोध किया है.

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