अगाथा
संगमा की गाथा संग मा नहीं, संग पा है. राजनीति के खिलाड़ी बोल रह रहे हैं कि
अगाथा के पास माथा नहीं है. अगर माथा होता तो राष्ट्रपति चुनाव में जन्म से हारे
हुए अपने पिता पीए संगमा के पीए की तरह आगे-पीछे नहीं होती. उन्होंने अपने पिता
के साथ अपना पूरा पता जोडने की खता की और देश विदेश को बता दिया कि उन जैसी समर्पित
सुपुत्री संसार में दूसरी नहीं जो पिता की आंख बंद महत्वाकांक्षा के आगे अपना
वर्तमान और भविष्य दोनों एक साथ भेंट कर देती हैं. मैं राजनीति के खिलाडी की तरह
नहीं सोचता. अगाथा संगमा से अधिक कसूरवार मैं उनके आरदणीय पिता पीए संगमा को मानता
हूं. राष्ट्रपति चुनाव में खडे होने के पूर्व मैं संगमा साहब की कद्र करता था.
मैंने उन्हें कभी एक जनजातीय नेता या एक ईसाई नहीं माना. वे भद्र पुरुष हैं या नहीं,
मैं नहीं जानता. उन्हें मैंने अखबार या टीवी में ही देखा है. मैं उन्हें भला
आदमी मानता रहा हूं. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव बुद्धि से नहीं लडा. वे राजनीति
के अपरिचित खिलाडी नहीं है. उन्होंने कैसे सोच लिया कि वे जी जाएंगे. यदि उन्हें
मालूम था कि वे जीतने के लिए नहीं, लडने के लिए खडे हो रहे हैं तो उन्हें अपनी
बेटी अगाथा संगमा के वर्तमान और भविष्य से नहीं खेलना चाहिए था. जब अगाथा उनकी
विवेकहीन जिद को देख कर भावुक हुईं तो उन्हें एक सुयोग्य पिता की तरह अपनी बेटी
को समझाना चाहिए था डांटना और कहना चाहिए था कि वे अपनी राजनीतिक जिंदगी की उंचाई
देख जी चुके हैं और तुम्हें तो अपनी राजनीतिक गाथा लिखनी है. उन्होंने एक स्वार्थी
राजनीतिज्ञ की तरह सिर्फ अपना खयाल रखा. वे अपने स्वार्थ में अपनी बेटी अगाथा
संगमा के राजनीतिक वर्तमान भविष्य तक को भुला गए. इससे देश में एक राजनीतिक संदेश
यह भी गया कि जो पिता अपने निहित स्वार्थ में अपनी बेटी के वर्तमान भविष्य का ख्याल
नहीं रखेगा, वह राष्ट्रपति बन कर देश का ख्याल क्या रखेगा.
अगाथा
संगमा बेकसूर हैं- ऐसा नहीं. उन्हें यह याद रखना चाहिए था कि राजनीति में
सिद्धांत शून्य हो गया है, आदर्श का अंत हो गया है किंतु यह नहीं हो सकता कि एक राष्ट्रवादी
कांग्रेसी सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री का आवास राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी
समर्थित प्रत्याशी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी का चुनाव कार्यालय हो जाए. वैसे
अपने स्वार्थ में अंधे पिता पीए संगमा को इस पर ध्यान देना चाहिए था कि वे अपनी
बेटी के राजनीतिक पांव पर कुल्हाडी नहीं मारें.
अगाथा
अपरिपक्व हैं. वे एक परिपक्व राजनीतिज्ञ होतीं तो वे अपने पिता की रार्ष्टपति
की उम्मीदवारी को लेकर इतनी भावुक नहीं होतीं. उनके भाई कोनार्ड के संगमा कहां
भावुक हुए. कोनार्ड भी पीए संगमा के सुपुत्र हैं और मेघालय में विरोधी दल के नेता
भी. उन्होंने निर्वाचित राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को बधाई भी दी. उन्होंने अपने
राजनीतिक वर्तमान भविष्य पर कोई आंच नहीं आने दी.
अगाथा संगमा को सर्वदा स्मरण रखना चाहिए कि अत्यधिक भावुकता राजनीति और जीवन दोनों में हानिकारक है. यह तथ्य है कि पुरुष की अपेक्षा स्त्री अधिक भावुक होती हैं. भावुकता राजनीति की सौत नहीं, तो सहेली भी नहीं. अगाथा की राजनीतिक गाथा तूरा से निकली है और दिल्ली की यमुना तक पहुंची है. उनमें प्रधानमंत्री बनने की क्षमता भी दिखलाई देती है. यह और बात है कि उनके पिता जवाहरलाल नेहरू या राजीव गांधी नहीं है. उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है. उन्हें बहुत आगे जाना है. बस भावुकता पर नियंतत्रण रखने की जरूरत है. राजनीति भावना पथ की राही नहीं है.
अगाथा संगमा को सर्वदा स्मरण रखना चाहिए कि अत्यधिक भावुकता राजनीति और जीवन दोनों में हानिकारक है. यह तथ्य है कि पुरुष की अपेक्षा स्त्री अधिक भावुक होती हैं. भावुकता राजनीति की सौत नहीं, तो सहेली भी नहीं. अगाथा की राजनीतिक गाथा तूरा से निकली है और दिल्ली की यमुना तक पहुंची है. उनमें प्रधानमंत्री बनने की क्षमता भी दिखलाई देती है. यह और बात है कि उनके पिता जवाहरलाल नेहरू या राजीव गांधी नहीं है. उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है. उन्हें बहुत आगे जाना है. बस भावुकता पर नियंतत्रण रखने की जरूरत है. राजनीति भावना पथ की राही नहीं है.
-रत्नेश कुमार
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