यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Monday, September 7, 2009

शर्मिला पर लिखी किताब का लोकार्पण


पिछले 05 सितंबर 2009 को आर्म्‍ड फोर्सेस स्‍पेशल पावर एक्‍ट -1958 (अफसपा) के विरोध में आमरण अनशन पर बैठ रही मणिपुर की बाला इरोम शर्मिला चनु पर लिखी किताब बर्निंग ब्राइट : इरोम शर्मिला एंड द स्‍ट्रग्‍गल फॉर पीच इन मणिपुर का लोकार्पण केंद्र ग्रामीण विकास मंत्री अगाथा संगमा ने इंडिया हेबिटेट सेंटर के गुलमोहर हॉल में किया गया. पेंग्विन बुक्‍स द्वारा प्रकाशित इस किताब की लेखिका दीप्ति प्रिया महरोत्रा है. अंग्रेजी की यह किताब शर्मिला के साथ-साथ मणिपुर के सांस्‍कृति और वहां के प्रतिरोधी को भी टटोलती है.
इस कार्यक्रम में अगाथा संगमा के अलावा बाब्‍लू लोयतोंगबम, डायरेक्‍टर ह्यूमन रायट्स एलर्ट, बिनालक्ष्‍मी नेप्रम, सेक्रेटरी जेनरल कंट्रोल ऑफ आर्म्‍ड फाउंडेशन ऑफ इंडिया और जीवन रेड्डी कमेटी के सदस्‍य संजय हजारिका आदि उपस्थित थे. इस कार्यक्रम की मुख्‍य अतिथि अगाथा संगमा ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यह मेरे लिए बहुत ही महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम है. शर्मिला पर लिखी यह किताब पूरे मणिपुर का चेहरा है, जो वहां की जिंदगी को दर्शाता है. उन्‍होंने कहा कि मैं इस मुद्दे पर हर संभव प्रयास कर रही हूं और करती ररूंगी. उल्‍लेखनी है अगाथा पिछले 3 महीने पहले इंफाल में एनसीपी के स्‍थापना दिवस पर गई हुई थी. उस दरमियान वह शर्मिला से मिली और वहां की जनता से वादा किया कि इस काला एक्‍ट को हटाने में हर संभव प्रयास करूंगी. वहां से लौटकर इस मुद्दे पर उन्‍होंने प्रधानमंत्री से भी बात की. इससे वहां के लोगों में आशा का संचार हुआ. लगा कि यह एक्‍ट अब हट जायेगा. कई सालों से इस मामले को लेकर पूछने वाला कोई नेता हो या शासक वर्ग नहीं था.
कार्यक्रम में इस किताब की लेखिका दीप्ति ने शर्मिला के बारे में बताया. जब शर्मिला 2007 में दिल्‍ली आई हुई थी, तब राममनोहर लोहिया अस्‍पताल में वह उनसे जाकर मिली थी. उनका हाल देख कर वह इतना विचलित हुई कि वे साख्‍ता गुस्‍से में उनके मुंह से निकला कि मैं आप पर किताब लिखूंगी. उससे पहले उन्‍होंने अपने इस निर्णय के बारे में पता नहीं था. लेखिका ने मणिपुर की इमाओं (मशाल लेकर प्रदर्शन करती मणिपुर की महिलाएं) की संघर्षपूर्ण कहानी और शर्मिला की तस्‍वीर, उसकी परिवार की तस्‍वीर भी इस कार्यक्रम में एक पावर प्रेजेंटेशन के द्वारा दिखाया.
बाब्‍लू लोयतोंगबम, डायरेक्‍टर ह्यूमन राइट्स एलर्ट ने शर्मिला की संघर्षपूर्ण कहानी भी श्रोताओं के सामने रखी. शर्मिला 2000 के 2 नवंबर से भूख हडताल पर बैठी है. शुरूआती दौर में उनको आत्‍महत्‍या के आरोप में पकडा गया और जेल में धारा 309 लगा कर डाल दिया गया था. उस घटना के चश्‍मदीद बाब्‍लू ने जब इस घटना के बारे में लोगों को बताया, तो पूरे हॉल में सन्‍नाटा छा गया. सभी लोग इस बर्बरपूर्ण कार्रवाई के बारे में सुन कर सकते के हालत में आ गए. बिनालक्ष्‍मी नेप्रम, सेक्रेटरी जेनरल कंट्रोल ऑफ आर्म्‍ड फाउंडेशन ऑफ इंडिया एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ एक मणिपुरी बाला है, जो शर्मिला के बहुत करीब रही है और मणिपुरियों के लिए संघर्ष करती शर्मिला की त्रासदी को शिद्दत से महसूस किया है. शर्मिला और मणिपुरी किन-किन यातनाओं से गुजरे और गुजर रहे हैं, इससे उन्‍होंने दर्दपूर्ण रूप से सभा को रू-ब-रू करवाए. उन्‍होंने कहा कि यह एक्‍ट (अफसपा) मानवता के विरोधी है, जो अमन पसंद लोगों की शांति को भंग करता है.
जीवन रेड्डी कमेटी के सदस्‍य संजय हजारिका ने कहा कि यह एक्‍ट हटना ही चाहिए, क्‍योंकि वहां के हर आदमी, हर संगठन इस एक्‍ट को रीपिल करने की राय देते रहे हैं. यह आवाम की आवाज है. आगे कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने भी अपनी भागीदारी निभाई.


लेखक के साथ शर्मिला इरोम

यह किताब मणिपुरियों की आवाज बन चुकी शर्मिला इरोम की संघर्ष गाथा की जीवंत दस्‍तावेज है. गांधीवादी तरीके से अपने संघर्ष को आगे बढा रही शर्मिला के कुछ दुलर्भ तस्‍वीर भी इस पुस्‍तक में दिए गए है और यह बताया गया है कि कैसे अफसपा मणिपुरियों के लिए एक काला कानून है, जिसे जबरन उनपर थोप दिया गया है और इसे हटाया जाना चाहिए. नहीं तो मणिपुर के इस कानून का आड लेकर सुरक्षा प्रहरियों द्वारा किए जा रहे अत्‍याचार के खिलाफ एक बडा मुहिम खडा हो सकता है. इतना ही नहीं लेखिका का यह भी मानना है कि यदि जल्‍दी ही इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया, तो मणिपुर अलगाव की राह पर भी जा सकता है. इस काले कानून की आड लेकर अलगाववादी तत्‍व मणिपुर की भोली जनता को भडका कर सरकार के खिलाफ कर सकते हैं, जो संघीय भारत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. लेखिका का यह सार्थक प्रयास है कि पूर्वोत्‍तर की एक साधारण महिला पर उसने प्रेम किया और उसको किताब के रूप में पेश किया.

दीप्ति प्रिया महरोत्रा

दीप्ति प्रिया महरोत्रा दिल्‍ली में अपनी बेटी के साथ रहती है. उन्‍होंने दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में राजनीतिक शास्‍त्र पर पीएचडी की. साथ ही उन्होंने इस पर स्वतंत्र अनुसंधान भी की, जिसके लिए भारत फाउंडेशन, मैकआर्थर फाउंडेशन और भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद द्वारा फैलोशिप से नवाजा गया.
इसके अलावा नारीवादी विचारों सहित उनकी दिलचस्पी शिक्षा, रंगमंच, जन-आंदोलन में भी काफी है. उन्‍होंने कई सामाजिक संगठनों में कार्य और रिसर्च भी किया. फिलहाल वे दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के श्रीराम कॉलेज में अध्‍यापिका हैं. वे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में लिखती रही हैं. उनकी तीन किताबें गुलाब बाई –द क्विन ऑफ नाटंकी थिएटर, होम ट्रूट्स – स्‍टोरिस ऑफ सिंग्‍ल मडर्स एंड वेस्‍टर्न फिलोसफी और इंडियन फेमिनिज्‍म –फ्रोम प्‍लेटोस एकेडमी टू द स्‍ट्रीट्स ऑफ दिल्‍ली पेंग्विन बुक्‍स द्वारा प्रकाशित भी हो चुकी हैं.

1 comment:

अफ़लातून said...

शर्मिला के ऐतिहासिक संघर्ष को सलाम । दीप्तिजी को हर्दिक साधुवाद ।