यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Friday, July 18, 2008

श्रावणी मेले से जुड़ी मेरी यादें



श्रावणी मेला शब्द सुनते ही लगता है कि कोई मेरा परिचित हो। श्रावणी मेला और देवघर ये दो शब्द मेरी जहन में रच-बस गए हैं। दोनों शब्दों से मैं उस तरह परिचित हूं जैसे कोई अपने पड़ोसी को जानता हो। देवघर एक शांत और धाार्मिक वातावरणयुक्त एक जगह है। मैंने देवघर में रहकर अपनी आंखों से श्रावणी मेला देखा। मेरी पढ़ाई-लिखाई से लेकर नौकरी की शुरुआत देवघर से ही की। उस दरमियान यह पवित्र पर्व श्रावणी मेला मुझे वाकिफ था। उस पवित्र पर्व का मैं भी एक हिस्सा था। इसलिए देवघर मेरे लिए बहुत खास है। देवघर से जुड़ी कई यादें मेरी स्मृति में हैं। उन यादों में श्रावणी मेला भी विशिष्ट है।
2003 में इस पावन भूमि पर मैं आया था सिर्फ और सिर्फ हिंदी की शिक्षा पाने के लिए। शिवजी के आशीर्वाद से पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी करने लगा। शुरुआत दिनों में मेरे पास मैट्कि की डिग्री के सिवाय कुछ नहीं था। सब अधूरा था। न भाषा का ज्ञान था, न तकनीकी ज्ञान और न ही व्यवहारिक ज्ञान। मगर इस पावन धरती ने मुझे बहुत कुछ दिया और बहुत कुछ सिखाया। उतना तो मां-बाप अपने बच्चों को भी नहीं सिखाते होंगे।

पहला सावन जब आया तो श्रद्धा, जोश और उमंग के साथ भक्तों का तांता लगाना शुरू गया। इन आंखों ने पहली बार श्रावणी मेले का नजारा देखा। भक्तजनों की श्रद्धा अद्भुत है। गंगा जल भरते हुए पैदल 105 किमी की दूरी तय करके शिवजी के ज्योर्तिलिंग पर जल चढ़ाना एक साधारण आदमी के बस की बात नहीं। वही आदमी कर सकता है जिसे भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हो। पूरा देवघर 'बोलबम' से गुंजायमान हो उठता था। हर गली-मुहल्ले में भक्तिमय माहौल व्याप्त था। पूरा देवघर पीला रंग से रंगा था। श्रद्धालु भक्ति के रंग से सराबोर होते थे। कई दिन-रात बिना खाए और सोए कांवरिएं थकते नहीं थे। उनके मुंह से एक ही आवाज निकलती थी - बोलबम का नारा है, बाबा एक सहारा है।
रात में दफ्‌तर से काम खत्म करके अक्सर साथियों के साथ शिवगंगा होते हुए चाय पीने निकलता था। बोलबम का नजारा रात में भी कायम था। सावन महीने में पूरे देवघर में दिन-रात में कोई अंतर नहीं रहता था। भक्तों की लंबी-लंबी कतारें मंदिर की ओर लगी रहती थी। रात के समय में शिवगंगा का दृश्य अद्भुत था। चारों तरफ के स्ट्ीट लाइट से पूरा पोखर चमकता रहता था। उसके बीच शिवजी की भव्य मूर्ति विराजमान थी। मूर्ति की चोटी से पानी का झरना निकला हुआ था। ऐसा लगता था कि हिमालय की चोटी से गंगाजल बह रहा हो। कितना मनोरम दृश्य था। यह दृश्य देख पाने के लिए भक्तजनों को कई साल लग जाते थे, फिर भी उनकी मनोकामना पूरी नहीं होती थी। सामने खड़ा होकर शिवजी की मूर्ति को मैं एकटक देखता रहता था। लगता था कि शिवजी स्वयं खड़े होकर मुझे साक्षात्कार दे रहे हैं।

मंदिर के प्रांगण में भक्तों का जमावड़ा लगा रहता था। किसी के मां, बाप, भाई व बच्चे
भीड़ में अक्सर गायब हो जाते थे। सुरक्षाकर्मियों को भी कतारें व्यवस्थित करने में लाठी का सहारा भी लेना पड़ता था। मगर भक्तजनों की भक्ति के सामने लाठी का कोई असर नहीं पड़ता था। अद्भुत इच्छाशक्ति थी उनकी। लंबी कतारें, ऐसी लंबी जो तीन-तीन दिनों तक लगी रहती थी। लाइन में ही लोग सो जाते थे। मंदिर पहुंचते-पहुंचते कई दिन लगता था। मगर उनके पास न श्रद्धा की कमी थी और न ही ताकत की।
मुझे अभी तक याद है। अंतिम सोमवार की रात थी। पूरे दफ्‌तर में जल चढ़ाने की चर्चा जोर-शोर से हो रही थी। स्वाभाविक बात है कि अंतिम सोमवार को तो अधिक भीड़ रहती ही है। वह अंतिम सोमवारी पर मेरी दादी की पुण्यतिथि भी थी। मैंने सोचा कि मैं भी मंदिर जाकर जल चढ़ा लूं। इससे भोलेनाथ की कृपा से मेरी स्वर्गीय दादी के पास कुछ फूल और जल पहुंच सके। वीआईपी पास से जाना था। वरिष्ठ साथियों से पूछ कर मैं भी 3.30 बजे तक तैयार हो गया। पूरी तैयारी के बाद पता चला कि वीआईपी पास कम हो गया है और आदमी ज्यादा नहीं जा पाएंगे। मुझे बहुत दुःख हुआ था। मैंने एक साथी को तोड़े हुए फूल शिवजी पर चढ़ाने के लिए दे दिया था। खैर उनकी इच्छा कौन काट सकता है। आज भी मेरे रोम-रोम में बोलबम की गूंज बसी हुई है।
कुल मिला कर देवघर मेरे जीवनयात्रा का एक सफल और सुखद हिस्सा रहा। उस पावन धरती पर कुछ साल रहना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। श्रावणी मेले के पावन अवसर पर मैं भगवान शिव के चरणों पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूं।

4 comments:

शिखर अवस्थी said...

श्रावणी पर्व की हार्दिक शुभकामनयें। आपने हमें तो घर बैठे ही बम भोले के दर्शन करा दिये। बहुत अच्छा दृष्टान्त।

Udan Tashtari said...

श्रावणी पर्व की हार्दिक शुभकामनाऐँ..

कामोद Kaamod said...

श्रावणी पर्व की हार्दिक शुभकामनाऐँ..

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Som said...

Apka Lekh Padkar Bada Aanand Aaya. Sawan Parv Ki Hardik Subhkamnaye.