अपने बारे में बताने के लिए कुछ खास नहीं है. क्योंकि कोई खास काम अब तक किया नहीं. पढ कर सीख रहा हूं... सीख कर पढ रहा हूं... सिखने और समझने में लगा हूं. साधारण रहना पसंद करता हूं. दुनिया टेढी और लोग अवसरवादी है. इस माहौल में खुद को ढालना आसान नहीं है. स्थितियों का सामना करना और उससे सीखना जितना कष्टकर लगता है उतना ही आनंददायी भी. फिलहाल अखबारी दुनिया का ज्ञान हासिल कर रहा हूं. वैसे मैं ईमानदारी चाहता हूं, मगर मिलती नहीं है..अपने ऊपर भरोसा है..सो आसपास के माहौल से सिख रहा हूं...खुद को सुधार रहा हूं...
सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो सभी हैं भीड में, तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहां बदलती हैं तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो
यही है जिंदगी कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदें इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो.
एकाकी यात्री
बेसहारा हाथ को थामने कोई चाहिए
देश हुआ परदेश
अजनबी शहर में हम जहां हैं वह देश जैसा दिखाई देता है. पर है परदेश. सरकारी विज्ञप्तियां बताती हैं यह हमारा देश है. लेकिन आवाजों का संजाल कहीं न कहीं से कचोट कर हकीकत को सामने रख देता है. दुष्यंत होते तो कहते - हमको पता नहीं था हमे अब पता चला, इस मुल्क में हमारी हूकूमत नहीं रही. इसी परदेश और देश की संधि रेखा पर खडे होकर हम बात करेंगे. सीमाओं की जो हमने नहीं खींची. धरती पर आने के साथ हमें मिली हैं.
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