यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Tuesday, September 16, 2014

पूर्वोत्तर की महिलाएं

पुरुषों से दो क़दम आगे 

भारत नारी को शक्ति का प्रतीक मानता है, लेकिन महिलाओं के साथ आएदिन होने वाले भेदभाव ने इस प्रतीक को शक्तिहीन बना दिया है. वातानुकूलित कमरों में बैठ कर तमाम किस्म के विमर्श होते हैं कि कैसे महिलाओं को सशक्त बनाया जाए. लेकिन, भारत में एक ऐसी जगह भी है, जहां की महिलाएं इस पूरी कहानी की अलग और सुंदर तस्वीर पेश करती हैं. आइए, जानते हैं, पूर्वोत्तर की महिलाओं की वे कहानियां, जो बताती हैं कि असल में महिला सशक्तिकरण के मायने क्या हैं....

देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं को सम्मान दिलाने की जद्दोजहद जारी है, वहीं दूसरी तरफ़ पूर्वोत्तर की महिलाएं शिक्षा, खेल एवं समाजसेवा आदि हर क्षेत्र में अपने-अपने राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए देश का नाम रोशन कर रही हैं. घरेलू महिलाएं भी घर के कामकाज के अलावा कुछ ऐसे कार्यों से जुड़ी हुई हैं, जो इन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद करते हैं. इससे न केवल इनकी अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार आ रहा है, बल्कि इसका असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है.


मणिपुर स्थित ईमा कैथेल केवल महिलाओं का बाज़ार है. यह बाज़ार महिला सशक्तिकरण का एक प्रतीक है. ईमा कैथेल राजधानी इंफाल के बीचोबीच स्थित है. राज्य की महिलाओं को कार्यस्थल, घर एवं समुदाय की ओर से कई तरह की सहूलियतें हासिल हैं, जो देश के बाकी हिस्सों में बहुत कम मिलती हैं. इस बाज़ार की दुकानदार महिलाओं की अपनी एक अलग जीवनशैली है. यहां हरी सब्जियां, खाद्य पदार्थ, लोहे के औजार, मछलियां, कपड़े, बांस निर्मित वस्तुएं एवं मिट्टी के बर्तन आदि का व्यवसाय होता है. ईमा कैथेल के माध्यम से मणिपुर की महिलाओं ने व्यापार-वाणिज्य के क्षेत्र में अपने क़दम आगे बढ़ाए हैं. इन दुकानदार महिलाओं को समय-समय पर राजनीतिक और सैन्य हलचलों का भी सामना करना पड़ता है. जीवन को स्वदेशी बनाए रखने में इन महिलाओं की बड़ी भूमिका है. अपने परिवार एवं समुदाय के लिए ये आर्थिक स्तंभ की तरह हैं. ये 4,000 शक्तिशाली महिलाएं अपने बेहतर भविष्य के लिए हमेशा एकजुट रहती हैं.

पूर्वोत्तर मूल रूप से महिला प्रधान समाज है. यहां महिलाओं की स्थिति बहुत मजबूत है. पुरुषों की अपेक्षा परिवार की ज़्यादातर ज़िम्मेदारियां महिलाएं संभालती हैं. ये घर से बाहर निकल कर मज़दूरी करती हैं, अपनी खेती-बाड़ी का काम संभालती हैं, पुरुषों से कई गुना ज़्यादा काम करके अपना परिवार चलाती हैं. यहां की महिलाएं कोई भी निर्णय अपने स्तर पर लेने में सक्षम एवं स्वतंत्र हैं. नगालैंड की महिलाएं दुर्गम पहाड़ों पर खेती का काम करती हैं. इन मेहनतकश महिलाओं पर घर-समाज की ओर से किसी तरह की पाबंदी नहीं होती. ये महिलाएं उतने ही बिंदास अंदाज में रहती हैं, जितने पुरुष. मिजोरम, जो अधिकतर पहाड़ पर बसा हुआ है, की महिलाएं अपने बच्चे को पीठ पर बैठाकर लकड़ी काटने जाती हैं, कटी हुई लकड़ी सिर पर लाद कर देर शाम अपने घर लौटती हैं, लेकिन परिवार में किसी को उनसे शिकायत नहीं रहती. त्रिपुरा में महिलाएं खेती-बाड़ी का ज़िम्मा खुद संभालती हैं, दुर्गम पहाड़ों पर चढ़ कर झरने से पानी लाती हैं. यह स़िर्फ एक दिन की बात नहीं है, बल्कि यह जीवन का हिस्सा है. मणिपुर में महिलाएं झील से मछली पकड़ने के काम में घर के पुरुषों की मदद करती हैं. साक्षरता के मामले में भी पूर्वोत्तर की महिलाएं किसी से कम नहीं हैं. अगर पुरुषों का प्रतिशत 80 है, तो महिलाएं भी 70 फ़ीसद दर के साथ उनके क़दम से क़दम मिला रही हैं.

इतिहास गवाह है कि पूर्वोत्तर की महिलाओं ने विषम से विषम परिस्थितियों में मोर्चा संभाला है. 1904 और 1939 में हुए संघर्ष नुपी लाल में मणिपुर की महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. ब्र्रिटिश सरकार के अन्याय के ख़िलाफ़ महिलाओं ने कपड़ा बुनने में इस्तेमाल होने वाले लकड़ी के टुकड़े को अपना हथियार बनाया और पुरुषों से एक क़दम आगे बढ़कर मोर्चा संभाल लिया. आज भी हर साल 12 दिसंबर को उन महिलाओं को याद किया जाता है. नगा स्वतंत्रता सेनानी रानी गायदिनलू को भी लोग याद करते हैं. काफी लंबे समय तक वह जेल में रहीं. उन्होंने गांधी जी द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर 14 सालों तक आज़ादी की लड़ाई लड़ी.

पूर्वोत्तर की महिलाओं को स्वयं के महिला होने का कोई दु:ख नहीं होता, क्योंकि उन्हें घर और समाज का पर्याप्त संरक्षण हासिल है. माता-पिता बेटी-बेटे के बीच फर्क नहीं करते, कोई पक्षपात नहीं बरतते. जबकि उत्तर भारत में बेटी का जन्म होते ही बहुधा घर में मायूसी छा जाती है. वजह भी है. समाज में दहेज प्रथा आज भी खुशियों को ग्रहण लगा रही है. वहीं पूर्वोत्तर में अलग रिवाज है. वर पक्ष वधु के घर वालों को खुद दहेज देते हैं, जिससे वधु अपने पारंपरिक परिधान खरीदती है. बॉक्सिंग में पांच बार विश्‍व चैंपियन रहीं मैरी कॉम के जीवन पर आधारित एक फिल्म भी आ रही है. मैरी कॉम पूर्वोत्तर की महिलाओं का एक सशक्त रूप है. ग़रीब परिवार में पैदा होने के बावजूद खेल के क्षेत्र में उन्होंने देश का नाम रोशन किया. दो बच्चों की मां बनने के बाद वह विश्‍व चैंपियन बनीं. यह उनके लिए एक चुनौती थी. 

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