यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Monday, June 20, 2016

विकास की राह में बंदूक


मोदी सरकार भले ही पूर्वोत्तर भारत को विकास की दौड़ में शामिल करवाने की कोशिश कर रही हो, विकास की बहुत सारी योजनाएं शुरू कर रही हो, लेकिन ऐसा लगता है कि वहां के चरमपंथी गुटों को विकास की यह राह रास नहीं आ रही है. इसलिए वे समय-समय पर सरकार का विरोध करते रहते हैं. गत 13 अप्रैल को मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के नूंगबा सब-डिवीजन के लेंगलोंग में मणिपुरी नगा चरमपंथी संगठन जेलियांगरोंग यूनाइटेड फ्रंट (जेडयूएफ) और भारतीय सेना के बीच हुई मुठभेड़ में मेजर अमित देसवाल शहीद हो गए. अमित देसवाल हरियाणा के झज्जर के रहने वाले थे. वह इंफाल स्थित सेना की 21वीं पैरा (स्पेशल फोर्स ) में पदस्थ थे. पिछले दिनों ख़बर आई कि तमेंगलोंग जिले के नूंगबा सब डिवीजन के लेंगलोंग में हथियारबंद चरमपंथी गुट इकट्ठा हो रहे हैं. इसी सिलसिले में मेजर अमित देसवाल के नेतृत्व में 21वीं पैरा की एक टीम को लेंगलोंग भेजा गया. यह टीम लेंगलोंग पहुंचने ही वाली थी लेकिन वहां पहले से छिपे अत्याधुनिक हथियारों से लैस चरमपंथियों ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी. इस मुठभेड़ में मेजर देसवाल को गोलियां लगीं और वह घटना स्थल पर ही शहीद हो गए. इस घटना में मेजर देसवाल के अलावा अन्य दो लोगों की भी मौत हो गई. जिनमें से एक स्थानीय व्यक्ति और दूसरा चरमपंथी गुट का सदस्य था.

दूसरी घटना है 14 अप्रैल की, जब ईस्ट इंफाल के मिनुथोंग स्थित असम रायफल्स के ट्रांजिट कैंप में रात में बम फेंका गया. इस घटना में 32 वर्षीय जवान गोकुलचंद यादव शहीद हो गया और तीन जवान घायल हुए. इस घटना की जिम्मेदारी यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) की सेना एमपीए ने ली. राजस्थान के सीकर जिले के नीम का थाना सालावली गांव के रहने वाले गोकुल चंद असम राइफल्स में तैनात थे. गोकुल होली की छुट्टिुयां बिताकर अपनी यूनिट में वापस लौटे थे. इससे पहले, 31 मार्च की रात लिलोंग स्थित 40 असम रायफल्स के कैंप में बम फेंका गया था. इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ लेकिन इस घटना की जिम्मेदारी पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कंगलैपाक (प्रीपाक)  ने ली थी.

मणिपुर के चरमपंथी संगठनों का मानना है कि मणिपुर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं रहा है, उसे जबरदस्ती भारत में शामिल किया गया है. मणिपुर मर्जर एग्रिमेंट-1949 के तहत मणिपुर के राजा बोधचंद्र सिंह से बंद कमरे बंदूक की नोक पर हस्ताक्षर कराए गए थे. इसके विरोध में तब से लेकर आज तक मणिपुर में सशस्त्र आंदोलन चल रहा है. इन लोगों का मानना है कि उन्हें भारत से आजादी नहीं मिलेगी, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा. इसी वजह से समय-समय पर चरमपंथी गुट भारतीय सेना या अर्ध सैन्य बलों के जवानों और उनके कैंप में हमला करके अपना विरोध दर्ज कराते रहते हैं. ऐसे हमलों में मेजर देसवाल जैसे कई जवान शहीद हो चुके हैं.

मणिपुर सहित पूूर्वोत्तर भारत के अन्य राज्यों में आंदोलन कई चरमपंथी सशस्त्र गुट सक्रिय हैं. पूर्वोत्तर भारत के राज्य सिलीगुड़ी गलियारे या चिकन्स नेक से शेष भारत से जुड़े हैं. यहां के कई चरमपंथी गुट समय-समय पर अलग राज्य की मांग करते रहे हैं  है, कुछ गुटों को क्षेत्रीय स्वायत्ता चाहिए तो कुछ अतिवादी समूहों को पूर्ण स्वतंत्रता. पूर्वोत्तर भारत के राज्यों स्थानीय आदिवासी समुदायों और बाहरी लोगों के बीच तनाव और संघर्ष काफी पहले से चला आ रहा है. हालांकि साल 2013 में इस संघर्ष में थोड़ी कमी देखने को मिली थी लेकिन साल 2014 में यह तनाव एक बार फिर से बढ़ गया और आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा बाहरी लोगों पर हमले किए जाने की घटनाओं में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. इस तरह के हमले असम, मणिपुर, नगालैंड और त्रिपुरा में सबसे ज्यादा हुए. पूर्वोत्तर राज्यों में सबसे कम चरमपंथी गुट अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम में हैं. मिजोरम में तो चरमपंथी न के बराबर हैं. इन दोनों राज्यों में स्वाभाविक तौर पर चरमपंथी घटनाएं भी बेदह कम होती हैं.

2014 में हुए लोकसभा चुनाव में पूर्वोत्तर राज्यों में 80 फीसदी मतदान हुआ था. इसके बाद विभिन्न राजनीतिक विशेषज्ञों ने कहा कि मतदान प्रतिशत यह बताता है कि पूर्वोत्तर भारत के लोगों का भारतीय लोकतंत्र में विश्वास बढ़ा है. लेकिन 2015 में एनएससीएन (के) के प्रमुख एसएस खपलांग, उल्फा प्रमुख डॉ अभिजीत असोम, केएलओ के प्रमुख जीवन सिंघा और एनडीएफबी के प्रमुख बी साउरायगवरा ने संयुक्त रूप से यूनाइटेड नेशन लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेसी (यूएनएलएफडब्लू) के गठन की घोषणा की. यह संगठन पूर्वोत्तर भारत की वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया के रूप में मान्यता चाहता है. इन चरमपंथी गुटों के आपसे में मिलने और एक नए संगठन का गठन करने की वजह से पूर्वोत्तर भारत में अशांति का माहौल बन गया. नए संगठन के गठन के बाद नए संगठन ने मणिपुर के चांदेल की घटना को अंजाम दिया गया था जिसमें भारतीय सेना के 18 सैनिक शहीद हुए थे. इसके बाद भारतीय सेना ने म्यांमार में इनके कैंप पर जवाबी हमला भी किया था.

आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट-1958 (अफसपा) पूर्वोत्तर  भारत के अशांत राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में लागू है. पिछले साल त्रिपुरा से इस कानून को हटाया गया था. यह कानून अशांत क्षेत्रों में सेना को विशेषाधिकार देता है ताकि चरमपंथी संगठनों के खिलाफ प्रभावशाली तरीके से कार्रवाई की जा सके. अफसपा के लागू होने के बाद पूरे पूर्वोत्तर भारत में फर्जी मुठभेड़, बलात्कार, लूट एवं हत्या जैसी घटनाओं की बाढ़ आ गई. जब 1958 में अफसपा बना था तब यह कानून राज्य सरकार के अधीन था, लेकिन साल 1972 में इस कानून में हुए संशोधन के बाद इसे केंद्र सरकार ने अपने हाथों में ले लिया. संशोधन के मुताबिक देश के किसी भी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र (डिस्टर्ब एरिया) घोषित कर वहां अफसपा लागू किया जा सकता है. इस कानून के खिलाफ कई लोग समय-समय पर विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं. मणिपुर की आयरन लेडी के नाम से विख्यात इरोम शर्मिला पिछले 15 वर्षों से इस कानून को खत्म करने के खिलाफ आमरण अनशन कर रही हैं. ग़ौरतलब है कि जीवन रेड्‌डी समिति ने भी सरकार को यह संकेत दिया था कि यह क़ानून दोषपूर्ण है और इसमें संशोधन की ज़रूरत है. लेकिन उपरोक्त घटनाओं में कमी होने के बजाए इनमें इज़ाफा हो रहा है ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि पूर्वोत्तर राज्यों से अफसपा हटाना कितना जायज होगा. हालांकि, लोग अफसपा के खिलाफ तो हैं, लेकिन चरमपंथी संगठनों द्वारा लगातार पूर्वोत्तर सेना और अर्ध-सैन्य बलों के खिलाफ हो रहे हमले को देखकर केंद्र सरकार द्वारा अफसपा लगाने का निर्णय तार्किक लगता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना एक्ट ईस्ट पॉलिसी के  तहत मणिपुर की 84 किमी लंबी जिरिबाम-तुपुल रेलवे लाइन का काम भी इन चरमपंथी संगठनों के  विरोध की वजह से निर्धारित समय से पीछे चल रहा है. इस रेलवे लाइन के निर्माण में छह बड़े पुल,  112 छोटे पुल, तीन सड़क ओवरब्रिज का बनने हैं. पहले चरण में 39,401 मीटर लंबी 34 सुरंगें बनानी हैं. इस कार्य को साल 2016 के अंत तक पूर्ण होना था. केंद्र सरकार इस नीति के तहत दक्षिण-पूर्व और पूर्व-एशिया की अर्थव्यवस्था से जोड़ने का कार्य कर रहा है. नगा चरमपंथी गुट जेलियांगरोंग यूनाइटेड फ्रंट (जेडयूएफ) ने कई सप्ताह तक निर्माण कार्य को बाधित रखा. साथ ही इस रेल योजना के प्रोजेक्ट मैनेजर का इस साल जनवरी में अपहरण कर लिया गया था. इसके अलावा भी अन्य कई संगठन हैं जो इस योजना के कार्य को बाधित कर रहे हैं. राज्य सरकार भी सुरक्षा के नाम पर कुछ कर नहीं पा रही है. जेडयूएफ के पीछे नगा चरमपंथी गुट एनएससीएन (आईएम) मदद कर रहा है. एनएससीएन (आईएम) की केंद्र सरकार के साथ वार्ता चल रही है. बावजूद इसके वह जेडयूएफ के साथ मिलकर राष्ट्रीय राजमार्ग-37 में दिनदहाड़े लूटपाट की घटना को अंजाम दे रहा है. बहरहाल, सरकारी आंकड़े तो यह बताते हैं कि पूर्वोत्तर भारत के चरमपंथी गुट शांति की तरफ लौट रहे हैं. बावजूद इस तरह की घटनाओं पर लगाम क्यों नहीं लग पा रही है.

शांति प्रक्रिया की स्थिति क्या है
  • असम 
  • यूपीडीएस (यूनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सोलिडैरिटी) के साथ 25 सितंबर 2011 को शांति समझौता हुआ था जो बाद में टूट गया. 
  • डीएचडी (डिमा हालामडाउगाह) के साथ 8 अक्टूबर 2012 को समझौता हुआ था. फिलहाल, भंग हो चुका है. 
  • उल्फा के साथ वार्ता जारी है. 
  • कार्बीलोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (केएलएनएलएफ) की सरकार के साथ वार्ता जारी है.
  • मेघालय 
  • प एएनवीसी (अचिक नेशनल वोलंटीयर काउंसिल) का केंद्र और राज्य सरकार के साथ शांति समझौता 24 सितंबर 2014 को हुआ था जो टूट चुका है.
  • मणिपुर
  • केएनओ (कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन) के साथ शांति समझौता अगस्त 2008 को हुआ था जो 21 जुलाई 2016 तक वैध है. 
  • 19 भूमिगत संगठनों के साथ समझौता 13 फरवरी 2013 को हुआ था. यूपीपीके के 80काडरों ने आत्मसमर्पण कर दिया था और समझौता ज्ञापन पर 24 मई 2013 को हस्ताक्षर हुआ था. 1 जनवरी से 31 दिसंबर 2014 के अंदर 593 भूमिगत लोगों ने आत्मसमर्पण किया गया.
  • नगालैंड
  • एनएससीएन (खोले-कितोवी) और एनएससीएन (रिफॉर्मेशन) के साथ संघर्ष विराम समझौता हुआ था जो कि 27 अप्रैल 2016 तक वैध है. एनएससीएन (आईएम) ने अनिश्चितकालीन संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर किए.
  • त्रिपुरा
  • एनएलएफटी (बी) के नेताओं के साथ त्रिपुरा में शांति बहाली के लिए वार्ता प्रगति पर है. 

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