अपनों से मिलकर वे अपने आपको संभल नहीं पाई. उस पल की तस्वीरें हैं.

परदेश बीजिंग के खेल समर पर साहस के साथ उठाने वाला वह हाथ, जो साजिश के चलते उठा नहीं पाई, वह हाथ अपने जन्मस्थल मणिपुर में अपनों के सामने आंसू के साथ उठाती हुई मोनिका देवी.

अपनों का स्वागत स्वीकारती मोनिका देवी.

रोने के सिवाय क्या और उपाय है.

अपनों से गले लगा कर रोती मोनिका.
3 comments:
निश्चित ही राजनीति की शिकार इस खिलाडी का रूदन परेशान करने वाला है। बहुत से सवाल खडे होते है हमारे पिछड्ते जाने के।
दिल को हिलाकर रखने वाली तस्वीरें हैं यह, इसी गंदी राजनीति और अफ़सरशाही के कारण सारा देश परेशान है, इनसे मुक्ति पाना ज़रूरी है, लेकिन अलगाववाद इसका रास्ता नहीं हो सकता, कोई दूसरा उपाय खोजना होगा… मोनिका के साथ पूरे भारत के सच्चे लोगों की सहानुभूति है… मोनिका तुम एक बहादुर महिला हो, यह कोई अंत नहीं है आगे जहाँ और भी हैं… साहस बनाये रखो…
सुरेश जी से सहमत हूँ.
"आगे जंहा और भी है."
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