दोस्तो, आप किसी ओर के लिए अपनी जान दे सकते हैं. थोडा दिक्कत काम है. मगर प्रभु यीशू ने अपनी जान लोगों के लिए गंवाई. दुश्मनों की रक्षा के लिए प्रार्थना करता था. यह सब साधारण काम नहीं है और साधारण आदमी कर नहीं सकता. लोगों के भलाई के लिए अपने हाथ पांव में कांटी लगवाया. उनकी समर्पित जिंदगी को याद करते हैं. उनके जन्मदिन के पावन अवसर पर सभी दोस्तों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं.
Tuesday, December 23, 2008
क्रिसमस की शुभकामनाएं
दोस्तो, आप किसी ओर के लिए अपनी जान दे सकते हैं. थोडा दिक्कत काम है. मगर प्रभु यीशू ने अपनी जान लोगों के लिए गंवाई. दुश्मनों की रक्षा के लिए प्रार्थना करता था. यह सब साधारण काम नहीं है और साधारण आदमी कर नहीं सकता. लोगों के भलाई के लिए अपने हाथ पांव में कांटी लगवाया. उनकी समर्पित जिंदगी को याद करते हैं. उनके जन्मदिन के पावन अवसर पर सभी दोस्तों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं.
Sunday, December 14, 2008
क्या यह इंसानियत है?
Saturday, December 6, 2008
उठो वारिस शाह
-अमृता प्रीतम
उठो वारिस शाह-
कहीं कब्र में से बोलो
और इश्क की कहानी का-
कोई नया वरक खोलो....
पंजाब की एक बेटी रोई थी
तूने लंबी दास्तान लिखी
आज जो लाखों बेटियां रोती हैं
तुम्हें-वारिस शाह से-कहती हैं...
दर्दमंदों का दर्द जानने वाले
उठो ! और अपना पंजाब देखो !
आज हर बेले में लाशें बिछी हुई हैं
और चनाब में पानी नहीं
...अब लहू बहता है...
पांच दरियाओं के पानी में
यह ज़हर किसने मिला दिया
और वहीं ज़हर का पानी
खेतों को बोने सींचने लगा...
पंजाब की ज़रखेज़ जमीन में
वहीं ज़हर उगने फैलने लगा
और स्याह सितम की तरह
वह काला जहर खिलने लगा...
वही जहरीली हवा
वनों-वनों में बहने लगी
जिसने बांस की बांसुरी-
ज़हरीली नाग-सी बना दी...
नाग का पहला डंक मदारियों को लगा
और उनके मंत्र खो गए...
फिर जहां तहां सब लोग-
ज़हर से नीले पड़ने लगे...
देखो ! लोगों के होठों से
एक ज़हर बहने लगा
और पूरे पंजाब का बदन
नीला पड़ने लगा...
गले से गीत टूट गए
चर्खे का धागा टूट गया
और सखियां-जो अभी अभी यहां थीं
जाने कहां कहां गईं...
हीर के मांझी ने-वह नौका डुबो दी
जो दरिया में बहती थी
हर पीपल से टहनियां टूट गईं
जहां झूलों की आवाज़ आती थी...
वह बांसुरी जाने कहां गई
जो मुहब्बत का गीत गाती थी
और रांझे के भाई बंधु
बांसुरी बजाना भूल गए...
ज़मीन पर लहू बहने लगा-
इतना-कि कब्रें चूने लगीं
और मुहब्बत की शहज़ादियां
मज़ारों में रोने लगीं...
सभी कैदों में नज़र आते हैं
हुस्न और इश्क को चुराने वाले
और वारिस कहां से लाएं
हीर की दास्तान गाने वाले...
तुम्हीं से कहती हूं-वारिस !
उठो ! कब्र में से बोलो
और इश्क की कहानी का
कोई नया वरक खोलो...

