यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Saturday, March 13, 2010

नगा समस्‍या हल की ओर



ऐसा प्रतीत होता है कि एनएससीएन (आईएम)के जरिए नगाओं के साथ हो रही सरकार की बातचीत अंतिम चरण में है. अब दोनों पक्ष एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझ पा रहे हैं. प्रधानमंत्री व गृहमंत्री से मुलाकात करने के बाद श्री मुइवा अब नए वार्ताकार आरएस पांडे से बातचीत कर रहे हैं. श्री पांडे नगालैंड कैडर के हाल ही में सेवानिवृत्‍त हुए आईएएस अधिकारी हैं. उनसे पहले के पद्मनाभन ने मुइवा एवं इसाक स्‍वू के साथ कई दौरों की बातचीत करके धैर्यपूर्वक एक अधिकार तैयार किया था जिसके आधार पर अब समझौता होने के कगार पर है.
सरकार ने नगाओं के अनूठे इतिहास को स्‍वीकार तभी जाकर विश्‍वास की बुनियाद पडी और आगे बातचीत में प्रगति हो सकी. एनएससीएन (आईएम) की दो प्राथमिक मांगें थीं संप्रभुता और नगालिम यानी भारत के सभी नगा क्षेत्रों का एकीकरण (और म्‍यांमार में पूर्वी नगालैंड). समय के साथ सरकार एनएससीएन आईएम को थोडा बहुत यह समझाने में कामयाब रही है कि भारत में राज्‍यों का जो ढांचा है वह सरकारी संघवाद का ढांचा है जिसमें एक गणतंत्र के अंतर्गत सभी राज्‍यों की सहयोगी संप्रभुता बरकरार है. फिर भी इससे आगे जाकर सरकार ने यह स्‍वीकार किया है कि संविधान के मौजूदा ढांचे में अतिरिक्‍त व्‍यवस्‍था करके नगाओं की अनूठी पहचान को एक अलग मान्‍यता दी जाएगी.
एनएससीएन आईएम से यह पूछा गया है कि भारतीय संविधान का कौन सा हिस्‍सा वे अपनी इच्‍छा से अपनाने को तैयार हैं तथा कौन से अतिरिक्‍त अध्‍याय वे विशेष नगा संविधान के तहत लिखना चाहते हैं जिन्‍हें भारतीय संविधान में एक अलग अध्‍याय के तौर पर जोडा जा सके. संभव है कि आलोचक इस मुद्दे पर चीख पुकार मचाने लगे लेकिन अगर वे गौर से देखें तो पाएंगे कि भारतीय संविधान में कई छोटे छोटे संविधान या विशेष व्‍यवस्‍थाएं की गई हैं. इनका ब्‍यौरा अनुच्‍छेद 370, 371 और 371 ए (नगालैंड के संदर्भ में) से लेकर 371 आई तथा पांचवीं व छठी अनुसूची में दिया गया है. यह ब्‍यौरा अनुसूचित जाति व जनजाति अन्‍य पिछडा वर्ग, धार्मिक व भाषाई अल्‍पसंख्‍यकों हेतु विशेष सकारात्‍मक कार्रवाई तक फैला हुआ है. ये सभी सूक्ष्‍म बदलाव हमारे संवैधानिक व सामाजिक परिद्श्‍य का हस्‍सा हैं. ये सभी इस तरह हमारे संविधान में भलीभांति समा गए हैं कि हम अकसर इनके अस्तित्‍व को पहचान भी नहीं पाते.
इनमें से कुछ को राज्‍यसूची में स्‍थानांतरित करके किया गया है जो कि संविधान संशोधन के द्वारा अब सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में शामिल है. यह कोई समस्‍या मूलक बात नहीं है क्‍योंकि इनमें से कुछ को मौजूदा अनुच्‍छेद 371 ए में सीमित हद तक शामिल कर लिया गया है. अब भी अनुच्‍छेद 258 के जरिए हस्‍तांतरण परिवर्तन संभव है जिसके तहत केंद्र को ऐसा मसला सौंपने का अधिकार है जिसके माध्‍यम से संघ की कार्यपालिका की शक्ति का विस्‍तार होता हो. भारतीय संविधान की उदार समायोजन क्षमता के चलते इनमें से कोई भी राष्‍ट्र की एकता व अखंडता को प्रभावित नहीं करेगा. चाहे जो भी दावा किया जाए पर नगा मामला सबसे अनूठा है.
इसके अलावा नगालिम का मुद्दा भी कोई दुसाध्‍य नहीं है. जैसा कि कभी कभी नगालिम की कल्पित सीमाएं खींची जाती हैं उनका बहुत थोडा ही ऐतिहासिक आधार है क्‍योंकि पूर्वोत्‍तर के अपने बाकी बंधुओं की ही तरह नगा भी प्रवासी रहे हैं और संभवत: अब भी हैं. उदाहरण के लिए दीमापुर इस इलाके का सबसे बेशकीमती क्षेत्र है जो पहले दिमसा साम्राज्‍य की राधानी हुआ करता था. अब यह एक प्रमुख नगा शहर और यह ऐसा ही रहेगा चाहे दिमसा कुछ भी दावा करें क्‍योंकि इतिहास बदला नहीं जा सकता. इसी प्रकार भारत की सबसे पुरानी रियासतों में से एक मणिपुर को बांटा नहीं जा सकता. असम से कछार को तथा अरुणाचल प्रदेश से तिरिप व चांगलांग को काट कर अलग नहीं किया जा सकता.
इस समस्‍या का हल क्षेत्रीय पुनर्गठन से नहीं हो पाएगा तथा इसका पुरजोर विरोध होगा; बल्कि इन बाकी नगा बहुल क्षेत्रों को एक गैर प्रादेशिक इकाई में एक साथ आने से ही हल होगा. इस तरह सारे नगा लोग आर्थिक सामाजिक एवं सांस्‍कृतिक विकास के लिए, मौजूदा प्रशासनिक न्‍यायालय की अवमानना किए वगैर एकत्रित हो पांगे. इसका उदाहरण हितेश्‍वर साइकिया द्वारा बनाई गई मौजूदा शीर्ष परिषदों में देखा जा सकता है जिनमें असम के विस्‍तृत क्षेत्र में दूर दूर बसी छोटी छोटी जनजातियों जैसे तिवास, रभास और मिशिंग को शामिल करके उनके हितों का ख्‍याल रखा जा रहा है. शीर्ष परिषदों द्वारा एक कार्यकारी निकाय चुना जाता है. यह निकाय न्‍यासगत बजट के प्रशासक के तौर पर काम करता है तथा स्‍थानांतरित विषयों पर अपने खास लोगों के माध्‍यम से योजना बनाता है.
एक गैर प्रादेशिक नगा पीपुलहुड अस, अरुणाचल, मणिपुर के नगा इलाकोंे में आर्थिक व सामाजिक विकास हेतु साझे कार्यक्रम चला कर नगा लोगों को सशक्‍त कर सकता है. ऐसा करने के लिए विभिन्‍न प्रशासनिक तरीके मौजूद हैं. मूल राज्‍य अपने प्रदेश की सीमाओं के भीतर ऐसी इकाइयों को सशक्‍त कर सकता है. राजनीतिक स्‍तर पर सर्वर नगा हो हो राज्‍य ने सीमाओं के बाहर ही नहीं बल्कि अंतरराष्‍ट्रीय सीमाओं के रूप में भी कार्य किया है.
कल्‍पनाशक्ति व रचनात्‍मकता से समाधान निकाले जा सकते हैं. कुछ ऐसे समाधान पहले ही उपलब्‍ध हैं बाकी संविधान में संशोधन करके हासिल किए जा सकते हैं. के ग्रुप ने संप्रभुता का मुद्दा त्‍याग देने के लिए आईएम ग्रुप की निंदा की है. ये सौदेबाजी के तरीके हैं. हां यह बहुत जरूरी है कि सभी किस्‍म के नगा विचारधाराओं के लोगों को एक मंच पर लाया जाए यानी आईएम, के तथा फिजो द्वारा स्‍थापित नगा राष्‍ट्रीय परिषद के दोनों धडों को भी. समग्र समाधान हेतु यह आवश्‍यक है. श्री मुइवा मणिपुर के एक तांगखुल नगा हैं और श्री खापलांग बर्मा के एक हेमि नगा हैं, इन बातों से कोई फर्क नहीं पडता.
मंजिल तक पहुंचने के लिए यह जरूरी है कि सफर तय किया जाय. नगर व भारतीय शीर्ष नेतृत्‍व को चाहिए कि वह अपने पूर्वाग्रह त्‍यागे और नए अवसरों को गले लगाए. नगा संघष्‍र्ज्ञ का अंत एक मलहम का काम करेगा और इससे यह संदेश जाएगा कि वैरभाव व कटुता से शांति और प्रगति कहीं भी, कभी भी हासिल नहीं की जा सकती.

वी जी वर्गीज
लेखक द इंडियन एक्‍सप्रेस के पूर्व संपादक हैं
साभार : नई दुनिया (13 मार्च 2010)

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