यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Thursday, July 10, 2008

डेमोक्रेसी के इस राज में



गड्ढे में नाले में कीचड़ है
राजपथ सना है कीचड़ से
पड़ा कूड़े का ढेर सब दरवाजों पर
अस्पताल भी बना है
कूड़े का ढेर.

बाजार में होता, सामानों का मोलभाव
ऑफिस में भी होता नोकरियों का मोल-भाव
एलपी स्कूल में लड़ते हैं बच्चे
एसेंबली हॉल में लड़ते हैं विधायक.
गली-गली में चोरी करते हैं लोग
राजमहल में भी चोरी करते हैं अधिकारी.
अधिकारियों द्वारा पकड़े गए जन-साधारण पर
पहरा देते हैं पहरेदार.
अधिकारी और राजा का भी
पहरा देते हैं पहरेदार.
वेश्याएं बेचती हैं वासनायुक्त शरीर
जिन्हें खरीदते हैं राजा और अधिकारी

यहां हे डेमोक्रेसी का शासन
जिसकी है-एक ही रीति
जिसका है एक ही स्वरूप.

-लनचेनबा मीतै

1 comment:

विनीत उत्पल said...

nam vijan singh aur aapke vijan har kisee ko kayal karta hai. kuchh apnee likhee rachana bhee peesh kariya janab.