यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, January 14, 2010

अब खिलाड़ी नहीं रहेंगे भिखाड़ी



भारत में खिलाड़ियों की उपेक्षा कोई नई बात नहीं है. जो खिलाड़ी अपने खेल जीवन में बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं और देश को सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाते हैं, एक व़क्त ऐसा आता है जब वे खिलाड़ी गुमनामी के अंधेरे में जीने को मजबूर हो जाते हैं. खेलों से संन्यास लेने के बाद रोज़गार के अभाव में इन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं. लेकिन भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर ने खिलाड़ियों की इसी समस्या को दूर करने की शुरुआत की है. इसे खिलाड़ियों की हालत सुधारने की दिशा में एक अहम क़दम माना जा रहा है. मणिपुर के मुख्यमंत्री ओ इबोबी सिंह ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख़िताब जीतने वाले 109 खिलाड़ियों को नौकरी देने का ़फैसला किया है. अपने इसी ़फैसले के तहत गत 30 दिसंबर को नेशनल स्पोर्ट्‌स एकेडमी स्कूल का उद्‌घाटन करने के दौरान मुख्यमंत्री ने खिलाड़ियों को नियुक्ति पत्र सौंपा. इन खिलाड़ियों को शिक्षा, गृह और युवा एवं खेल मामले के विभागों में नौकरी दी गई. इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि मणिपुर ने स्पोर्ट्‌स और कल्चर को हमेशा से तरजीह दी है और यह बाक़ी राज्यों के लिए यह एक मिसाल है. नौकरी पाने वाले खिलाड़ियों में अधिकतर महिला खिलाड़ी हैं. गौरतलब है कि राज्य के हर विभाग में नौकरी का पांच ़फीसदी कोटा खिलाड़ियों के लिए आरक्षित
रहता है.
यह ध्यान देने वाली बात है कि कोई खिलाड़ी पूरी ज़िंदगी भर नहीं खेलता है. उनकी खेल आयु बहुत ही छोटी होती है. ऐेसे में उन्हें हमेशा भविष्य की असुरक्षा का एहसास होता रहता है. सरकार न तो उनकी और न ही उनके परिवार की कोई खोज ख़बर लेती है. ऐसे में भारत की सेवन सिस्टर राज्यों में एक मणिपुर से दूसरे राज्यों को सीख लेने की ज़रूरत है, जिसने अपने खिलाड़ियों को राज्य सरकार में नौकरी देकर देश का सम्मान बढ़ाने वालोंें की कद्र की है. ऐसे फैसलों से ही लोग खेल को अपना करियर बनाने को प्रेरित होंगे और बे़िफक्र होकर अपनी खेल प्रतिभा को निखार सकेंगे.

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