यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Tuesday, August 26, 2014

बदल सकता है पूर्वोत्तर का सियासी समीकरण

पश्‍चिम बंगाल, जिसे वामदलों का अभेद्य दुर्ग समझा जाता था, लेकिन वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने जीत हासिल कर इस मिथक को तोड़ दिया था. इस कामयाबी से उत्साहित तृणमूल कांग्रेस ने न सिर्फ बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, बल्कि उसे उम्मीद है कि बंगाल के जादू का असर पूर्वोत्तर में भी पड़ेगा.


कांग्रेस के गढ़ पूर्वोत्तर में कोई भी बड़ी राजनीतिक पार्टी आज तक अपनी जगह नहीं बना पाई है. पिछले साल दिसंबर 2013 को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिजोरम छोड़कर सभी राज्यों में सत्ता खोनी पड़ी. ऐसी स्थिति में भी बड़ी पार्टियां पूर्वोत्तर में अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर पाईं. चूंकि अब लोकसभा चुनाव के तारीख़ों का ऐलान हो गया है. ऐसे में हर राजनीतिक दल पूर्वोत्तर राज्यों में अपने उम्मीदवारों उतार रही हैं. तृणमूल कांग्रेस ने भी इन राज्यों में अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है. पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी को ऐसा लगता है कि पश्‍चिम बंगाल की तरह पूर्वोत्तर राज्यों में भी उनके सुशासन का फ़ायदा पार्टी को मिलेगा.

ग़ौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस ने त्रिपुरा से दो उम्मीदवारों भृगुराम रियांग और रतन चक्रवर्ती को क्रमशः पूर्वी त्रिपुरा और पश्‍चिम त्रिपुरा से उतारा है. तृणमूल कांग्रेस की मानें तो त्रिपुरा में वाम विरोधी मतदाताओं को कांग्रेस वर्षों से धोखा दे रही है. ऐसी स्थिति में तृणमूल कांग्रेस ही राज्य में वाम मोर्चे का विकल्प बन सकता है. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने त्रिपुरा की जनता को यकीन दिलाया है कि पार्टी की ओर से जनप्रिय और सक्षम उम्मीदवारों को खड़ा किया जाएगा, ताकि वे जनता की सेवा कर सकें. ग़ौरतलब है कि प्रदेश तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष रतन चक्रवर्ती पहले कांग्रेस में थे, लेकिन कांग्रेस की नीतियों से नाराज़ होकर उन्होंने ममता बनर्जी का साथ देने का ़फैसला लिया. उल्लेखनीय है कि त्रिपुरा प्रगतिशील ग्रामीण कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन था, लेकिन पिछले दिनों उम्मीदवारों के घोषणा के बाद यह गठबंधन टूट गया. राजनीतिक रूप से त्रिपुरा प्रगतिशील ग्रामीण कांग्रेस का राज्य में अच्छा ख़ासा जनाधार है. ऐसे में गठबंधन टूटने से तृणमूल कांग्रेस को राज्य के ग्रामीण इलाक़ों में नुक़सान हो सकता है. हालांकि, त्रिपुरा प्रगतिशील ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष सुबल भौमिक ने गठबंधन टूटने के बाद टीएमसी पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की राजनीति में कोई अंतर नहीं है. भौमिक ने आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र राज्य में वाम विरोधी फ्रंट बनाने के लिए उनकी ओर से ईमानदार पहल की गई थी, बावजूद इसके तृणमूल कांग्रेस ने मुझे नज़रअंदाज़ कर दिया. उनके मुताबिक, पश्‍चिम त्रिपुरा से वह बतौर निर्दलीय लड़ेंगे और पूर्वी त्रिपुरा सीट के लिए वह दूसरे दल से गठबंधन करेंगे.

बात अगर मणिपुर की राजनीति की करें, तो राज्य के भीतरी इला़के से सरांगथेम मनाउबी सिंह और बाहरी से कीम गांते है. मणिपुर से तृणमूल कांग्रेस का पुराना नाता रहा है. हालांकि, प्रदेश की सत्ता पर कई वर्षों से कांग्रेस का ही क़ब्ज़ा रहा है. इसके बावजूद  तृणमूल कांग्रेस की स्थिति यहां ठीक-ठाक कही जा सकती है. ममता बनर्जी जब मणिपुर आई थीं, तब उन्होंने आर्म्ड फोर्सेस स्पशेल पावर एक्ट को लेकर अनशन कर रही इरोम शर्मिला से भी मिली थीं. उन्होंने मणिपुर की जनता को भरोसा दिया था कि वह उनकी आवाज़ बुलंद करेगी. हालांकि अब देखना यह है कि सोलहवीं लोकसभा में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को पूर्वोत्तर के राज्यों में कितनी सफलता मिलती है.

बहरहाल, तृणमूल कांग्रेस आगामी लोगसभा चुनाव में एकला चलो की नीति पर चलते हुए पश्‍चिम बंगाल की सभी 42 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. पार्टी की ओर से मशहूर फुटबॉल खिलाडी बाइचुंग भूटिया और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी समेत 26 नए चेहरे को चुनावी मैदान में उतारा गया है. अभिषेक बनर्जी तृणमूल युवा कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. तृणमूल कांग्रेस ने जिन नए चेहरे पर दांव लगाया है, उनमें फिल्म अभिनेत्री मुनमुन सेन, बंगाली सिनेमा से जुड़े देव और गुजरे जमाने की अभिनेत्री संध्या रॉय भी शमिल हैं. सुचित्रा सेन की बेटी मुनमुन सेन बांकुड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगी, जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पौत्री सुगता बोस जादवपुर सीट से अपना किस्मत आजमाएंगी. वहीं ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी 24 दक्षिण परगना ज़िले के डायमंड हार्बर सीट से चुनाव लड़ेंगे. यहां दिलचस्प बात यह है कि सिक्किम के नामची निवासी बाइचुंग भूटिया दार्जिलिंग लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. फ़िलहाल यहां जसवंत सिंह भाजपा के सांसद हैं, जिन्हें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के समर्थन हासिल है.


ग़ौरतलब है कि बीती 25 फरवरी को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने असम में एक रैली को संबोधित किया था. राज्य में यह उनकी पहली रैली थी. ममता ने अपने संबोधन में यूपीए सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आज पूरा देश भ्रष्टाचार, महंगाई और अपराध से त्रस्त है, लेकिन मनमोहन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है. उनके मुताबिक़, तृणमूल कांग्रेस यूपीए और एनडीए को किसी भी क़ीमत पर अपना सर्मथन नहीं देगी. गुवाहाटी की सरुसजाई स्टेडियम में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जनता देशव्यापी भ्रष्टाचार, महंगाई और महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध से परेशान है, लेकिन यूपीए सरकार इस मामले में संवेदनहीन बनी हुई है. उनके मुताबिक़, पूर्वोत्तर से राज्यों से उनका काफ़ी पुराना नाता रहा है. इस मौ़के पर उन्होंने शंकरदेव अजान फ़कीर, डॉ. भूपेन हजारिका समेत कई महापुरुषों की प्रशंसा की. बहरहाल, पश्‍चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस तरह बंगाल की सत्ता पर चौंतीस वर्षों से क़ाबिज़ वाम दलों को चुनावी मैदान में पटखनी दी है, उससे पार्टी का मनोबल काफ़ी ऊंचा है. क्या ममता और उनकी पार्टी पूर्वोत्तर के राज्यों में यही दम-खम दिखा पाएंगी, यह लोकसभा चुनाव के नतीज़ों से ही साफ हो पाएगा.

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