यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Monday, August 18, 2008

मोनिका मणिपुर पहुँची

आखिर मोनिका देवी निराश होकर 17 अगस्त को अपना जन्मस्थल मणिपुर वापस आ गई. इंफाल के खुमन लंपाक इंडोर स्टेडियम में एक समारोह आयोजित कर उनको स्वागत किया. इंफाल के महत्वपूर्ण रास्तों पर उनका स्वागत यात्राएं निकली थीं.
अपनों से मिलकर वे अपने आपको संभल नहीं पाई. उस पल की तस्वीरें हैं.







परदेश बीजिंग के खेल समर पर साहस के साथ उठाने वाला वह हाथ, जो साजिश के चलते उठा नहीं पाई, वह हाथ अपने जन्मस्थल मणिपुर में अपनों के सामने आंसू के साथ उठाती हुई मोनिका देवी.





अपनों का स्वागत स्वीकारती मोनिका देवी.





रोने के सिवाय क्या और उपाय है.







अपनों से गले लगा कर रोती मोनिका.

3 comments:

विजय गौड़ said...

निश्चित ही राजनीति की शिकार इस खिलाडी का रूदन परेशान करने वाला है। बहुत से सवाल खडे होते है हमारे पिछड्ते जाने के।

Unknown said...

दिल को हिलाकर रखने वाली तस्वीरें हैं यह, इसी गंदी राजनीति और अफ़सरशाही के कारण सारा देश परेशान है, इनसे मुक्ति पाना ज़रूरी है, लेकिन अलगाववाद इसका रास्ता नहीं हो सकता, कोई दूसरा उपाय खोजना होगा… मोनिका के साथ पूरे भारत के सच्चे लोगों की सहानुभूति है… मोनिका तुम एक बहादुर महिला हो, यह कोई अंत नहीं है आगे जहाँ और भी हैं… साहस बनाये रखो…

बालकिशन said...

सुरेश जी से सहमत हूँ.
"आगे जंहा और भी है."