यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Wednesday, March 12, 2014

अनब्रिकेबल:एन ऑटोबायोग्राफी

संघर्ष की एक ईमानदार कथा

32 वर्षीय एम सी मैरी कोम की आत्मकथा-अनब्रिकेबल:एन ऑटोबायोग्राफी पढ़ने के बाद मुझे बहुत खुशी हुई. आश्‍चर्य भी महसूस हुआ, क्योंकि मैरी कोम ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं. वह केवल बॉक्सिंग की विश्‍व प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं, कोई लेखिका नहीं, जिसने साहित्य के क्षेत्र में कभी काम किया हो. बावजूद इसके, कई यादगार लम्हों को समेट कर उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी, जो क़ाबिले तारीफ है. इस किताब की सबसे बड़ी विशेषता ईमानदार लेखन, साहस के साथ अपनी बात कहना, बॉक्सिंग को अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करना और उसे आने वाली पीढ़ियों की खातिर लोकप्रिय बनाने की उनकी कोशिश है. एक बॉक्सर बनने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष किया, यह बात किताब पढ़ते समय बखूबी मालूम हुई. उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

मैरी कोम मानती हैं कि खेल ही सबको प्यार में बांध सकता है. वह अपनी जाति कोम और जन्मस्थल मणिपुर को बेहद प्यार करती हैं. एक मां होने की ज़िम्मेदारियां, पति के साथ ईमानदार रिश्ते, खेल में राजनीतिक दबाव, मणिपुर का अशांत माहौल एवं समस्याएं उनकी आत्मकथा के हिस्से हैं. यह किताब पढ़कर पता चलता है कि उनके अंदर कितना साहस, सकारात्मक सोच और धैर्य है. वह विश्‍व महिला बॉक्सिंग में पांच बार चैंपियन रहीं और लंदन ओलंपिक 2012 में उन्हें कांस्य पदक मिला. अर्जुन अवॉर्ड एवं पद्मभूषण से सम्मानित मैरी कोम के जीवन पर आधारित यह किताब युवा खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करेगी, उन्हें मेहनत करने की प्रेरणा देगी. मैरी कोम की सफलता की यह कहानी अभी अंग्रेजी में आई है, इसे अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित करने की ज़रूरत है, ताकि लोगों को प्रेरणा मिले.

मैरी कोम मणिपुर के चुड़ाचांदपुर जिले के सागां नामक स्थान पर 22 नवंबर, 1982 को जन्मी थीं. कोम उनकी जाति है. ईसाई धर्म को मानने वाली मैरीकोम की सफलता का मंत्र है, आई मस्ट विन दिस बाउट, आई मस्ट विन, आई मस्ट विन. इस मंत्र को जपते हुए वह पहले प्रार्थना करती हैं, तब खेलना शुरू करती हैं. हर बार खेलने से पहले वह सोचती हैं कि विरोधी खिलाड़ी भी इंसान है. मेरी तरह उसके भी दो हाथ और दो पांव हैं, इसलिए मैं क्यों डरूं. मैरी कोम का बचपन बहुत संघर्षपूर्ण रहा. एक निर्धन परिवार में जन्म होने की वजह से उन्हें अभाव में रहना पड़ता था. लेकिन, इंसान अभाव में ही बहुत कुछ कर सकता है, यह बात मैरी कोम ने साबित कर दिखाई. वह तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं. उनके पिता मांगते तोनपा कोम एक भूमिहीन किसान हैं. बाद में मैरी कोम की नौकरी लगने के बाद जमीन खरीदी गई. मैरी कोम के पिता पारिवारिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मोइरांग के कांगाथै के मुखिया के पास काम करने आ गए. उस वक्त मैरी कोम केवल पांच महीने की थीं. उनके पिता वहां 10 साल से काम कर रहे थे. मुखिया ने थोड़ी सी जमीन उन्हें दी, जिस पर उन्होंने एक झोंपड़ीनुमा घर बनाया. मैरी कोम खेती-बारी का काम भी करती थीं.

उनके पिता ने लोकताक क्रिश्‍चियन मॉडल स्कूल में उनका दाखिला कराया. यह वहां का सबसे अच्छा स्कूल था. रोज एक घंटा पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था. उसके बाद सेंट जेवियर्स स्कूल में सातवीं कक्षा में दाखिला लिया. स्कूल के खेलकूद में हमेशा आगे रहती थीं. खेलों में उनकी विलक्षण प्रतिभा स्कूल के अध्यापकों को पता थी. बाद में 1999 में इंफाल के साई स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में आकर खेलने लगीं. 16-17 की उम्र में उन्होंने पढ़ाई छोड़कर पूरी तरह खेलना शुरू किया. उस वक्त राज्य में महिलाओं का बॉक्सिंग में आना भी शुरू नहीं हुआ था. मैरी कोम को शुरुआती शिक्षक मिले इबोमचा, जिन्होंने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी.

मैरी कोम की शादी ओनलर के साथ मार्च 2005 में हुई. दोनों के रिश्ते और शादी किसी परिकथा से कम नहीं हैं. मैरी तो केवल खेलने में व्यस्त थी. ट्रेनिंग लेने में अधिकतर समय बिताती थी. शादी के बारे में कभी सोचा भी नहीं था. लोगों से घुलने-मिलने, दोस्ती करने का भी समय नहीं मिलता था. ट्रेनिंग में शामिल खिलाड़ियों को ही वह अपना दोस्त मानती थीं. ओनलर के साथ दिल्ली में पहली मुलाकात हुई. ओनलर विधि के विद्यार्थी और दिल्ली के कोम-रेम स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसिडेंट हैं. ट्रेनिंग के दौरान एक दिन ओनलर मैरी से मिलने आए. उसी दिन जान-पहचान हुई. कुछ दिनों बाद ओनलर ने मैरी से शादी का प्रस्ताव रखा. मैरी को आश्‍चर्य हुआ. ओनलर मैरी के जीवनसाथी बनना चाहते थे. ओनलर ने कहा, आई वांट टू प्रोटेक्ट योर करियर एंड डेट इस वन ऑफ द मेइन रीजन्स फॉर माई प्रोपजल. मैरी अस्वीकार नहीं कर सकती थीं. मैरी ने हां कह दी. दोनों की शादी हो गई. यह शादी एक आदर्श शादी थी. अब तीन बच्चे भी हैं. यही सब कुछ उन्होंने अपनी आत्मकथा में समेटा है.

मैरी कोम ने अपने खेल के माध्यम से मणिपुर, भारत और अपनी जाति कोम का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया. मणिपुर की एक साधारण महिला का साहस पूरी दुनिया ने अपनी आंखों से देखा. खेल के क्षेत्र में मैरी कोम का एक बड़ा हिस्सा है. मैरी कोम का एकमात्र सपना है, उनके द्वारा पूर्वोत्तर के लिए स्थापित बॉक्सिंग एकेडमी (एम सी मैरी कोम रीजनल बॉक्सिंग फाउंडेशन) को विकसित करना. सरकार ने उन्हें जमीन दी है और देश-विदेश से सहायता भी मिल रही है. इस एकेडमी में ग़रीब खिलाड़ियों को बॉक्सिंग नि:शुल्क सिखाई जाती है. इस समय 30 से ज़्यादा छात्र एकेडमी में हैं. एक छात्र को 600 रुपये महीने वजीफा दिया जाता है. मैरी कोम को 2016 में रिओ (ब्राजील) में होने वाले वर्ल्ड ओलंपिक में गोल्ड मेडल मिलने की उम्मीद है और वह इसके लिए खूब मेहनत भी कर रही हैं. मैरी, हमें तुम्हारी सफलता का इंतजार है. 

No comments: