मनमोहन
सिंह खुद को असम का बेटा मानते हैं, लेकिन
असम में बाढ़ से निपटने के लिए न तो आज तक कोई दीर्घकालीन योजनाएं बन सकी हैं और न
ही प्रभावित लोगों के लिए भोजन, पेयजल
एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की कोई व्यवस्था है. लोग खुले आसमान के नीचे जीवन गुजारने
को मजबूर हैं, लेकिन पीएम को कोई फर्क नहीं प़डता, क्योंकि वे गरीबों और बेसहारा लोगों के
लिए पीएम नहीं बने हैं, वे तो अमीरों के लिए पीएम बने हैं!
असम
इन दिनों बाढ़ की चपेट में है. ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर ख़तरे के निशान के ऊपर
पहुंच गया है, इसलिए उसमें सभी तरह की नावों का
परिचालन पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है. क़रीब 250 गांव बाढ़ की चपेट में हैं. राज्य के नौ ज़िलों, धेमाजी, गोलाघाट, जोरहाट, कामरूप, करीमगंज, लखीमपुर, मोरिगांव, शिवसागर एवं तिनसुकिया में क़रीब 75,000 लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. 5,000 हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न है. अनाज
के साथ-साथ साग-सब्जी भी बाढ़ की शिकार हो गई है. छोटे-बड़े 30,000 से ज़्यादा जानवर बाढ़ के पानी में बह
गए हैं. मोरिगांव जिले के जेंगपुरी इलाके में एक 12 वर्षीय किशोर की मौत हो जाने की ख़बर है. लमदिंग-बडरपुर रेलवे डिवीजन
बाढ़ से प्रभावित होने के कारण वहां सामान लाना-ले जाना संभव नहीं है. इसलिए आवश्यक
वस्तुओं की आपूर्ति सही समय पर न होने से उनकी क़ीमतें आसमान छू रही हैं. स्थिति की
गंभीरता को देखते हुए इन ज़िलों में धारा 144
लागू कर दी गई है.
असम
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र है और वह स्वयं को असम का बेटा
मानते हैं. देश में कहीं बा़ढ, तो
कहीं सूखा, तो कहीं भयंकर आपदा से लोग परेशान हैं, लेकिन सच पूछिए तो इससे सरकार और सरकार
के नुमाइंदे प्रधानमंत्री को कोई फर्क नहीं प़डता, जबकि प्रधानमंत्री को यह समझना चाहिए कि सिर्फ हवाई सर्वे कर लेने से
प्रभावित लोगों की पी़डा दूर नहीं हो सकती. प्रधानमंत्री खुद आपदा प्राधिकरण के
अध्यक्ष हैं, लेकिन उत्तराखंड की आपदा हो या असम में
बा़ढ की मार, यानी हर स्तर पर यह सरकार कुछ नहीं कर
पाई. आपदा और आपदा के बाद की बदइंतजामी लोगों ने अपनी आंखों से देखी. लोगोें ने यह
भी देखा कि सरकार और सरकार के उच्चस्थ पदों पर बैठे लोग कैसे घटनास्थल पर जाकर
लाशों के साथ राजनीति करते रहे. सरकार घटनास्थल पर राहत एवं बचाव कार्य तेज करने, खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति, आपदा के बाद लाशों के स़डने के कारण
महामारी न फैले, इसे रोकने के बदले हर जगह भाषणबाजी और
बयानबाजी से ही काम चलाती रही. ऐसे सरकार के होने और न होने से क्या फायदा. आखिर
मनमोहन सिंह कैसे कह सकते हैं कि उन्हें असम की चिंता है. वह किस हक के साथ कह
सकते हैं कि वह असम के बेटे हैं?
असम
में हर साल बाढ़ से करोड़ों रुपये का नुक़सान होता है, लेकिन राज्य एवं केंद्र सरकार ने आज तक कोई ठोस क़दम नहीं उठाए. बाढ़
से निपटने के लिए कोई दीर्घकालीन योजना भी नहीं बन सकी. राज्य सरकार की ओर से अब
तक कोई राहत न मिलने के कारण बाढ़ पीड़ित खुले आसमान के नीचे दिन काट रहे हैं. बाढ़
में अपना घर-गृहस्थी गंवाने वाले लोग भोजन, पेयजल
एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से भी परेशान हैं.
पड़ोसी
राज्य मेघालय, अरुणाचल प्रदेश एवं नगालैंड में भी
मूसलाधार बारिश के कारण ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है. यदि समय
रहते ठोस क़दम न उठाए गए, तो शहरों में भी बाढ़ का पानी प्रवेश कर
सकता है. गुवाहाटी में बाढ़ का पानी प्रवेश भी कर गया है. सबसे ज़्यादा बदतर स्थिति
धेमाजी की है. जोरहाट के निमातीघाट एवं गोलाघाट के नुमलीगढ़ में ब्रह्मपुत्र और
धनश्री नदी का पानी ख़तरे के निशान से ऊपर बह रहा है, इसलिए ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसे 150 से अधिक परिवार घर छोड़कर चले गए हैं. बाढ़ की चपेट में आए 9 ज़िलों के 16 राजस्व क्षेत्रों के लोग काफी
प्रभावित हुए हैं. कई इलाकों में सड़कों, पुलों
एवं तटबंधों को काफी क्षति पहुंची है. इसके चलते राज्य के कई संपर्क मार्ग बंद पड़े
हैं.
केंद्रीय
मौसम विज्ञान विभाग की चेतावनी के बाद राज्य सरकार ने शोणितपुर, लखीमपुर, गोलाघाट एवं बरपेटा में रेड अलर्ट जारी कर दिया है. मौसम विज्ञान
विभाग के अनुसार, इन ज़िलों में अगले कुछ दिनों तक 488 मिलीमीटर तक मूसलाधार बारिश होने की
संभावना है. मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने बीते 3
जुलाई को खानापाड़ा स्थित अपने सरकारी आवास पर एक आपात बैठक बुलाई, जिसमें जल संसाधन मंत्री राजीव लोचन
पेगु, मुख्य सचिव पी पी वर्मा समेत जल संसाधन, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, वित्त, लोक निर्माण विभाग के आला अधिकारी मौजूद थे. बैठक में राज्य में बाढ़
और भू-कटाव की स्थिति पर भी चर्चा की गई. ग़ौरतलब है कि निमातीघाट, मोरिगांव, लखीमपुर, ढेकुवाखाना एवं बरपेटा की बेकी नदी में भू-कटाव लगातार जारी है.
धेमाजी के ज़िला कार्यक्रम अधिकारी (आपदा प्रबंधन) के लुहित गोगोई ने बताया कि ज़िले
में पांच राहत शिविर खोले गए हैं, जिनमें
850 लोगों को आश्रय दिया गया है.
उधर, गोलाघाट ज़िले में काजीरंगा नेशनल पार्क
के पास एक हाथी एवं एक हिरण के भी मारे जाने की ख़बर है. एक सींग के लिए प्रसिद्ध
अपर असम का काजीरंगा नेशनल पार्क और लोवर असम की पोविटोरा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी भी
बाढ़ की चपेट में है. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 430 स्न्वॉयर किलोमीटर इलाके में फैले
काजीरंगा नेशनल पार्क का 70
प्रतिशत और 38.80 स्न्वॉयर किलोमीटर इलाके में फैली
पोविटोरा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का 60 प्रतिशत
से अधिक हिस्सा बाढ़ की चपेट में है. यहां के वन्यजीव ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए
हैं. ये दोनों पार्क पिछले कई सालों से बाढ़ की मार झेल रहे हैं. ग़ौरतलब है कि 1988, 1998, 2004 एवं 2008 में भी यहां भीषण बाढ़ आ चुकी है, जिनमें
कई लोगों की जानें चली गईं और काफी लोग बेघर हो गए थे. बाढ़ के चलते काजीरंगा नेशनल
पार्क में 1988 में 1203 और 1998 में 652 जानवरों की मौत हो चुकी है.
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