यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Wednesday, October 26, 2016

आदिवासियों का हक छीनने का कुचक्र

मणिपुर विश्‍वविद्यालय आरक्षण मुद्दा
देश के अन्य हिस्सों की तरह आरक्षण का मुद्दा अब पूर्वोत्तर भारत में भी उठने लगा है. हाल में मणिपुर विश्‍वविद्यालय में आरक्षण को लेकर एक तनावपूर्ण स्थिति बनी है. उपद्रवियों ने विश्‍वविद्यालय के रिक्रिएशन हॉल, तीन डीटीपी हॉल और कैंटीन को जला दिया है. मणिपुर विश्‍वविद्यालय ट्राइवल स्टूडेंट्स यूनियन की मांग है कि आरक्षण को लेकर राज्य सरकार के नॉर्म्स द सेंट्रल एडुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (रिजर्वेशन इन एडमिशन) एमेंडमेंट एक्ट 2012 लागू हों. राज्य सरकार के नॉर्म्स के अनुसार एसटी को 31 प्रतिशत, एससी को 2 प्रतिशत और ओबीसी को 17 प्रतिशत आरक्षण मिला है, लेकिन विश्‍वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि मणिपुर यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिल चुका है, इसलिए यूजीसी के आरक्षण नॉर्म्स द सेंट्रल एडुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (रिजर्वेशन इन एडमिशन) एक्ट 2006 के हिसाब से होने चाहिए. यूजीसी नॉर्म्स के अनुसारएसटी को 7.5 प्रतिशत, एससी को 15 प्रतिशत और ओबीसी को 27 प्रतिशत का आरक्षण मिलता है. प्रशासन के इस निर्णय को लेकर ट्राइवल स्टूडेंट्स ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया है. यूनिवर्सिटी का नया सत्र इस विरोध-प्रदर्शन की भेंट चढ़ गया. नया सत्र जून में शुरू होना था, जो अब तक शुरू नहीं हो सका है. यहां तक कि पिछली परीक्षाओं का परिणाम भी अभी तक घोषित नहीं किया गया है.

पुलिस प्रशासन ने भी तत्परता दिखाते हुए विश्‍वविद्यालय के कुछ हिस्सों को जलाने के मामले में 18 छात्रों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया है. इसके बाद मणिपुर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट् यूनियन पकड़े गए छात्रों को जल्द से जल्द छोड़ने की मांग कर रही है. वहीं विश्‍वविद्यालय में आगजनी की घटना के बाद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर इन चार्ज प्रोफेसर एम धनेश्‍वर ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को इस्तीफा सौंप दिया है. प्रोफेसर धनेश्‍वर को पूर्व वाइस चांसलर का कार्यकाल समाप्त होने के बाद कुछ समय के लिए प्रभार सौंपा गया था, लेकिन यूनिवर्सिटी में अशांत माहौल व शैक्षणिक वातावरण में सुधार नहीं होने के कारण उन्होंने इस्तीफा देना ही उचित समझा. 

गौरतलब है कि मणिपुर विश्‍वविद्यालय की स्थापना 5 जून 1980 को हुई थी. तबसे विश्‍वविद्यालय में नामांकन व टीचिंग और नन टीचिंग स्टाफ की नौकरी में आरक्षण को लेकर राज्य सरकार के नॉर्म्स ही चले आ रहे थे. 13 अक्टूबर 2005 को मणिपुर यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलने के बाद से यानी 2006-07 के सत्र से यहां सेंट्रल यूनिवर्सिटी का नॉॅर्म्स शुरू होना था. फिर भी विश्‍वविद्यालय प्रशासन कुछ समय तक राज्य सरकार के आरक्षण नॉर्म्स का ही पालन करता रहा. दो साल गुजर जाने के बाद 2008-09 में यहां सेंट्रल का आरक्षण नॉर्म्स चलाना शुरू किया गया था. इसी समय से ट्राइवल स्टूडेंट्स ने विरोध शुरू किया था, जो अबतक जारी है. फिर 2012 में बिल एमेंडमेंड हुआ. द सेंट्रल एडुकेशनल इंस्टीट्यूशंस एमेंडमेंट एक्ट 2012 को 2012 से लेकर 2015 तक विश्‍वविद्यालय में चलाया जा चुका है. ट्राइवल स्टूडेंट्स ने इस मामले को लेकर कोर्ट की शरण ली.  इस मामले में कोर्ट ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को यह सुझाव दिया कि दोनों एक्ट में से जो उचित लगे, उसे चलाया जाए. इसके बाद विवि प्रशासन ने 4 अप्रैल 2016 को ऐलान किया कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी के नॉर्म्स ही फिर से विश्‍वविद्यालय के 2016-2017 एडमिशन में लागू होंगे. इस निर्णय से नाखुश मणिपुर यूनिवर्सिटी ट्राइवल स्टूडेंट यूनियन ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया.

ट्राइवल स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बोस्को जायचे खरम ने कहा कि जो आरक्षण के नियम चलाए जा रहे थे, उसे छोड़कर दूसरा नियम तत्काल लागू करना छात्रों को मंजूर नहीं है. उन्होंने कहा कि हम लोग जो चीज नहीं है, उसकी मांग नहीं कर रहे हैं. जो नियम था, उसी को बरकरार रखने की मांग कर रहे हैं. हमारी मांग केवल गु्रप सी और डी में ही इस नियम को लागू करवाने की है. 23 मार्च 2016 को यूजीसी की तरफ से एक सख्त निर्देश विश्‍वविद्यालय प्रशासन को दिए गए थे. इसके कुछ दिनों बाद रिजर्वेशन के नियम बदल देना ट्राइवल स्टूडेंट्स की उपेक्षा करना है. खरम ने कहा कि अगर सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनकर भी छात्रों को उनका उचित हक नहीं मिल रहा है, तो राज्य के विवि रहना ही ज्यादा अच्छा है. उन्होंने कहा कि 2012 के एमेंडमेंड बिल लागू होने के बावजूद ट्राइवल स्टूडेंट्स की उपेक्षा होती रही. ऐसे में 2006 वाला कानून अगर लागू होगा, तो हम लोगों के यहां पढ़ाई करने का कोई मतलब नहीं है. इसलिए ट्राइवल छात्रों ने विश्‍वविद्यालय का छात्रावास 10 अक्टूबर को छोड़ दिया. जो बाकी छात्र बचे रह गए उन्होंने भी कक्षा के बहिष्कार करने का एलान किया. मुत्सू (मणिपुर ट्राइवल स्टूडेंट यूनियन) ने चेतावनी दी है कि विवि प्रशासन ने अगर अपने निर्णय वापस नहीं लिए तो यूनिवर्सिटी के बाहर भी विरोध प्रदर्शन शुरू किए जाएंगे.
दूसरी तरफ, मुसू ( मणिपुर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन) के अध्यक्ष ओइनाम प्रेमसागर ने मांग की है कि विवि में अशांति के माहौल को तत्काल खत्म किया जाए. साथ में यह भी मांग की कि जो प्रशासन ने निर्णय लिया है, उसे जल्द चालू कराकर प्रवेश प्रक्रिया शुरू की जाए. मुसू छात्रों की एक सामूहिक संस्था है, जिसमें ट्राइवल छात्र (ईसाई धर्म मानने वाले), हिंदू (जो जनरल कैटेगरी के हैं) एवं मुसलमान छात्र भी शामिल हैं. लेकिन मुत्सू (मणिपुर ट्राइवल स्टूडेंट यूनियन) केवल ट्राइवल छात्रों का संगठन है, जो एसटी में आता है.

मणिपुर युनिवर्सिटी का आरक्षण मुद्दा ट्राइवल और घाटी में रह रहे सभी जातियों (हिंदू, मुसलमान व मैतै), जो एससी और ओबीसी हैं, के बीच संघर्ष का कारण बन सकता है. राज्य में 2011 की जनगणना के अनुसार, मणिपुर की 25 लाख आबादी में से करीब   9 लाख ट्राइवल्स हैं, जो पहाड़ों में रहते हैं, जबकि बाकी हिस्से के लोग घाटी में. मणिपुर में पहले भी पहाड़ बनाम घाटी का विवाद चलता रहा है. एक सवाल यह भी उठ रहा है कि शहर के कुछ हिस्सों को छोड़कर, बाकी ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मैतै समुदाय के लोग गरीब और पिछड़े हैं. वे अधिकतर ओबीसी में आते हैं. ऐसे में अगर 2006 का कानून विवि में अगर लागू नहीं होगा, तो ट्राइवल स्टूडेंट्स के अलावा बाकी समुदाय के छात्र भी आंदोलन कर सकते हैं. वहीं विश्‍वविद्यालय प्रशासन को इस बात की चिंता सता रही है कि छात्रों के इस विरोध-प्रदर्शन के चक्कर में कहीं यूजीसी ग्रांट न बंद हो जाए. अगर समय रहते विश्‍वविद्यालय प्रशासन व छात्र संगठनों के बीच विवाद को नहीं सुलझा लिया गया, तब आने वाले समय में जातीय व सांप्रदायिक टकराव का रूप ले सकता है. इस मुद्दे पर यूजीसी और राज्य सरकार को पहल कर विश्‍वविद्यालय में आरक्षण मुद्दे का समाधान निकाल लेना चाहिए.

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