यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Wednesday, May 21, 2008

दुआ

यह 2004 की बात है। उस समय मैं हिंदी विद्यापीठ देवघर में हिंदी पढ रहा था। मुझे हिंदी कविताओं से प्रभावित था। हिंदी साहित्य की प्रेरणा मेरे गुरुजी शंकर मोहन झा से खूब मिली थी। उन्होंने कई सुख्स्मा बातें बताई। कवि गोष्ठियों में ले जाया करते थे। मुझे याद है देवघर शिवगंगा स्थित पुस्तकालय में आयाजित एक काव्य गोष्ठी में वे मुझे ले जाते थे। गोष्ठी के दरमियान सर ने एक कविता का पाठ किया। कविता की लेखिका थी अमृता प्रीतम। उस कविता ने मुझे अमृता प्रीतम को परिचित करवाया। वह कविता है-
दोस्तो!
उदासियों का मौसम बहुत लंबा है
हमारा एक शायर है कई सालों से
जब भी कोई साल विदा होता है
तो कैद वामुशक्कत काट कर
कैद से रिहा होते साल को मिलता
पाले में ठिठुरते कंधों पर
उसका फटा हुआ खेस लिपटाता
उसे अलविदा कहता
वक्त के एक मोड पर उसे छोड आता है---
फिर किसी दरगाह पर अकेला बैठ कर
नए साल की दुआ करता है-
कि आने वाले!
खैर से आना खैरियत से आना!
यह उदासियों का मौसम बहुत लंबा है
वारूदी हवाएं चलती हैं
तो पेडों के नए पत्ते
पेडों से गिर जाते हैं
शाखाऒं की कोखा रोती है
पेड की की जडों को देखती
और कहती-
यह कैसी तकदीर है
जो एक मिट्टी के खून को
कई फिरकों में बांट देती है
नफरत रगों में चलती
तो सारी बद्दुआ मांओं की कोख को लगती---
मेरे खुदा! हमदर्दों ने एक खत लिखा था
अपने हाल हैवाल का
कि रोशनी रोज चुगलियां खाती है
और अंधेरा घरों की चटखनी खोल देता है
रोज नींद की छत टपकती है
वाहर चीखों का पानी बरसता है
तो उनका लिहाफ भीग जाता है---
वे हंडिया में दाल नहीं
खौफ पकाते हैं
और बेजायका सालन के लिए
किसी दुकान से नहीं मिलती---
लेकिन उनका यह खत कहीं नहीं पहुंच पाया
कि खत को सच का सिरनामां नहीं मिलता
दोस्तो! दुआ मांगो कि मौसम बदल जाए
पेडों की की उम्र पेडों को नसीब हो!
टहनियों के आंगन में
हरे पत्तों को जवानी की दुआ लगे
दोस्तो दुआ मांगो
कि बदनसीबों को मौसम बदल जाए
सूरज की किरण मस्तक की मित्र बने
तो वतन के कागज पर
अमन की तारीख लिखी जाती है
चांद की बत्ती राहों की मित्र बने
तो पैरों की सलामती
अंधेरे का मुकद्दर बदल देती है।
दुआ मांगो-
कि सूरज की किरण
इंसान के माथे से दोस्ती कर ले
और चांद की बत्ती
अंधेरे राह की गवाही दे!
दोस्तो वतन से बडी
कोई दरगाह नहीं होती
वतन वालो!
दिल का चिराग रोशन करो!
और एक कहीं हमारा जो शायर है
अकेला बैठ कर दुआ करता है
अपनी और उसकी दुआ की
कबूलियत मांगो।
कहते हैं-
इंसान के पेडों पर दुआओंका का छिट्टा दे दें
तो खुदा महक जाता है-
मुहब्बत ता चिराग रोशन करें
तो सब में खुदा दिखता है
हवाओं में खुदा महक जाए
तो बंदे की दुआ कबूल होती है---
- अमृता प्रीतम

1 comment:

Amit K Sagar said...

सबकुछ बहुत उम्दा. लिखते रहिये. और भी अच्छा लिखे, कामना करते हैं. शुभकामनायें.
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उल्टातीर: ultateer.blogspot.com