पलायन देश के हर हिस्से का एक मुद्दा है.
पूर्वोत्तर के राज्यों में मज़दूरों की कमी है, साथ ही
प्रशिक्षित पेशेवरों की भी, जैसे डॉक्टर, इंजीनियर,
सीए
आदि. ऐसे में इनर लाइन परमिट (आईएलपी) अल्प विकसित पूर्वोत्तर के विकास में बाधा
साबित होगा. अवैध पलायन (बांग्लादेश, नेपाल एवं बर्मा से आने वालों को)
बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स के जरिए रोका जा सकता है और उसके लिए इनर लाइन परमिट की
ज़रूरत नहीं है. अगर मणिपुर में इनर लाइन परमिट लागू हुआ, तो कल त्रिपुरा,
असम
एवं मेघालय में भी इसकी मांग उठेगी और उससे देश की एकता एवं अखंडता प्रभावित होगी.
बीते साल 13 जुलाई को राज्य
विधानसभा में इनर लाइन परमिट लाने का निर्णय लेने के बाद भी उसके कार्यान्वित न
होने की वजह से ज्वाइंट कमेटी ऑफ इनर लाइन परमिट सिस्टम ने कई क़दम उठाने शुरू कर
दिए हैं. एक जून से मणिपुर में बाहरी लोगों का आना रोकना और उन्हें वापस भेजना
शुरू कर दिया गया है. नेशनल हाइवे 39 पर गुवाहाटी से आ रही गाड़ियों को
सेकमाई एवं कंलातोंबी के बीच रोककर 60 बाहरी लोगों को वापस भेज दिया गया.
बाहरी लोगों को लेकर आने वाली गाड़ियों पर एक महीने की रोक लगाई गई है. मुख्यमंत्री
ओक्रम इबोबी ने तो आईएलपी को लेकर ज्वाइंट कमेटी को धमकी दी है. उन्होंने कहा कि
सरकार खुद इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है.
इनर लाइन परमिट क्या है?
इनर लाइन परमिट ब्रिटिश शासनकाल में बंगाल
ईस्टर्न फ्रंटियर रेगूलेशन, 1873 के तहत बनाया गया था. इसके अंतर्गत
नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश एवं मिजोरम आते हैं. इसके अनुसार, भारत
के किसी भी राज्य के नागरिक इन राज्यों पर बिना परमिट नहीं आ सकते. इनर लाइन परमिट
का उद्देश्य यह है कि एक विशेष रक्षा एवं शांति प्रक्रिया द्वारा प्रदेश के
आदिवासियों का अस्तित्व बचाना. यह परमिट राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है.
इसमें प्रावधान यह है कि बाहरी लोगों को यहां की ज़मीन नहीं बेची जा सकती और न ही
बाहरी लोगों से शादी ही की जा सकती है.
इनर लाइन परमिट की मांग कितनी सही?
अब तक मणिपुर में इनर लाइन परमिट इसलिए नहीं था,
क्योंकि
यहां आज़ादी के पहले राजा-महाराजाओं का शासन था, न कि ब्रिटिश
का. मणिपुर पूर्वोत्तर का एक छोटा राज्य है, जिसकी आबादी 25
लाख के आसपास है. 1961 से 2011 तक मणिपुर में
आए बाहरी लोगों, यानी पुरुषों, महिलाओं एवं
बच्चों की संख्या 7,04,488 हो गई है. यह कुल जनसंख्या का 30.71
प्रतिशत है. यह आंकड़ा 2011 की जनगणना के अनुसार है. बाहर से आने
वाले लोग दो तरह के हैं. एक तो भारत के दूसरे राज्यों, यानी बिहार,
उत्तर
प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान एवं गुजरात से आए लोग,
दूसरे
वे, जो नेपाल, बर्मा एवं बांग्लादेश के हैं. बहरहाल, हमें
मणिपुर में बाहर, यानी भारत के भीतर से आए बाहरी लोगों (मयांग)
के आने का कारण जानना होगा. पहला कारण है व्यवसाय. दूसरा, रेलवे लाइन
बिछाने के लिए मज़दूरों का आना. तिपाइमुख डैम का काम, बीआरटीएफ में
नेपालियों की भर्ती एवं दक्षिण भारतीयों का मणिपुर रायफल्स में शामिल होना आदि. यह
सही है कि इन्हीं कारणों से मणिपुर में बाहरी लोगों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन
सवाल यह है कि इन बाहरी लोगों की यहां के आर्थिक विकास में अहम भागीदारी है,
चाहे
वे मज़दूर हों या व्यवसायी. इंफाल का ख्वाइरम्बल बाज़ार बाहरी लोगों द्वारा चलाया
जाता है. यह सही है कि विदेशियों, जैसे बांग्लादेशी, नेपाली
एवं बर्मी लोगों की अवैध घुसपैठ रुकनी चाहिए, लेकिन अपने ही
देश के लोगों को मिले संवैधानिक अधिकार (देश के किसी भी हिस्से में आने-जाने,
व्यवसाय
करने की छूट) का हनन आख़िर किस आधार पर किया जा सकता है. क्या मणिपुर भी महाराष्ट्र
की तर्ज पर काम करना चाहता है, जहां लाखों उत्तर भारतीय मुंबई की
अर्थव्यवस्था की रीढ़ बने हुए हैं, लेकिन कुछ शरारती एवं राजनीतिक तत्व
उन्हें वहां से भगाने की बात करते हैं?
नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश
एवं मिजोरम में इनर लाइन परमिट चलता है, लेकिन इन तीनों राज्यों की स्थिति में
यह परमिट कोई बेहतरी नहीं कर सका. नगालैंड सबसे ज़्यादा मनमानी करता है. इनर लाइन
परमिट के चलते ही मणिपुर से नगालैंड जाकर बसे लोगों को नदी से मछलियां पकड़ने और
खेतों से साग-सब्जी तोेड़कर खाने पर जुर्माना देना पड़ता है. यही स्थिति मिजोरम की
है. वहां बाहरी लोग जब तक मजिस्टे्रट से डोमिसाइल, आईडी प्रूफ या
परमिट नहीं लेते, तब तक वे रह नहीं सकते. अरुणाचल प्रदेश में रबड़,
मोम,
हाथी
दांत और वन उत्पाद आदि लेता हुआ कोई बाहरी आदमी पकड़ा जाता है, तो
इस परमिट के प्रावधानों के अनुसार, राज्य सरकार की तरफ़ से उसे सजा भी हो
सकती है. मिजोरम अपने यहां आने वाले प्रत्येक बाहरी व्यक्ति से 120
रुपये लेता है. अगर समयावधि बढ़ानी है, तो 20 रुपये का फॉर्म
अलग से भरना पड़ता है.
सरकार बनाम ज्वाइंट एक्शन कमेटी
बीते 20 मई को
मुख्यमंत्री इबोबी ने कमेटी के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की, जिसमें
सरकार को कमेटी की ओर से सकारात्मक जवाब की अपेक्षा थी, लेकिन कमेटी ने
विरोध करते हुए धमकी दे डाली. सरकार की ओर से कहा गया कि अगर इनर लाइन परमिट लागू
हुआ, तो यह भारत को तोड़ने जैसा काम होगा, इसलिए कमेटी
अपने क़दम वापस ले, वरना सरकार चुप नहीं बैठेगी. कमेटी का जवाब था
कि मणिपुर और आदिवासियों को बचाने के लिए वह किसी से भी टकरा सकती है. पड़ोसी
राज्यों, यानी नगालैंड, मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश में इनर
लाइन परमिट लागू है, तो क्या उसमें भारत तोड़ने जैसी बात नहीं है. और
अगर यह परमिट वहां चल रहा है, तो मणिपुर में क्यों नहीं?
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