यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, September 8, 2011

मणिपुर और शर्मिला को अन्ना का इंतज़ार


अन्ना हजारे के आंदोलन ने संसद को हिला दिया. सरकार अन्ना की आवाज़ अनसुना नहीं कर पाई, उसने अन्ना की मांग को गंभीरता से लिया और उस पर अमल भी करना शुरू कर दिया. पूरे देश की जनता ने अन्ना का साथ दिया. दो सप्ताह तक पूरा देश अन्नामय रहा. दूसरी तऱफ इरोम शर्मिला चनु हैं, जो पिछले 11 वर्षों से अहिंसात्मक तरीक़े से आमरण अनशन कर रही हैं, सेना के विशेषाधिकार क़ानून को मणिपुर से हटवाने के लिए. इस क़ानून की आड़ में सेना जो चाहे कर सकती है. थांगजम मनोरमा इस बात का जीता-जागता उदाहरण है. आतंकवादियों से कथित संबंधों के आरोप में सुरक्षाबल के जवान उसे घर से उठाकर ले गए और सामूहिक बलात्कार करने और मौत के घाट उतारने के बाद अगले दिन उसकी लाश घर के पास फेंक गए. मनोरमा को सात गोलियां मारी गईं. मनोरमा जैसे कई और उदाहरण हैं, जिन्हें लोग सुनना और जानना नहीं चाहते. इस घिनौनी हरकत के विरोध में पेबम चितरंजन नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता ने आत्मदाह कर दिया. वर्ष 1958 में यह क़ानून इस उद्देश्य के साथ लागू किया गया था कि नगालैंड में सशस्त्र विद्रोह का सामना करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों को अधिक शक्तियां प्रदान की जा सकें. 1980 में यह क़ानून मणिपुर में भी लागू हो गया.
2 नवंबर, 2000 को असम रायफल्स के जवानों ने मणिपुर घाटी के मालोम क़स्बे में बस की प्रतीक्षा कर रहे दस निर्दोष नागरिकों को गोलियों से भून डाला. एक किशोर और एक बूढ़ी महिला को अपनी जान गंवानी पड़ी. हादसे की दर्दनाक तस्वीरें अगले दिन अख़बारों में छपीं. 28 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार एवं कवयित्री इरोम शर्मिला ने भी ये तस्वीरें देखीं. असम रायफल्स ने अपने बचाव में तर्क दिया कि आत्मरक्षा के प्रयास में क्रॉस फायर के दौरान ये नागरिक मारे गए, लेकिन आक्रोशित नागरिक स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग कर रहे थे. इसकी अनुमति नहीं दी गई, क्योंकि असम रायफल्स को अफसपा के तहत ओपन फायर के अधिकार हासिल थे. तभी से शर्मिला ने शपथ ली कि वह लोगों को इस क़ानून से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करेंगी. उनके सामने अनशन के अलावा और कोई चारा नहीं था. उन्होंने अपनी मां का आशीर्वाद लिया और 4 नवंबर, 2000 को अनशन शुरू कर दिया. एक दशक बीतने के बावजूद क़ानून यथावत लागू है और शर्मिला का अभियान भी जारी है.
मणिपुर वूमेन गन सरवाइवर्स नेटवर्क की संस्थापक महासचिव बीना लक्ष्मी नेप्रम कहती हैं कि अन्ना हजारे के आंदोलन को देखकर मणिपुर के हज़ारों युवाओं के दिल में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर शर्मिला के अहिंसात्मक आंदोलन को नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा है. मणिपुर में भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है. एक ओर देश की संसद लोगों को जीने का अधिकार देती है, मगर अफसपा (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट) लोगों का वह अधिकार छीन लेता है. अगर केंद्र सरकार वाकई पूर्वोत्तर के लोगों की चिंता करती है तो उसे यह क़ानून हटा लेना चाहिए. मणिपुर में प्रतिदिन तीन-चार आदमी सेना की गोली का शिकार बनते हैं. लोग कहते हैं कि हमें अन्ना पर गर्व है. इस देश को उनकी ज़रूरत है. अन्ना इंफाल आएं और शर्मिला के आंदोलन का समर्थन करें.
शर्मिला का आंदोलन 11 साल से जारी है, मगर आज तक राज्य और केंद्र सरकार ने कोई पहल नहीं की. शर्मिला की मांग पर चर्चा क्यों नहीं हो रही है. 2005 में जस्टिस जीवन रेड्डी कमेटी भी इस क़ानून को दोषपूर्ण बता चुकी है. फिर भी सरकार ने चुप्पी साध रखी है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या अनशन केवल उत्तर भारतीयों के लिए विरोध का हथियार है. अगर दो सप्ताह के अंदर ही सरकार और संसद अन्ना की मांग पर चर्चा करना ज़रूरी समझ लेती है तो उसे 11 सालों से अनशन कर रही शर्मिला की मांग ज़रूरी क्यों नहीं लगती? शर्मिला को बीते 30 अगस्त को एक मामले की सुनवाई के लिए अदालत आई थीं, तब उन्होंने कहा कि एक दिन मानवाधिकार हनन के ख़िला़फ मेरे संघर्ष और मांग को सरकार मान्यता देगी. उन्होंने कहा कि अन्ना मणिपुर आएं और यहां की स्थिति अपनी आंखों से देखें. शर्मिला के भाई सिंहजीत सिंह का कहना है कि सरकार शर्मिला की मांग को नहीं सुन रही है. शर्मिला आम लोगों की लड़ाई लड़ रही है. उसका अनशन अंतिम समय तक चलता रहेगा. मणिपुर के सांसद थोकचोम मैन्य सिंह कहते हैं कि 2005 में जस्टिस जीवन रेड्डी कमेटी ने कहा था कि अफसपा को हटाना ज़रूरी है. कई मंत्रियों ने भी इसका समर्थन किया. मैं हमेशा इस एक्ट को हटवाने के लिए अपील करता रहता हूं, मगर संसद में अकेला पड़ जाता हूं.
उत्तर-पूर्व को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार को वहां की जनता की भावनाओं को समझना होगा. एक अनुरोध अन्ना से भी है कि वह अब आप स़िर्फ महाराष्ट्र या उत्तर भारत के नहीं हैं, पूरा देश उनका है. वह शर्मिला का समर्थन करके यह दिखा दें कि आज भी भारत एक है, हम सब एक हैं. मणिपुर और शर्मिला को आपका इंतज़ार है अन्ना.

3 comments:

Anonymous said...

मेरे प्यारे मणिपुर वासियों,
आपका दर्द मैं भली भांति समझ रहा हूँ और अन्ना हजारे को आपकी पुकार भी मेरे कानों में गूंज रही है पर लगता नहीं की ये आवाज़ अन्ना हजारे के कानों तक पहुंचेगी. क्योंकि अन्ना हजारे के आन्दोलन के पीछे जो लोग हैं उन्हें देशवासिओं की चिंता नहीं है, उनकी चिंताएं कुछ और हैं. तभी तो बिहार के जिस दिनेश यादव नामक युवक ने अन्ना हजारे आन्दोलन के समर्थन में आत्मदाह कर लिया (चाहे वो दिनेश यादव की मुर्खता ही थी) उसके गरीब परिवार का रुदन और चीत्कारें भी अन्ना हजारे और उनकी टीम के कानों तक नहीं पहुंची. काश अन्ना हजारे और उनकी टीम के सदस्य सिर्फ एक बार ही सही दिनेश यादव के परिवार को सांत्वना ही दे देते. मगर अफ़सोस, ऐसा कुछ नहीं हुआ. इरोम शर्मिला और अन्ना हजारे टीम में दिन रात का अंतर हैं. टीम अन्ना जहाँ अपने NGO's को मिलने वाली फंडिंग में इजाफा कराने के लिए यह कम कर रहें हैं वहीँ बिना किसी निजी स्वार्थ इरोम शर्मिला की इस लडाई को सारे भारत के समझदार लोग देख रहें हैं और दिल से महसूस कर रहें हैं आपके इस बेपनाह दर्द को.
आंखे बंद हैं तो मीडिया की जो अपने कॉर्पोरेट आकाओं की मर्जी से चल रहा है. वर्ना मीडिया क्यों नहीं उठा रहा इस मुद्दे को?

Desh Videsh said...

शहीदों का सन्देश........
क्रांतिकारियों का लेख पढ़े
(अन्ना हजारे आन्दोलन पर क्रांतिकारियों के विचार)


वर्ग रूचि का आंदोलनों पर असर

http://krantikarisandesh.blogspot.com/p/blog-page_9588.html

Aawaaz said...

Sharmila ji ko anna hazare ki nhi...blki desh k media ki zrurat h!!!Uss media ki jo munaafe ki daud me bhaagte-bhaagte patrkarita ko bahut pichhe chhod chuka aur unhi ki bhaasha bolta hai jo usey apni chaaplusi krne k liye 'khairaat' dete hai!!!Media kbi q nhi sharmila ji k anshan ki baat krta,sarkaar prr dabaav q nhi bnata??????qki sharmila ji ka anshan 'surkhiya' nhi banataa...usse TRP nhi milti...!!!Desh ki sarkaar toh pehle he so chuki h...lekin ye chinta ka utnaa vishaya nhi h!!!Desh ka media so gya h....itna insensitive aur irresponsible ho gya h...ye bahut bdhi chintaa ka vishaya h!!!Vishwa k sbse bdhe loktantra me 'chautha khabha' ka yun apne raaste se bhatak jaana...bahut he khtrnaak h!!!!Apne haq toh media khoob achhe se jaanta prr abb baari h apni zimmedaariyon ko smjhne aur puri krne ki.Aur agr media ye smjhne me nakaam rha ya jld se jld koi kadam nhi utha paaya...toh apna 'naitik' adhikaar aur aadhar vo kho dega!!!!