यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, July 10, 2008

साक्षी



कुछ शब्द
उनके लिए
जो नंदीग्राम में मार दिये गये
कि मैं गवाह हूं उनकी मौत का

कि मैं गवाह हूं कि नई दिल्ली, वाशिंगटन
और जकार्ता की बदबू से भरे गुंडों ने
चलाई गोलियां, निहत्थी भीड़ पर
अगली कतारों में खड़ी औरतों पर.

मैं गवाह हूं उस खून का
जो अपनी फसल
और पुरखों की हड्डी मिली अपनी जमीन
बचाने के लिए बहा.

मैं गवाह हूं उन चीखों का
जो निकलीं गोलियों के शोर
और राइटर्स बिल्डिंग के ठहाकों को
ध्वस्त करतीं.

मैं गवाह हूं
उस गुस्से का
जो दिखा
टालिनग्राद से भागे
और पश्चिम बंगाल में पनाह लिये
हिटलर के खिलाफ.

मैं गवाह हूं
अपने देश की भूख का
पहाड़ की चढ़ाई पर खड़े
दोपहर के गीतों में फूटते
गड़ेरियों के दर्द का
अपनी धरती के जख्मों का
और युद्ध की तैयारियों का.

पाकड़ पर आते हैं नये पत्ते
सुलंगियों की तरह
और होठों पर जमी बर्फ साफ होती है.

यह मार्च
जो बीत गया
आखिरी वसंत नहीं था
मैं गवाह हूं.

-रेयाज-उल-हक

रेयाज-उल-हक की कविताओं में भारत की युूवा पीढ़ी का सबसे सार्थक पतिनिधित्व झलकता है. प्रभात खबर पटना में उप संपादक हैं.

1 comment:

Som said...

Salam Bhai. Please accept my salam for your touchy poetry. I too share same concern on sufferings of people in Nadigram and Singur. The Left has left democratic practices and resorting to force. It's disappointing.

I love to read Hindi writings and now added your blog in my list. So, keep on writing.