यदि तोर डाक सुने केऊ ना आशे, तबे एकला चालो रे, एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो।

Tuesday, July 22, 2008

श्रद्धांजलि

दोस्तो आज एक खबर मिली कि ज्ञानेश्वर नहीं रहे. यह खबर सुन कर मुझे हैरान हुआ और दुख भी। आपलोग नहीं जानते होंगे कि ज्ञानेश्वर कौन है. वह मेरे सहपाठी था. हमसे उम्र में बडा था. एक रुम में रहकर पढाई करता था. वह इकलौता बेटा था. बहुत गंभीर और ईमानदार भी था. पढाई लिखाई को लेकर हमेशा प्रयासरत था. उनकी मां कई सालों से दिल की बीमारी से जूझ रही थी. उनके मां बाप की आशा की किरणा था वह. उनके पिता एक प्राइवेट स्कूल के शिक्षक हैं. उनके पिता उनके उपर कितनी उम्मीद रखते थे. शायद उनकी उम्र 26 की रही होगी. सरकारी नौकरी के लिए उन्होंने इंटरव्यू भी दिए थे. उसके इंतजार में प्राइवेट स्कूल चला रहा था. उनकी शादी भी नहीं हुई. जिंदगी की सुबह में ही उनका सायं काल आ गया. परिजनों को वक्त ने कौन सा मोड पर ला खडा कर दिया. उनके परिवार वालों को कैसा दुखा दर्द झेला होगा. एक असहनीय दृश्य हुआ होगा. मुझे अभी तक याद है कि जब हम लोग इंफाल से गुवाहाटी के लिए गाडी पकडना था. उनके पितजी उनको छोडने आए थे. हम लोग पूरी टीम थी. पूरी टीम में सबसे बडे भी वे ही थे. फिरभी बच्चा समझ कर उनको छोडने आया था. भले ही बडा हो होशियार हो मगर मां बांप की नजर में नदान बच्चे ही लगते है.
इस खबर से जिंदगी की एक सच्चाई ने याद दिलाए कि हम सब एक दिन छोड कर जाना है. जिंदगी की आपाधापी में यह कभी कभी भूल जाता है कि हम लोग वहीं जाना है जहां से हम आए हैं. हर कोई अकेला आता है. अकेला जाएगा.
मैं श्रद्धांजिल अर्पित करते हुए ईश्वर से दुआ करता हूं कि उनकी आत्मा को शांति दें.

2 comments:

Udan Tashtari said...

श्रद्धांजिल..

Sajeev said...

आपकी संवेदनाओं को नमन