यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Tuesday, August 25, 2015

नगा शांति समझौता

शांति की कोशिश कहीं अशांति न फैला दे 
तीन अगस्त को केंद्र सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एम) के सचिव थुइंगालैंग मुइवा के बीच एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए. इस युद्ध विराम समझौते की नींव वर्ष 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल के कार्यकाल में पड़ी थी, लेकिन बीते 18 वर्षों में इस संदर्भ में कोई खास प्रगति नहीं हुई, लेकिन अब यह समझौता ज़मीन पर उतरता नज़र आ रहा है. केंद्र सरकार ने इस समझौते को एक ऐतिहासिक क़दम बताया है और मुइवा भी इससे खुश नज़र आ रहे हैं. 15 अगस्त को जब मुइवा दीमापुर में स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में शरीक होने पहुंचे, तो वहां नगाओं ने उनका ज़ोर-शोर से स्वागत किया. लेकिन, सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार नगाओं की मांगें पूरी करके इस क्षेत्र में शांति स्थापित कर पाने में सफल होगी? मुइवा की मांग एक वृहद नगालैंड की है, जिसमें पड़ोसी राज्यों मसलन, मणिपुर के चार ज़िले, अरुणाचल प्रदेश के दो ज़िले और असम के दो पहाड़ी ज़िले भी शामिल हैं. इस मामले को लेकर तीनों राज्यों में विरोध के स्वर शुरू से उठते आ रहे हैं. सबसे ज़्यादा विरोध मणिपुर में हुआ, क्योंकि उसके चार ज़िले इसमें शामिल हैं. ज्ञात हो कि 18 जून, 2011 को मणिपुर में इस मामले को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान 18 लोग मारे गए थे. 

यह जानना बहुत ज़रूरी है कि इस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में कौन-कौन से बिंदु शामिल किए गए हैं, जिन पर दोनों पक्षों में सहमति कायम हुई है. लेकिन, यह बात किसी को भी नहीं मालूम. इसके बारे में देश के गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु तक नहीं बता पा रहे हैं. जब असम, अरुणाचल एवं मणिपुर के मुख्यमंत्रियों से इस बारे में सवाल किए गए, तो वे आश्चर्यचकित रह गए और उनसे कोई जवाब देते नहीं बना. इस समझौते का नगाओं ने तो खूब स्वागत किया, लेकिन अन्य समुदायों के लोगों ने तीनों राज्यों में इसके विरोध में जमकर प्रदर्शन किया और अपने राज्य की सीमा की अखंडता न टूटने देने का नारा लगाया. सवाल यह उठता है कि आ़िखर केंद्र सरकार इस एग्रीमेंट को गुप्त क्यों रखना चाहती है? गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने स़िर्फ इतना बताया कि इस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में पड़ोसी राज्यों का पूरा ख्याल रखा गया है. 

एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि मुइवा की ग्रेटर नगालैंड की मांग क्या पूरे नगा समुदाय की मांग है? क्या इससे सारे नगा खुश हैं? नगाओं में और भी कई सशस्त्र विद्रोह करने वाले संगठन हैं. मुइवा का प्रमुख विरोधी गुट है, एनएससीएन ( के), जिसकी कमान खापलांग के हाथ में है. वह पिछले दिनों मणिपुर में हुए हमले, जिसमें सेना के 18 जवान शहीद हुए थे, का ज़िम्मेदार है. इतना ही नहीं, एमएनपीएफ (मणिपुर नगा पीपुल्स फ्रंट), जिसकी सशस्त्र शाखा एमएनपीए (मणिपुर नगा पीपुल्स आर्मी) है, का मानना है कि इस समझौते के पीछे केंद्र सरकार का उद्देश्य एनएससीएन (आईएम) के दोनों नेताओं इशाक चिसी और टीएच मुइवा की ढलती उम्र का ़फायदा उठाना भर हैै, यह जनता के हित में नहीं है और नगा जनता इन दोनों नेताओं से ऊपर है. एनएससीएन (आईएम) नगाओं का एकमात्र प्रतिनिधि नहीं है. इस संगठन का कहना है कि छह दशकों से चला आ रहा नगाओं का संघर्ष केवल आर्थिक पैकेज या ग्रेटर ऑटोनोमी के लिए नहीं है. इस लंबी समयावधि में बड़ी संख्या में नगाओं ने अपनी जान गंवाई. इसलिए इस समझौते के अंतिम रूप लेने से पहले आईएम के नेताओं को सोचना चाहिए. कैसे माना जा सकता है कि यह समझौता पूरे नगा समुदाय के लिए है? संगठन का यह भी मानना है कि नगाओं की मांग तब पूरी होगी, जब सारे सशस्त्र गुट एकजुट होकर लड़ें. 

नगा एक जनजाति समुदाय है, जो पूर्वोत्तर भारत और उत्तर-पश्चिमी बर्मा के इलाकों में बसा हुआ है. पूर्वोत्तर यानी मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश एवं असम कुछ हिस्से. नगाओं की भाषा नगामीज और अंग्रेजी है. अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग उपभाषाएं बोली जाती हैं, जो कि 36 से भी ज़्यादा हैं, लेकिन संपर्क भाषा नगामीज है. वर्ष 2012 तक नगालैंड में आधिकारिक तौर पर 17 नगा जनजातियों को मान्यता दी चुकी है. 99 प्रतिशत नगा ईसाई धर्म मानते हैं और कुछ लोग प्रकृति पूजा (एनीमिज्म) करते हैं. शिकार करना और जानवरों के सिर काटकर एकत्र करना नगाओं की संस्कृति का हिस्सा है. एनएससीएन (आईएम) और केंद्र सरकार के बीच जारी यह वार्ता तभी शांति वार्ता कहलाएगी, जब पड़ोसी राज्यों का समुचित ख्याल रखा जाएगा, अन्यथा आशंका यह भी जताई जा रही है कि खूनखराबे की स्थिति पैदा हो सकती है. इसलिए केंद्र सरकार को एक ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटने पाए. 

नगाओं के सशस्त्र संगठन 

एनएससीएन (आईएम) : वर्ष 1980 में स्थापित इस संगठन के पास साढ़े चार हज़ार लड़ाके हैं. इसके नेता हैं इशाक चिसी और टीएच मुइवा. यह संगठन नगाओं के प्रभुत्व और एकीकरण के लिए काम करता है और नए प्रस्तावित राज्य को नगालिम नाम देना चाहता है. 

एनएससीएन (के ): इस संगठन का मुखिया खापलांग शिलांग संधि-1975 (नगा नेशनल काउंसिल और भारत सरकार के बीच हुआ समझौता)  का विरोध करता था. दरअसल, पहले


एनएससीएन नामक एक ही संगठन था, जो 1988 में दो हिस्सों में विभाजित हो गया, एनएससीएन (के) उसका दूसरा हिस्सा है, जिसकी कमान खापलांग के हाथ में है. दोनों गुटों यानी एनएससीएन (आईएम) और एनएससीएन (के) के बीच भी वर्चस्व की लड़ाई है. 

एमएनपीएफ : एमएनपीएफ (मणिपुर नगा पीपुल्स फ्रंट) मणिपुर से संचालित होता है. यह मणिपुरी नगाओं का एक उग्रपंथी संगठन है. यह 2013 में बना था, जिसके अध्यक्ष जोहन फ्रांसिस कशुंग हैं. उनका मानना है कि नगाओं की मांग तब पूरी होगी, जब सारे सशस्त्र विरोधी गुट एकजुट होकर लड़ें.

एमएनपीए: एमएनपीए (मणिपुर नगा पीपुल्स आर्मी) एमएनपीएफ की सशस्त्र शाखा है. दोनों संगठन एक-दूसरे के पूरक हैं. दोनों का मकसद और कार्यप्रणाली समान है. एमएनपीए के महासचिव हैं विल्सन टाव. 

किसने क्या कहा

हम इस शांति समझौते का स्वागत करते हैं. लेकिन, यदि मणिपुर की सीमा को लेकर कोई ़खतरा पैदा होगा, तो मेरी सरकार केंद्र और एनएससीएन (आईएम) के बीच हो रही इस शांति वार्ता को स्वीकार नहीं करेगी. 
-ओक्रम इबोबी सिंह, मुख्यमंत्री, मणिपुर. 
हम नगा मुद्दों को निपटाने के लिए इस समझौते का स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि यह विवाद ़खत्म हो. लेकिन, यदि असम को एक इंच ज़मीन भी ऩुकसान होगा, तो उसका विरोध ज़रूर करूंगा. इस समझौते के बिंदुओं को सबसे छिपाया गया.  
-तरुण गोगोई, मुख्यमंत्री, असम.


इस समझौते के बारे में टेलीविजन के माध्यम से पता चला. अगर राज्य सरकार के सुझाव केंद्र को मंजूर हैं, तो यह समझौता स्वीकार करूंगा. 
-नबम टूकी, मुख्यमंत्री, अरुणाचल प्रदेश.

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