मैं अकेला हूँ
यहाँ एकांत कमरे में
बिल्कुल निशब्द
खाली बैठा देखता रहा
टूटे शीशे पर सूरज का उगना
कोई संबंध नहीं था
चुपचाप देखता रहा सूरज का डूबना
वो गुजरा समय फिर कभी नहीं पाउँगा मैं
मुझे यकीन था
जिंदगी में मैंने बहुत समय यूँही गँवा दिया।
सूरज उगते समय
चारों तरफ एकांत
चारों तरफ ठंडी हवाएं
एक पत्ता गिरता है पेंड़ से
क्योंकि जडा दरवाजे पर हैं।
चिडियों का दल
उड़ रहा है दूर-दूर
न जाने कहाँ है मंजिल
जहाँ ठहरती वहाँ काटी रात
मेरा पंख होता तो
मैं भी ऐसा ही उड़ता...
Wednesday, December 19, 2007
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