Wednesday, August 13, 2008
मोनिका के साथ छल से पूर्वोत्तर का जन-जन आहत
भारोत्तोलक मोनिका देवी मामले में भारतीय खेल प्राधिकरण के एक अधिकारी की भेदभावपूर्ण नीति की वजह से मणिपुर में राष्ट्रीयता खंडित हो गई जिससे संपूर्ण पूर्वोत्तर आहत महसूस कर रहा है। जिस तरह अर्जुन के मोह में गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य के साथ छल किया था, उसी तरह भारतीय खेल प्राधिकरण के अधिकारी आरके नायडू ने प्रांतवाद के मोह में मोनिका का करियर बरबाद कर दिया।
मणिपुर में भारत विरोधी भावनाओं को ऐसे नाजुक दौर में बल मिला है जब वहां के लोग, पत्रकार व बच्चों को जबरन बंदूक थमाने और मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला करनेवाले अलगाववादी संगठनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। भावुक मणिपुरियों को इस घटना ने अलगाववादियों के साथ खड़ा करके भारत सरकार के खिलाफ विरोध करने को मजबूर कर दिया है। मोनिका का आरोप है कि आंध्र प्रदेश की भारोत्तोलक शैलजा को बेजिंग में आगे करने के मकसद से आंध्र प्रदेश के ही आरके नायडू ने मोनिका की जांच प्रक्रिया में गड़बड़ी की है। नई दिल्ली में बैठे नौकरशाहों की इसी तरह की गलतियों की वजह से पूर्वोत्तर अलगाववाद की आग में जल रहा है और उनकी ऐसी हरकतों से अलगाववादी संगठनों को भारत विरोधी फसल उगाने का आधार लि जाता है। पिछले राष्टीय खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर एशियाई रेकार्ड तोड़ने वाली भारोत्तोलक मणिपुर की मणि मोनिका देवी के साथ किए गए नायडू के प्रपंच और छल की वजह से मणिपुर के साथ संपूर्ण पूर्वोत्तर भारत के लोग यह महसूस कर रहे हैं कि नई दिल्ली हर मामले में पूर्वोत्तर के साथ भेदभाव करता है।
मणिपुर में जब किसी सुरक्षाकर्मी की हवस की शिकार मनोरमा देवी उन्हीं के हाथों मारी जाती है या भारतीय खेल प्राधिकरण के एक अधिकारी की साजिश का शिकार मोनिका जैसी खिलाड़ी हो जाती है तो इस सवाल पर पूरा मणिपुर भड़क जाता है। पूर्वोत्तर जनजातीय समाज के लोग भावुक होते हैं। उन्हें लगता था कि बेजिंग ओलंपिक में कुछ हासिल करके मोनिका राष्ट्रीय खेल पटल पर मणिपुर का नाम रोशन करेगी। तब शायद मणिपुर की मोनिका भारत की मोनिका के रूप में जानी जाती और अपरोक्ष रूप राष्ट्रीय की भावना को मजबूत करती।
परंतु भारतीय ओलंपिक संघ के आचरण और कुछ पदाधिकारियों के छल-कपट से मणिपुर में राष्ट्रीयता आहत हुई है। भारतीय खेल पटल पर मणिपुर का महत्वपूर्ण हस्तक्षेप रहा है। खास कर एथलेटिक्स में मणिपुरी लड़कियों का दखल रहा है। वहां गांव स्तर पर खेल आयोजन होते रहते हैं। उग्रवाद से जर्जर होने के बावजूद इंफाल में आयोजित इकतीसवें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के दौरान किसी प्रतिबंधित संगठन ने बाधा डालने का साहस नहीं किया था। जबकि पिछले साल गुवाहाटी में आयोजित राष्ट्रीय खेलों के आयोजन पर उल्फा ने प्रतिबंध लगा दिया था। उसका यही कहना था कि असम भारत का हिस्सा नहीं है, इसलिए असम में राष्ट्रीय खेलों के आयोजन का कोई मतलब नहीं है। पर खेल संगठनों के आग्रह के बाद उल्फा ने अपना प्रतिबंध वापस ले लिया था। जिससे मणिपुर के खिलाड़ी अव्वल थे।
भारतीय ओलंपिक संघ और भारतीय खेल प्राधिकरण के कुछ अधिकारियों के आचरण से उन लोगों की खेलभावना हतोत्साहित हुई है। राजनीतिक बयानबाजी और आंदोलन के अलावा मणिपुर के खिलाड़ियों ने किसी भी राष्ट्रीय स्तर के खेलों में भाग लेने से मना कर दिया हे। भारतीय खेल प्राधिकरण के स्थानीय कार्यालय को बंद कर दिया गया है। गांव स्तर पर इस अन्याय का विरोध हो रहा है। मणिपुर घाटी प्रतिवाद मं कई दिन बंद रही । भूमिगत संगठन भी लगातार भारत विरोधी बयान देकर आम लोगों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी सफाई में भारतीय खेल प्राधिकरण चाहे जो कहे, लेकिन अंतिम सच यही है कि देश की प्रतिभावान महिला भारोत्तोलक मोनिका बेजिंग ओलंपिक में भाग लेने से वंचित हो गई है। जिस डोपिंग टेस्ट के आधार पर उन्हें बेजिंग जाने से रोका गया था, वह बाद में गलत निकला। जब उन्हें जाने की इजाजत मिली तो देर हो चुकी थी।
नियम यह है कि किसी खेल समारोह में भाग लेने के लिए रवाना होने से कम से कम 72 घंटे पहले रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया जाना था, लेकिनमोनिका के रवाना होने के कुछ पहले भारतीय खेल प्राधिकरण ने भारतीय ओलंपिक संघ को रिपोर्ट भेजी। मोनिका ने उस रिपोर्ट को चुनौती दी। पूरा मणिपुर मोनिका के साथ खड़ा हो गया। स्थानीय लोगों के गुस्से और जनभावना के दबाव को देखते हुए मणिपुर के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह ने अपने खेल मंत्री को दिल्ली दौड़ाया और बाद में खुद पहुंचे। डोप जांच की रिपोर्ट को बाद में गलत पाया गया। प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की अपील की गई। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। मोनिका बेजिंग ओलंपिक में भाग लेने से वंचित हो गई। इससे मोनिका और मणिपुर के साथ भारत का भी नुकसान हुआ। मुख्यमंत्री इबोबी ने पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। जांच होती है नहीं, किसी को सजा मिलती है नहीं, या अलग बात है, लेकिन एक खेल प्रशासक की सोची-समझी चाल की वजह से मणिपुर में लोगों की आहत भावना को भरने में काफी समय लगेगा।
-रविशंकर रवि
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3 comments:
मेरे विचारों को शब्दों की शक्ल देने के लिये धन्यवाद।
लिखते रहें।
Meri baat ko apane shabd dene ke liye dhanyvaad.....ye laaton ke bhoot hain sarafat se nahi maanege. Ye wohi shailja hai jise 2 years pehle drug se sandeh me ban kar diya tha.....
Media ne bhi is baat ko jyada tavajoo nahi di, Apne desh ke media ko filmi sitaron ke gharon me jhankne se fursat mile to kuch kaam kare.
चिट्ठाचर्चा का आभार जिस कारण आपका लेख पढने को मिला... देश से दूर विदेश मे बैठे अपने भारत के खिलाडियो को न देखकर जो उदासी हो रही थी उसका कारण जानकर दुख के साथ साथ आक्रोश भी कम नही हुआ....काश मीडिया इस बात को भी पहले ही प्रकाश मे लाता तो आज कुछ ओर ही तस्वीर होती...
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