पथ धूलि हूं मैं
युग-युग कुचलती रही
जन्मो-जन्मों से
गाली सुन रही
पथ धुली हूं मैं।
बडी आशा के साथ
जाना चाहा गगन में
जगह पावन में
पर, उतरती फिर
धरती पर
ऊंची गाली के साथ।
मैं चाहती हूं तुम्हारा पास
तुम्हें चाहती, पर तुझसे दूर रहती
पथ धुलि हूं मैं।
युगों के अभिशाप,
जन्मों की गाली,
तुम्हारा निवास मैदान
बडी धरती, सब
धूल से बने सिर्फ
भूलना नहीं, हमेशा
हमेशा कुचली
पथ धूलि हूं मैं।
चाह नहीं मुक्ति
मांग नहीं शांति
हे मनुष्य तुम्हारे
चरणों की धूलि बनूं,
तुम्हारे लातों कुचली मैं
काम पूरा कर सकूं,
आनंद से हंसूं
हर युग में कुचलती रही
जन्मों की गाली सुनती रही
पथ धूलि हूं मैं।
लीला
तूने मारा, मृदंग का ताल
तूने मारी, थापने की आवाज
मेरा मनपसंद ताल है
दो दिन के जीवन में,
चाहत नहीं समझते,
तुम्हारी इच्छा वहीं है
हर कदम पीछा करूं
भजन-कीर्तन करूं तुम्हारे नाम का
दुश्मन हजार-हजार आने दो
यदि सिर्फ तुमने हो, तो कुछ नहीं
सारे संकट आने दो
सामना करूं, दो शक्ति
सिर्फ तुम मत आना बचाने,
मुझे सम्मान पाने दो
हजारों जुदाई, लाखों तलाक आने दो
उसके लिए आंसू न गिरने दो,
उसके लिए न रोऊं, खाली हंसू
रोऊंगा न मिलने पर
सिर्फ मेरे लिए बने तुम।
Saturday, April 18, 2009
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1 comment:
Bhavpoorn sundar rachnayen..Aabhaar.
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